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International Womens Day 2020: मुश्किल हालात और तमाम चुनौतियों का मात देकर जज बनीं अकमल अंसारी

हरिद्वार में पथरी क्षेत्र के सुदूरवर्ती घिस्सुपुरा गांव की अकमल अंसारी ने मुफलिसी में कामयाबी की इबारत लिखकर महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश की है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 08 Mar 2020 10:07 AM (IST)Updated: Sun, 08 Mar 2020 10:07 AM (IST)
International Womens Day 2020: मुश्किल हालात और तमाम चुनौतियों का मात देकर जज बनीं अकमल अंसारी
International Womens Day 2020: मुश्किल हालात और तमाम चुनौतियों का मात देकर जज बनीं अकमल अंसारी

हरिद्वार, मेहताब आलम। जब हौंसला बना लिया ऊंची उड़ान का, फिर देखना फिजूल है कद आसमान का। यह पंक्तियां मुश्किल हालात और तमाम चुनौतियों का मात देकर जज बनीं अकमल अंसारी पर पूरी तरह सटीक बैठती हैं। हरिद्वार में पथरी क्षेत्र के सुदूरवर्ती घिस्सुपुरा गांव की अकमल अंसारी ने मुफलिसी में कामयाबी की इबारत लिखकर न सिर्फ महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश की है, बल्कि वह बाकी मुस्लिम लड़कियों के लिए भी रोल मॉडल बन चुकी हैं।

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धनपुरा गांव के सरकारी प्राइमरी स्कूल से तालीम लेने वाली अकमल अंसारी के वालिद निसार अहमद का वर्ष 2007 में इंतकाल होने के बाद पूरी जिम्मेदारी उनकी मां हाशमी बेगम पर आ गई। मां ने चूड़ी बेचकर परिवार को पाला और अकमल को पढ़ाया। अकमल ने आठवीं कक्षा में ही यह ठान लिया था कि उन्हें जज बनना है। लेकिन, यह इतना आसान नहीं था। कठिन परिस्थितियों के बावजूद अकमल ने हार नहीं मानी और अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए दिन-रात एक कर दिया।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पहले बीए एलएलबी और फिर एलएलएम की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने जज की तैयारी शुरू की। कड़ी मेहनत और संघर्ष के बूते अकमल ने अपना ख्वाब सच कर दिखाया। दिसंबर 2019 में जज बनने के बाद फरवरी में ही अकमल लक्सर निवासी जज रिजवान अंसारी के साथ शादी के बंधन में बंध गई हैं। उनके संघर्ष की कहानी आम परिवार की लड़की के लिए नजीर है।

बेटी की जिद के आगे माना परिवार

अकमल का परिवार शुरुआत में उन्हें पढ़ाई के लिए अलीगढ़ भेजने के लिए तैयार नहीं था। लोग कहते थे कि माहौल ठीक नहीं है, लेकिन आखिरकार अकमल की जिद के आगे परिवार ने हार मानी और उन्हें पढ़ने के लिए अलीगढ़ भेज दिया। अकमल खासतौर पर मुस्लिम लड़कियों को पैगाम देती हैं कि घर से निकलें और दुनिया को देखें। लक्ष्य तय करें और उसे हासिल करने के लिए दिन-रात एक कर दें। मंजिल आपके कदमों में होगी।

पति की सफलता में हमकदम रविंद्र

हर सफल पुरुष के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता है। इसे सार्थक किया है ज्वालापुर के विधायक सुरेश राठौर की पत्नी रविंद्र कौर ने। रविंद्र ने घर-परिवार की जिम्मेदारी के साथ-साथ पति के राजनीतिक जमीन तैयार करने में भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। खुद विधायक सुरेश राठौर इसे स्वीकारते हैं। उनका कहना है कि हर सुख-दुख, उतार-चढ़ाव में रविंद्र को अपने करीब पाया है।

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के नगीना निवासी सुरेश राठौर का विवाह तीन फरवरी 1983 को रविंद्र कौर से हुआ। हालांकि, 1980 में ही सुरेश राठौर हरिद्वार आकर बस गए थे। सुरेश राठौर की राजनीति में रुचि देखते हुए रविंद्र परछाई की तरह हर कदम पर उनके साथ रहीं। 2017 में चुनाव में रविंद्र ने घर की दहलीज लांघ कर न केवल चुनाव के समय पूरे विधानसभा क्षेत्र में प्रचार की कमान संभाली, बल्कि पति के लिए समर्थन भी हासिल किया। उन्होंने न केवल महिलाओं को पति के समर्थन में खड़ा किया, बल्कि पुरुषों को भी जोड़ने का काम किया।

खुद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी इसकी तारीफ कर चुके हैं। विधायक राठौर और उनकी पत्नी बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान को सार्थक बनाते हुए गरीब और बेसहारा कन्याओं की शादी का भी पूरा खर्च उठाते हैं। रविंद्र कौर का कहना है कि एक पत्नी के लिए पति के सफलता ही सबकुछ है। पति की सफलता ही उनकी पहचान है।

शिक्षिका अर्चना ने छात्रों में बोया नवाचार का बीज

सरकारी स्कूलों की बदहाली का रोना सब रोते हैं, लेकिन कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं, जो सरकारी स्कूलों के सीमित संसाधनों में भी कमाल कर जाते हैं। इसकी बानगी हैं राजकीय प्राथमिक विद्यालय पौंधा की शिक्षिका अर्चना नौटियाल। अर्चना ने अपनी मेहनत के बूते स्कूल की न केवल तस्वीर बदली, बल्कि बच्चों में नवाचार का ऐसा बीज बोया कि आज इस स्कूल के बच्चे सफलता की मिसाल पेश कर रहे हैं।

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सरकारी स्कूलों की बिगड़ती छवि के बीच सहसपुर ब्लॉक का पौंधा प्राथमिक विद्यालय मिसाल बनकर सामने आया है। स्कूल के उत्थान के पीछे छिपी है, स्कूल के शिक्षकों की सालों की मेहनत और रचनात्मकता। यही कारण है कि यहां पिछले 13 साल से शिक्षा क्षेत्र में हटकर काम कर रही शिक्षिका अर्चना नौटियाल को इस साल गवर्नर्स अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। अर्चना नौटियाल मूल रूप से पौड़ी के सुमाड़ी गांव की रहने वाली हैं। वह पिछले 19 साल से प्राथमिक स्कूल में अपनी सेवाएं दे रही हैं। अर्चना जिस स्कूल में पढ़ाती हैं, वहां के छात्रों के चहुंमुखी विकास को अपना लक्ष्य बना लेती हैं। जिस प्राथमिक स्कूल में छात्र संख्या घटकर 50 रह गई थी। वहां उनकी मेहनत के बूते आज 97 छात्र स्कूल में पढ़ रहे हैं। अर्चना बताती हैं कि उनका उद्देश्य सरकारी स्कूल के छात्रों को औरों से बेहतर बनाना है।

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