'थ्री आर' से पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता जू, जानिए इसके बारे में
पर्यावरण के लिए खतरा बन रहे प्लास्टिक से पार पाने के लिए देहरादून जू में अपनाई गई थ्री आर की नायाब पहल रंग ला रही है।
देहरदून, हिमांशु जोशी। पूरी दुनिया में पर्यावरण के लिए खतरा बन रहे प्लास्टिक से पार पाने के लिए देहरादून जू में अपनाई गई 'थ्री आर' की नायाब पहल रंग ला रही है। 'थ्री आर' यानी रिड्यूस, रिसाइकिल और रीयूज। इसकी बदौलत देहरादून स्थित जू न सिर्फ प्लास्टिक कचरे से मुक्त हुआ है, बल्कि यह अवधारणा जू के लिए आय का साधन भी बनी है। आइए! आपको भी जू में 'थ्री आर' की इस नई पहल से परिचित कराते हैं।
देहरादून-मसूरी मार्ग पर मालसी में 25 हेक्टेयर क्षेत्र में देहरादून जू फैला हुआ है। जू के निदेशक पीके पात्रो बताते हैं कि जू में सालभर बड़ी संख्या में लोग आते हैं। इनमें अधिकांश अपने साथ प्लास्टिक की बोतलें, पॉलीथिन व अन्य सामग्री लाते थे और इनका इस्तेमाल करने के बाद जू में ही इधर-उधर फेंक देते थे। यह स्थिति जू में प्लास्टिक और पॉलीथिन पर प्रतिबंध के बावजूद थी।
ऐसे में प्लास्टिक कचरे का निस्तारण हमारे लिए काफी मुश्किल होता था। सो, इसके निदान के लिए हमारे मन में थ्री-आर का विचार आया। हालांकि, रिड्यूस यानी कूड़े में कमी लाने की व्यवस्था बनाई गई थी, लेकिन यह प्रभावी नहीं हो पा रही थी। लिहाजा, इसमें रिसाइकिल और रीयूज को शामिल कर दिया गया। इसके बेहतर नतीजे सामने आए हैं।
यह है 'थ्री आर'
रिड्यूस: जू में आने वाले सैलानी यदि अपने साथ प्लास्टिक वाली पानी की बोतल ले जाना चाहते हैं तो उनसे दस रुपये जमा कराए जाते हैं। वापसी में खाली बोतल जमा कराने पर उन्हें यह राशि लौटा दी जाती है। यदि कोई ऐसा नहीं करता तो राशि नहीं लौ टाई जाती। जू के भीतर छोड़ दी गई बोतलें शाम को जू का स्टाफ एकत्र करता है। जो कर्मचारी जितनी खाली बोतलें लेकर आता है, उसे बदले में प्रति बोतल 10 रुपये दिए जाते हैं। इससे प्लास्टिक कचरे को एकत्र करने में मदद मिली।
रिसाइकिल: प्लास्टिक की बोतलों को रिसाइकिल करने के मद्देनजर जू में सालभर पहले बोतल क्रशिंग मशीन लगाई गई। प्लास्टिक की खाली बोतलों को मशीन में डालकर चूरा तैयार किया जाता है। फिर इसे 15 से 17 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है।
रीयूज: चिड़ियाघर में प्लास्टिक बोतलों के साथ ही पॉलीथिन, थर्माकोल समेत अन्य अनुपयोगी सामग्री का उपयोग जू की खूबसूरती बढ़ाने में किया गया है। जू का सर्पबाड़ा हो या कैक्टस गार्डन अथवा कोई अन्य क्षेत्र, वहां प्लास्टिक की बोतलों से विभिन्न आकृतियां तैयार कर इन्हें सीमेंट के खाली कट्टों का जाल बनाकर ढका जाता है। फिर मजबूती के लिए सीमेंट की हल्की लेयर इन पर डाली जाती है। इसके बाद इन पर कलर किया जाता है।
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प्लास्टिक हाउस से बना स्नैक हाउस
स्नैक हाउस में यूजलैस प्लास्टिक बोतल का इस्तेमाल किया गया है। प्लास्टिक को पिघलाकर कैमिकल्स के साथ इसे मूर्त रूप दिया गया है। ऐसे में स्नैक हाउस की लागत भी कम आई। पार्क के डायरेक्टर पीके पात्रो के मुताबिक 60 लाख रुपये बिल्डिंग और बाकी खर्च के तौर पर 30 लाख रुपये लगे हैं।
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कचरे के पहाड़ बने सेल्फी प्वाइंट
जू में कचरे से छोटी-छोटी पहाड़ियां बनाकर इनमें घास और फूल लगाए गए हैं। पर्यटक इन खूबसूरत पहाडिय़ों में फोटो खिंचवाते हैं। पर्यटकों के लिए ये पहाड़ियां सेल्फी प्वाइंट भी बन गई हैं।