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पानी की हर बूंद को दोबारा इस्तेमाल कर रहा है शांतिकुंज

गायत्री तीर्थ शांतिकुंज जल संरक्षण के क्षेत्र में भी अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रहा है। संस्था की ओर से रोजाना इस्तेमाल होने वाले जल की रिसाइकिलिंग के भी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 05 Jan 2019 01:29 PM (IST)Updated: Sat, 05 Jan 2019 01:31 PM (IST)
पानी की हर बूंद को दोबारा इस्तेमाल कर रहा है शांतिकुंज
पानी की हर बूंद को दोबारा इस्तेमाल कर रहा है शांतिकुंज

हरिद्वार, अनूप कुमार। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज अध्यात्म के साथ-साथ जल संरक्षण के क्षेत्र में भी अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रहा है। इस आध्यात्मिक संस्था की ओर से रोजाना इस्तेमाल होने वाले जल की 'रिसाइकिलिंग' के भी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। यहां से निकलने वाले ड्रैनेज को एकत्र कर पहले उसका शोधन किया जाता है और फिर उसे सिंचाई, बागवानी, धुलाई सहित अन्य कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है। यही प्रक्रिया संस्था अपने अंत:वासियों के लिए स्थापित कॉलोनी में भी अपनाती है।

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वर्षा जल संरक्षण के पुख्ता इंतजाम

शांतिकुंज में वर्षाजल के इस्तेमाल और उससे भूगर्भ के रिचार्ज की तो व्यवस्था है ही, इसे आधुनिक एवं पुरातन पद्धति से पीने योग्य भी बनाया जाता है। स्वयं शांतिकुंज प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या और शैल दीदी भी इसी जल को पीने के उपयोग में लाते हैं। शांतिकुंज में जल संरक्षण के लिए जन-जागरण डॉ. प्रणव पंड्या के नेतृत्व और शांतिकुंज स्थित जलकल विभाग के इंजीनियर जय सिंह यादव की देखरेख में हो रहा है। वह कहते हैं कि वर्षा का शुद्ध जल स्वास्थ्य के टॉनिक का काम करता है। क्योंकि, इसमें प्रकृति प्रदत्त सभी मिनरल समाहित होते हैं। इसका इस्तेमाल पीने, खाना बनाने, स्नान, कपड़े धोने आदि कार्यों में होता है।

तैयार किया पूरा मैकेनिज्म

गायत्री तीर्थ शांतिकुंज ने अपने यहां फरवरी 2017 में जल शोधन के क्षेत्र में उत्तराखंड का पहला प्राकृतिक जल शोधक संयंत्र स्थापित किया। इसकी क्षमता प्रति घंटे 50 हजार लीटर जल को स्वच्छ करने की है। यहां पानी में घुलनशील आयरन व सिल्ट को एरिएटर के माध्यम से हवा व धूप के संपर्क में लाकर इसमें घुले आयरन तत्व को कम किया जाता है। फिर फिटकरी और ब्लीचिंग मिलाकर इसमें घुले सिल्ट को 'फ्लोकुलेटर' से 'फ्लोक्स' बनाकर 'क्लियरिफायर' के माध्यम से साफ किया जाता है। इसके बाद प्राकृतिक पद्धति से आयरन व सिल्ट को कम करने के लिए विशेष रूप से तैयार 'फिल्टर' से उसे छाना जाता है। इस प्रक्रिया में पानी को बालू, रेत, बजरी, ग्रेवल, पेवल, बोल्डर की कुल दस परतों के 'रैपिट ग्रेविटी फिल्टर' के माध्यम से छानकर उसे सप्लाई टैंक में एकत्र किया जाता है। इस प्रक्रिया में पानी की एक-एक बूंद का प्रयोग होता है।

आठ हजार स्थायी और छह हजार अस्थायी निवास

शांतिकुंज में स्थायी व अस्थायी रूप से करीब 14 हजार लोग निवास करते हैं। इसमें स्थायी आठ हजार और अस्थायी करीब छह हजार हैं। धार्मिक प्रयोजन के निमित्त यहां आकर निवास करने वाले इन लोगों की संख्या समय के हिसाब से घटती-बढ़ती रहती है।

भोजनालय में इस्तेमाल पानी दोबारा इस्तेमाल

शांतिकुंज में अंत:वासियों और बाहर से आकर अस्थायी निवास करने वालों के लिए दो बड़े भोजनालय स्थापित हैं। इनमें रोजाना हजारों लोगों का भोजन तैयार होता है। भोजन पकाने के दौरान इस्तेमाल हुए पानी को एकत्रित कर उसे सिल्ट, रेत आदि से बनाए गए संयंत्र से छानकर बागवानी, सफाई और धुलाई के इस्तेमाल में लाया जाता है। 

डॉ. प्रणव पंड्या (प्रमुख, अखिल विश्व गायत्री परिवार, हरिद्वार) का कहना है कि हरिद्वार के पानी में आयरन व सिल्ट की मात्रा अधिक रहती है, जिससे कई प्रकार की बीमारियां होने का भय रहता है। इससे निजात पाने के लिए शांतिकुंज ने प्राकृतिक जल शोधक संयंत्र का निर्माण कराया है, जो कई मायनों में फायदेमंद है।

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