उत्तराखंड में एकबार फिर खुलेगी जेट्रोफा प्रोजेक्ट की फाइल
उत्तराखंड में एकबार फिर जेट्रोफा प्रोजेक्ट की फाइल खोली जाएगी। साथ ही ये भी पता लगाया जाएगा कि ये फाइल बंद क्यों हुर्इ थी। फिलहाल इसपर मंथन भी शुरू हो गया है।
देहरादून, [केदार दत्त]: उत्तराखंड को आखिरकार जेट्रोफा परियोजना की याद आ ही गर्इ है। जिसके बाद अब एक बार फिर से जेट्रोफा प्रोजेक्ट की फाइल खोली जाएगी। साथ ही इस बात का पता लगाया जाएगा कि आखिर ये परियोजना बंद क्यों हुर्इ थी।
देश में बायोफ्यूल से विमान उड़ाने की शुरुआत भले ही उत्तराखंड से हुई हो, लेकिन यहां जेट्रोफा से बायोफ्यूल बनाने की परियोजना कब दम तोड़ गई, पता ही नहीं चला। 15 साल पहले 22 करोड़ की लागत से शुरू हुई यह योजना अगर परवान चढ़ती तो आज उत्तराखंड के साथ एक और उपलब्धि भी जुड़ती, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अब जबकि, जैव ईधन की ओर तरफ देश-दुनिया ने फोकस किया है तो उत्तराखंड को भी इस परियोजना की याद आई है। राज्य सरकार ने परियोजना की फाइल खोलने की ठानी है। इसकी समीक्षा कराई जाएगी कि क्यों और किस स्तर पर इसे बंद किया गया। वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के अनुसार अब इस मुहिम को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है, इसके लिए भी मंथन प्रारंभ कर दिया गया है।
यह थी जेट्रोफा परियोजना
जेट्रोफा (रतनजोत) से बायोफ्यूल निर्माण के मद्देनजर वर्ष 2003-04 में जोर-शोर से 22 करोड़ की जेट्रोफा परियोजना शुरू की गई। इसे क्रियान्वित करने को बाकायदा उत्तराखंड बायोफ्यूल बोर्ड अस्तित्व में आया और फिर एक कंपनी से अनुबंध भी किया गया। वन विभाग और वन विकास निगम के आला अफसरों को शामिल कर बनाए गए बोर्ड को प्रदेश में वन पंचायतों, ग्राम पंचायतों के साथ ही बंजर भूमि और वन क्षेत्रों में जेट्राफा रोपण को बढ़ावा देना था। जेट्रोफा के पौधे वन प्रभागों के जरिये दिए जाने थे। वहीं, संबंधित कंपनी को जेट्रोफा के बीजों से बायोफ्यूल बनाने के साथ ही इसके विपणन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
10 फीसद क्षेत्र में भी नहीं लगे पौधे
परियोजना के तहत राज्यभर में दो लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जेट्रोफा के पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन 2006-07 तक यह 10 फीसद क्षेत्र में भी पौधरोपण नहीं हो पाया। परियोजना में गड़बड़झाले की कलई तब खुली, जब जगह-जगह जेट्रोफा के पौधे बरसाती नालों व सड़कों के किनारे पड़े पाए गए। जांच-पड़ताल हुई तो पता चला कि पौधे लगाए ही नहीं गए। इस बीच वह कंपनी भी गायब हो गई, जिससे बायोफ्यूल बनाने का करार हुआ था। एक के बाद एक घपले सामने आने के बाद परियोजना ठंडे बस्ते में चली गई।
सियासी गलियारों में भी गूंजा मसला
यह घपला तब सियासी गलियारों में भी खूब गूंजा। कथित 56 घोटालों में शामिल इस प्रकरण की जांच कराने की बात भी हुई, लेकिन आज तक न तो जांच का अता-पता है और न किसी को जिम्मेदार ही ठहराया गया। हालांकि, सतर्कता अधिष्ठान को जांच जरूर सौंपी गई, मगर उसे अभिलेख ही मुहैया नहीं कराए गए। परिणामस्वरूप जांच भी मुकाम तक नहीं पहुंच पाई।
अब सामने आएगी हकीकत
वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत ने माना कि यदि यह परियोजना परवान चढ़ती तो उत्तराखंड भी बायोफ्यूल बनाने वाले राज्यों में शुमार होता। उन्होंने कहा कि परियोजना क्यों और किस स्तर पर बंद हुई इसकी समीक्षा की जाएगी। जांच पड़ताल में जो भी बिंदु उभरकर सामने आएंगे, उसके अनुसार कदम उठाए जाएंगे। साथ ही सरकार का प्रयास होगा कि बायोफ्यूल निर्माण के मद्देनजर परियोजना को आगे बढ़ाया जाए। इसके लिए मंथन चल रहा है और जल्द ही सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे।
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