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अब पर्यावरणीय सेवाओं की कीमत के लिए अड़ेगा उत्तराखंड

उत्तराखंड सरकार अब पर्यावरणीय सेवाओं को अपनी ताकत बनाकर 15वें वित्त आयोग में ग्रीन बोनस और रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के लिए मजबूत पैरवी करेगी।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 13 Aug 2018 08:39 PM (IST)Updated: Mon, 13 Aug 2018 09:10 PM (IST)
अब पर्यावरणीय सेवाओं की कीमत के लिए अड़ेगा उत्तराखंड

देहरादून, [रविंद्र बड़थ्वाल]: उत्तराखंड देश को पर्यावरणीय सेवाएं मुहैया करा रहा है, लेकिन उसकी कीमत उसे बड़े भू-भाग में सामाजिक-आर्थिक विषमता और बुनियादी सुविधाओं की कमी के तौर पर भुगतनी पड़ रही है। अब राज्य इस क्षति की पूर्ति चाहता है, ताकि सीमित संसाधनों और कम आमदनी की वजह से विकास कार्यों के लिए धन के गंभीर संकट से जूझते रहने की नौबत न आए। इसके लिए राज्य सरकार पर्यावरणीय सेवाओं को अपनी ताकत बनाकर 15वें वित्त आयोग में ग्रीन बोनस और रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के लिए मजबूत पैरवी करेगी। 

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पर्यावरण की कीमत पर विकास के लिए अधिक धनराशि की मांग कर रहे यानी ग्रीन डेफिसिट राज्यों को अब उत्तराखंड की ओर से पर्यावरणीय सेवाओं के एवज में क्षतिपूर्ति के दावे का दबाव भी झेलना होगा। इसके लिए दंगल 15वें वित्त आयोग में लड़े जाने की तैयारी है। दरअसल, उत्तराखंड में बड़े भू-भाग को विकास से वंचित रहने की सबसे बड़ी वजह पर्यावरणीय बंदिशें हैं। इनके चलते दो देशों चीन और नेपाल से सटे बड़े सीमांत क्षेत्रों से पलायन की समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। वहीं राज्य सरकार को आय के साधनों को बढ़ाने में भी उक्त समस्या बड़ी अड़चन बनी हुई है। इन क्षेत्रों में आमदनी के साधनों का विकास भी नहीं हो पा रहा है। हालात में सुधार नहीं हुआ तो आने वाले वर्षों में राज्य के सामने वित्तीय संकट बढ़ना तकरीबन तय माना जा रहा है। लिहाजा पूरी तस्वीर को 15वें वित्त आयोग के समक्ष बयां किया जाएगा। 

चमकदार आंकड़ों से गुरेज

दरअसल, 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर ही ये निर्भर करेगा कि राज्य को अगले पांच वर्षों तक केंद्र से कितनी मदद मिलनी है। 14वें वित्त आयोग में कुछ मामलों में चूक राज्य को भारी पड़ गई। छोटा राज्य, केंद्र व राज्य सरकार के कार्मिकों की बहुलता वाले जिले देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार व ऊधमसिंहनगर जैसे कृषि संसाधन में अपेक्षाकृत मजबूत जिलों यानी कुल चार जिलों के बूते पूरा राज्य प्रति व्यक्ति आमदनी और राज्य सकल घरेलू उत्पाद जैसे अर्थ व्यवस्था के आंकड़ों में राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन का दावा ठोकता रहा है। इस दावे के आधार पर 14वें वित्त आयोग ने उत्तराखंड की ज्यादा केंद्रीय सहायता की मांग को नजरअंदाज कर दिया था। वहीं पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश 40 हजार करोड़ की अतिरिक्त मदद हासिल करने में कामयाब रहा था। राज्य में विकास कार्यों के लिए धन की कमी का खामियाजा सबसे ज्यादा नौ पर्वतीय जिलों को भुगतना पड़ा है। वहां ढांचागत सुविधाओं के चढ़ने की रफ्तार बेहद सुस्त है। 

जीएसटी से आमदनी को झटका

पिछले अनुभव से सबक लेकर इस बार 15वें वित्त आयोग के सामने सावधानी बरतने की तैयारी है। वैसे भी जीएसटी लागू होने के बाद स्टेट जीएसटी से होने वाली आमदनी में कमी आने से सरकार चिंतित है। सेंटर जीएसटी और आइजीएसटी से होने वाली आमदनी में 191 फीसद इजाफा होने से केंद्रीय राजस्व में खासी वृद्धि हुई है। आमदनी के सीमित स्रोत को देखते हुए राज्य सरकार ग्रीन बोनस के साथ रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट देने के लिए 15वें वित्त आयोग में मजबूत पैरवी करेगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस संबंध में नियोजन महकमे को प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दे चुके हैं। 

आयोग को देंगे नुकसान का ब्योरा

वित्त मंत्री प्रकाश पंत का कहना है कि 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य इस वर्ष अक्टूबर में प्रदेश का दौरा करेंगे। आयोग राज्य के वित्तीय आय-व्यय के साथ में आर्थिक संसाधनों की समीक्षा भी करेगा। 15वें वित्त आयोग के लिए तैयार किए जा रहे प्रस्ताव में 14वें वित्त आयोग में हुए बुनियादी बदलाव से राज्य को हुए नुकसान का ब्योरा दिया जाएगा।  

ग्रीन डेफिसिट राज्यों का बने नेशनल एक्सचेंज

ग्रीन डेफिसिट राज्यों से धनराशि एकत्र कर नेशनल एक्सचेंज बनाने और राज्य को प्रति वर्ष 2000 करोड़ बतौर ग्रीन बोनस समेत तमाम बिंदुओं को प्रस्ताव में शामिल कर आयोग के सामने रखा जाएगा। 

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