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International Womens Day 2020: ढोल वादन और जागर गायन में पुरुष वर्चस्व को चुनौती दे रही हैं उषा देवी

टिहरी जिले के जौनपुर ब्लॉक के हटवाल गांव की 38-वर्षीय उषा देवी न केवल ढोल वादन में पारंगत हैं बल्कि जागर गायन में उन्हें महारथ हासिल है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 08 Mar 2020 09:49 AM (IST)Updated: Sun, 08 Mar 2020 09:49 AM (IST)
International Womens Day 2020: ढोल वादन और जागर गायन में पुरुष वर्चस्व को चुनौती  दे रही हैं उषा देवी
International Womens Day 2020: ढोल वादन और जागर गायन में पुरुष वर्चस्व को चुनौती दे रही हैं उषा देवी

टिहरी (चंबा), रघुभाई जड़धारी। पहाड़ में ढोल वादन और जागर गायन में अभी तक पुरुषों का ही एकाधिकार रहा है। कुछेक महिलाएं आगे आईं भी, लेकिन उनकी एक साथ दोनों विधाओं पर पकड़ नहीं है। जबकि, टिहरी जिले के जौनपुर ब्लॉक के हटवाल गांव की 38-वर्षीय उषा देवी इन सबसे हटकर हैं। वह न केवल ढोल वादन में पारंगत हैं, बल्कि जागर गायन में उन्हें महारथ हासिल है। इसके अलावा वह ढोलक, तबला, धौंसी, हुड़का और डमरू भी सहजता से बजा लेती हैं। खास बात यह कि दोनों लोक विधाओं में समान अधिकार रखने वाली उषा उत्तराखंड की एकमात्र महिला हैं।

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उषा देवी ने अपनी जिजीविषा से समाज की सोच बदलने का कार्य तो किया ही, उन सामाजिक विसंगतियों पर भी प्रहार किया, जो महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकती हैं। आज उषा को अपने गांव के अलावा क्षेत्र के अन्य गांवों में भी ढोल वादन और जागर गायन के लिए बुलाया जाता है। इसमें पति सुमन दास भी उषा का पूरा सहयोग करते हैं। वह स्वयं उनके सहायक के रूप में नगाड़ा बजाते हैं। उषा बताती हैं कि उन्होंने ढोल बजाने की शुरुआत दस साल पहले की। इससे पहले वह गांव में महिलाओं के साथ भजन-कीर्तन के कार्यक्रमों में भाग लेती थीं। तब उन्हें भजन गाना और ढोलक बजाना पसंद था। फिर उन्होंने तबला बजाना सीखा।

बकौल उषा, ‘एक दिन मन में विचार आया कि जब मैं तबला व ढोलक बजा सकती हूं तो फिर ढोल क्यों नहीं। बस! उसी दिन से मैंने घर पर ढोल बजाने का अभ्यास शुरू कर दिया और कुछ ही दिनों में इसमें पारंगत भी हो गई। बताया कि वह ढोल पर हर तरह की ताल बजा लेती हैं। इसके अलावा वह जागर व भजन भी गाती हैं। इसलिए उन्हें नवरात्र, हरियाली, शादी समारोह आदि मौकों पर प्रस्तुति देने बुलाया जाता है।

बेटों को सिखा रहीं ढोल वादन की बारीकियां

उषा अपने तीनों बेटों को पढ़ाई-लिखाई के साथ ढोल वादन की बारीकियां भी सिखा रही हैं। कहती हैं, ढोल वादन उनका पुश्तैनी व्यवसाय है, लेकिन पहले पुरुष ही यह कार्य करते थे। जबकि, काम तो काम होता है, इसमें महिला-पुरुष जैसा कोई भेद नहीं होना चाहिए।

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ढोल वादन से मिली नई पहचान

आठवीं तक पढ़ी उषा देवी विभिन्न कार्यक्रमों में महिलाओं की पहली पसंद होती हैं। बताती हैं कि सालभर पहले देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी व जागर गायक प्रीतम भरतवाण के साथ मंच साझा करने का मौका मिला और उनके साथ उन्हें भी सम्मानित किया गया। खास बात यह कि जब से वह ढोल वादन कर रही हैं, परिवार की आर्थिकी भी मजबूत हुई है। इसलिए ढोल वादन उनके लिए महज पुश्तैनी व्यवसाय नहीं, बल्कि आय का महत्वपूर्ण जरिया भी बन गया है। इस काम का उन्हें अच्छा-खासा मेहनताना मिल जाता है।

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