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उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर एसडीएस ने जारी की छठी रिपोर्ट, जानिए क्या बातें आई सामने

Uttarakhand Election 2022 कम मतदान का जो सवाल वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उठा था वह इस चुनाव में भी बरकरार है। बेशक मत प्रतिशत बीते चुनाव के ही करीब है मगर पर्वतीय विधानसभा क्षेत्रों की कई सीटें चिंता बढ़ा रही हैं।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sun, 20 Feb 2022 01:03 PM (IST)Updated: Sun, 20 Feb 2022 01:03 PM (IST)
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर एसडीएस ने जारी की छठी रिपोर्ट, जानिए क्या बातें आई सामने
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर एसडीएस ने जारी की छठी रिपोर्ट।

जागरण संवाददाता, देहरादून। Uttarakhand Election 2022 कम मतदान का जो सवाल वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उठा था, वह इस चुनाव में भी बरकरार है। बेशक मत प्रतिशत बीते चुनाव के ही करीब है, मगर पर्वतीय विधानसभा क्षेत्रों की कई सीटें चिंता बढ़ा रही हैं। सोशल डेवलपमेंट फार कम्युनिटीज (एसडीसी) फाउंडेशन की विधानसभा चुनाव के परिपेक्ष्य में जारी की गई छठी रिपोर्ट में कम मतदान के पीछे बढ़ते पलायन की पीड़ा को दर्शाया गया है।

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फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य की 76 प्रतिशत पर्वतीय विधानसभा सीटों पर राज्य के औसत से कम मतदान हुआ है। सबसे कम मतदान में इस बार भी अल्मोड़ा, पौड़ी व टिहरी जिले शामिल रहे। मत प्रतिशत की तुलना पलायन से की जाए तो सवाल का स्पष्ट जवाब मिल जाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, जिन मैदानी क्षेत्रों में आबादी का घनत्व बढ़ रहा है, वहां मत प्रतिशत भी अधिक है। उदाहरण के लिए हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र में सबसे अधिक 81.94 प्रतिशत, भगवानपुर में 79.92 प्रतिशत व लक्सर में 79.51 मतदान किया गया है। इन सीटों की बदौलत कुल मतदान 74.77 प्रतिशत के साथ हरिद्वार जिले में सर्वाधिक मतदान किया गया।

वहीं, अल्मोड़ा जिले में सबसे कम 53.71 प्रतिशत, इसके बाद पौड़ी में 54.87 प्रतिशत व तीसरे स्थान पर टिहरी में 56.34 प्रतिशत मतदान किया गया। यहां की सबसे कम मत प्रतिशत वाली सीटों की बात करें तो चौबट्टाखाल में 45.33 प्रतिशत, सल्ट में 45.12 प्रतिशत व लैंसडौन में 48.12 प्रतिशत मतदान किया गया। एसडीसी फाउंडेशन की छठी सूची जारी करने में विदुष पांडे, प्रवीण उप्रेती ने अहम भूमिका निभाई।

मतदाताओं की संख्या में गड़बड़ा रहे अनुपात को ठीक करना जरूरी

एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष ने कहा कि छठी सूची जारी करते समय सिटीजन इंगेजमेंट, वोटर अवेयरनेस, पलायन, महिला सशक्तीकरण व डेमोग्राफिक चेंज के चश्मे से देखने का भी प्रयास किया गया। पता चलता है कि पर्वतीय क्षेत्रों में एक तो मतदाताओं की संख्या घर रही है और दूसरा यह कि मतदान में भी कमी आ रही है। इसके अलावा तमाम मैदानी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही मतदाताओं की संख्या भी सामान्य नहीं है। नीति नियंताओं को इन तमाम कारणों पर गहनता से काम करने की जरूरत है।

मतदान की उम्मीद में वोटर लिस्ट में नाम

पर्वतीय क्षेत्रों में मतदाता सूची अपडेट करते समय ऐसे व्यक्तियों के नाम भी जस के तस रहते हैं, जो रोजगार के लिए घर से दूर हैं। उम्मीद रहती है कि मतदान के लिए प्रवासी व्यक्ति घर जरूर वापस आएंगे। हालांकि, ऐसा संभव नहीं हो पाता। जिसके चलते मत प्रतिशत में गिरावट निरंतर जारी रहती है।

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