अभेद्य होगी चीन सीमा, जौलीग्रांट में उतरे सुखोई
जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर आखिरकार शनिवार को दो लड़ाकू विमान (सुखोई) ने दोपहर करीब 12 बजे सुरक्षित लैंडिंग की।
देहरादून, [जेएनएन]: सीमाओं को अभेद्य बनाने में जुटी सेना और वायुसेना उत्तराखंड में उत्तरकाशी की चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी के साथ ही देहरादून के जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर भी परीक्षण कर रही है। गुरुवार से सुखोई विमान देहरादून के आसमान में मंडरा रहे हैं। शनिवार को यहां सुखोई की लैंडिंग भी कराई गई।
उत्तरकाशी जिले में चिन्यालीसौड़ स्थित हवाई पट्टी के परीक्षण के दौरान वायुसेना यहां दिसंबर और जनवरी में मालवाहक विमान उतार चुकी है। अब यही प्रयोग देहरादून के जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर भी दोहराए जा रहे हैं। बीते गुरुवार को यहां वायुसेना के मालवाहक सी-17 की लैंडिंग कराई गई।
एयरपोर्ट के निदेशक विनोद शर्मा ने बताया कि यहां रनवे पर एक वक्त तीन फ्लाइट हो सकती हैं, लेकिन वायुसेना का मालवाहक विमान इतना विशालकाय का है कि जब यह रनवे पर खड़ा होता है तो दूसरे विमानों के लिए स्थान नहीं बचता। उन्होंने बताया कि इसीलिए हवाई अड्डे के विस्तार पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि शनिवार को पहली बार एयरपोर्ट पर दो सुखोई विमान सफलतापूर्वक उतारे गए। विमानों ने दोपहर 12 बजे के आसपास एयरपोर्ट पर लैंडिंग की। फिलहाल विमानों को एनटीआरओ कैंपस में खड़ा किया गया है।
बता दें कि चीन सीमा से सटे उत्तराखंड में देहरादून का जौलीग्रांट एयरपोर्ट सभी सुविधाओं से सुसज्जित है, जबकि उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड़ और पिथौरागढ़ की नैनीसैनी हवाई पट्टी परीक्षण के दौर में है। गौरतलब है कि चिन्यालीसौड़ से चीन सीमा मात्र 115 किलोमीटर की हवाई दूरी पर स्थित है, वहीं जौलीग्रांट से यह दूरी करीब 150 किलोमीटर है। इसी को देखते हुए केंद्र सरकार अब जौलीग्रांट एयरपोर्ट को सामरिक दृष्टि से विकसित करने पर विचार रही है।
80 के दशक में बना था एयरपोर्ट
प्रसिद्ध उद्योगपति बिरला ग्रुप ने 80 के दशक में जौलीग्रांट एयरपोर्ट का निर्माण किया था। बाद में इस एयरपोर्ट को भारत सरकार ने अधिगृहीत कर लिया। तब से लेकर अब तक इस एयरपोर्ट का कई बार आवश्यकता के अनुसार विस्तार किया जा चुका है। विभिन्न कंपनियों के विमानों व सेना के छोटे-बड़े विमानों के साथ विशालकाय सी-17 कार्गो ग्लोब जैसे विमान भी जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर कई बार लैंडिंग कर चुके हैं।