वर्ष 1962 और 1971 में भी आइएमए से सीधे यूनिट में गए थे युवा अफसर
भारतीय सैन्य अकादमी के इतिहास में इससे पहले वर्ष 1962 और वर्ष 1971 में भी नव सैन्य अधिकारियों को सीधे यूनिट में भेजा गया था।
देहरादून, जेएनएन। यह पहला मौका नहीं है, जब पासिंग आउट परेड के बाद नव सैन्य अधिकारी सीधे यूनिट के लिए रवाना हुए हों। भारतीय सैन्य अकादमी के इतिहास में इससे पहले वर्ष 1962 और वर्ष 1971 में भी नव सैन्य अधिकारियों को सीधे यूनिट में भेजा गया था।
आमतौर पर भारतीय सैन्य अकादमी में करीब एक वर्ष के कड़े प्रशिक्षण के बाद जेंटलमैन कैडेट पासिंग आउट परेड के बाद अधिकारी बनते हैं। इसके बाद उन्हें छुट्टियां दी जाती हैं और इस अवधि में वह अकादमी से घरों के लिए रवाना होते हैं। कोरोना के कारण इस बार स्थिति कुछ अलग रही। नव सैन्य अफसरों को घर की बजाए सीधे यूनिट जाना पड़ा है। बताया जा रहा है कि कोरोना संक्रमण की स्थिति में सुधार होने के उपरांत ही इन्हें यूनिटों से कुछ दिनों की छुट्टी पर भेजा जाएगा।
इससे पहले वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध और इसके बाद वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान भी अकादमी से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद नव सैन्य अफसर सीधे यूनिट में गए थे।
अभी अकादमी में ही रहेंगे मित्रों देशों के नव सैन्य अफसर
भारतीय सैन्य अकादमी से नौ मित्र देशों के नब्बे जेंटलमैन कैडेट भी पासिंग आउट परेड के बाद अपने-अपने देश की सेनाओं में अफसर बने हैं। कोरोना काल में वे भी घर नहीं लौट पा रहे हैं। रक्षा मंत्रालय और अकादमी प्रबंधन ने फैसला किया है कि अंतरराष्ट्रीय विमान सेवा बहाल होने तक वे अकादमी में ही रहेंगे। इस बारे में संबंधित देशों के दूतावासों से भी बात हो चुकी है।
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उत्तराखंड के 31 युवा आइएमए से हुए पास आउट
देश के सरहदों की हिफाजत की बात जब-जब होती है उत्तराखंडी लाल हमेशा पहली पांत में खड़े दिखते हैं। मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करना देवभूमि की परंपरा रही है। सेना में सिपाही का रैंक पर हो या फिर अधिकारी, इनमें उत्तराखंड का दबदबा कायम है। भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) से सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर उत्तराखंड के 31 युवा भी शनिवार को पास आउट होकर सेना का अभिन्न अंग बने हैं।
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