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बिना मिट्टी के हाइड्रोपोनिक्स और एरोपोनिक्स से बढ़ाया जा सकता है कृषि उत्पादन

हाइड्रोपोनिक्स और एरोपोनिक्स द्वारा बिना मिट्टी की खेती कर प्रति इकाई क्षेत्रफल उत्पादन कई गुना बढ़ाया जा सकता है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसका विशेष उपयोग संभव है। कृषि महाविद्यालय में नव स्थापित यह इकाई डीन डाक्टर शिवेंद्र कुमार कश्यप का पुराना सपना था।

By Prashant MishraEdited By: Published: Sat, 06 Nov 2021 10:58 AM (IST)Updated: Sat, 06 Nov 2021 10:58 AM (IST)
प्रशिक्षण के दौरान पैदा हुई उच्च गुणवत्ता के सब्जियां एवं शोभाकारी पौधे छात्रों द्वारा बेचे जाएंगे।

जागरण संवाददाता, पंतनगर : कृषि स्नातक के छात्रों के लिए गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विवि में हाइड्रोपोनिक्स और एरोपोनिक्स का प्रशिक्षण अनिवार्य करते हुए इसके लिए उच्च स्तरीय प्रशिक्षण को तीन बड़ी इकाइयों का निर्माण किया गया है। हाई-टेक कृषि इकाइयों में प्रत्येक छात्र के लिए संरचनात्मक ढांचा बनाया गया है। जहां वह छह से आठ माह कार्य कर इन विधाओं में विशेषज्ञता प्राप्त करेंगे। प्रशिक्षण के दौरान पैदा हुई उच्च गुणवत्ता के सब्जियां एवं शोभाकारी पौधे छात्रों द्वारा बेचे जाएंगे। जिसका लाभ छात्रों के मध्य वितरित कर दिया जाएगा।

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 हाइड्रोपोनिक्स और एरोपोनिक्स द्वारा बिना मिट्टी की खेती कर प्रति इकाई क्षेत्रफल उत्पादन कई गुना बढ़ाया जा सकता है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसका विशेष उपयोग संभव है। कृषि महाविद्यालय में नव स्थापित यह इकाई डीन डाक्टर शिवेंद्र कुमार कश्यप का पुराना सपना था। उन्होंने कहा कि कृषि के छात्रों में उच्च तकनीक खेती की योग्यता पैदा करना उनकी योजना का हिस्सा था। जिसे ज़मीनी हक़ीक़त बना पाना अब संभव हो पाया । आर्थिक समस्याओं के बाद भी अनेक स्रोतों से धन की व्यवस्था कर इकाई की स्थापना की गई। जहां द्वितीय वर्ष के एक सौ सत्तर छात्र आगामी आठ माह कार्य करेंगे । कार्य का समन्वय उद्यान विज्ञान के प्राध्यापक डा. वीपी सिंह और कीट विज्ञान के प्राध्यापक डा. जे पी करेंगे। जबकि तकनीकी विशेषज्ञता, विपणन सहयोग आदि इंडो डच हॉर्टिकल्चर प्रॉजेक्ट से प्राप्त की जाएगी। नाहेप परियोजना के ईनोवेशन इंक्युबेशन कम्पोनेंट के संयुक्त तत्वावधान में चालित इस अभिनव सुविधा के प्रति छात्र अत्यंत उत्सुक और प्रेरित हैं। द्वितीय वर्ष की छात्रा मोनालिसा गुरु ने कहा कि सभी बैच में इस अवसर को लेकर बड़ा उत्साह है। पहली बार कृषि में आना सचमुच बहुत अच्छा लग रहा है । राजस्थान से आई छात्रा सुषमा कहा कि इन उन्नत और उच्च तकनीकों पर काम करने का अवसर बड़े सौभाग्य और गर्व की बात है और निश्चित ही इससे हमारी क्षमता बढ़ेगी जिसका आगे लाभ मिलेगा।

परियोजना को प्रोग्रामिंग और तकनीकों के अनुसार सहयोग कर रहे कम्प्यूटर प्रोग्रामर प्रतिमा और निखिलेश ने कहा कि इस पूरी खेती में कम्प्यूटर, प्रिसिज़न और आंकड़ों का बड़ा महत्व है। जो छात्रों को समझ में आ जाए तो उनका भविष्य उज्ज्वल है। परियोजना समन्वयक डॉ वी पी सिंह ने कहा कि डीन कश्यप का यह ड्रीम प्रोजेक्ट है और यह हमारे महाविद्यालय का भविष्य है अतः हमारी टीम इसके लिए जी-जान से जुटी है। परियोजना के सामाजिक अध्ययन हेतु शुरू से ही एक अलग टीम संलग्न है जिसका नेतृत्व आइ आइ एम, इंदौर की फ़ेलो डॉ श्वेता गुप्ता कर रही है ।


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