पूर्व सीएम के बकाया माफी अध्यादेश को हाईकोर्ट में चुनौती, आज हो सकती है सुनवाई
पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवास भत्ता समेत अन्य सुविधाओं में हुए खर्च को माफ करने को लेकर राज्य सरकार के अध्यादेश को याचिका के जरिए हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।
नैनीताल, जेएनएन : पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवास भत्ता समेत अन्य सुविधाओं में हुए खर्च को माफ करने को लेकर राज्य सरकार के अध्यादेश को याचिका के जरिए हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका पर आज सुनवाई हो सकती है।
रुलक संस्था ने अध्यादेश को चुनौती देते हुए कहा है कि राज्य सरकार ने शक्तियों का दुरुपयोग कर अध्यादेश पारित किया है, जो असंवैधानिक है। कोर्ट ने पूर्व में रुलक की ओर से ही दायर जनहित याचिका पर फैसला देते हुए पूर्व सीएम को दी जा रही सुविधाओं को असंवैधानिक करार देते हुए वसूली के आदेश दिए थे। पूर्व सीएम विजय बहुगुणा व भगत सिंह कोश्यारी ने याचिका दायर कर पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। जिसके बाद राज्य सरकार ने पूर्व सीएम को मिली सुविधाओं पर हुए खर्च का बकाया माफ करने को अध्यादेश जारी किया था।
हाईकोर्ट ने दी थी चेतावनी
पिछले दिनों त्रिवेंद्र सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को भविष्य में दी जाने वाली सुविधाओं से हाथ पीछे खींच लिए।हालांकि उन पर जो बकाया शेष था, वह भी माफ कर दिया जाएगा। रूलक सामाजिक संस्था के चेयर पर्सन अवधेश कौशल द्वारा हाईकोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं के खिलाफ एक जनहित याचिका डाली गई थी, इसमें हाईकोर्ट में इन सुविधाओं पर तत्काल रोक लगाने और पूर्व मुख्यमंत्रियों से अब तक का बकाया वसूलने के आदेश जारी किए थे। इस फैसले के खिलाफ भगत सिंह कोश्यारी और विजय बहुगुणा हाई कोर्ट चले गए थे किंतु हाईकोर्ट ने उनकी एक नहीं सुनी और उन्हें पुराना बकाया चुकाने का आदेश जारी रखा। यहां तक कि जब भगत सिंह कोश्यारी ने बकाया चुकाने की हैसियत न होने की बात कही तो फिर कोर्ट ने चेतावनी दे दी थी कि क्यों ना आपकी संपत्ति की जांच करा ली जाए !
अध्यादेश का हुआ चौतरफा विरोध
हाईकोर्ट में जब सरकार तथ्यों और तर्कों के आधार पर हार गई तो फिर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने राजनीतिक गुरु भगत सिंह कोशियारी के लिए सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों का बकाया माफ करने और सुविधाएं जारी रखने के लिए अध्यादेश ले आए। इस बात को इसलिए भी बल मिलता है कि भगत सिंह कोश्यारी के अलावा बाकी सब ने कोर्ट में अथवा कोर्ट से पहले बकाया भरने की सहमति दे दी थी। कैबिनेट में गुपचुप निर्णय करके अध्यादेश को मंजूरी के लिए राजभवन भेज दिया गया था। जब यह बात खुली तो चौतरफा विरोध शुरू हो गया। इसके बाद सरकार ने यू-टर्न लेते हुए राज्यपाल के यहां गया हुआ अध्यादेश वापस मंगाया तथा इसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी गई सुविधाएं मात्र 31 मार्च 2019 तक जारी रखी जाने का प्रावधान जोड़ दिया।
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