Move to Jagran APP

बूथों के फीडबैक के बाद उत्तराखंड में बढ़ी भाजपा-कांग्रेस की धड़कनें, अब नेताओं के सुर दिखे बदले-बदले

Uttarakhand Vidhan Sabha Election 2022 भाजपा और कांग्रेस की धड़कनें तेज हो गई है। दरअसल ऐसा बूथों से मिले फीडबैक के बाद हुआ है। बता दें विधानसभा की सभी 70 सीटों के लिए 14 फरवरी को हुए मतदान में 65.37 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sun, 20 Feb 2022 09:30 AM (IST)Updated: Sun, 20 Feb 2022 02:07 PM (IST)
बूथों के फीडबैक के बाद उत्तराखंड में बढ़ी भाजपा-कांग्रेस की धड़कनें, अब नेताओं के सुर दिखे बदले-बदले
बूथों के फीडबैक के बाद उत्तराखंड में बढ़ी भाजपा-कांग्रेस की धड़कनें।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। Uttarakhand Vidhan Sabha Election 2022 उत्तराखंड की पांचवीं विधानसभा के चुनाव के लिए हुए मतदान की जो तस्वीर सामने आ रही है, उसने प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा व कांग्रेस के नेताओं और प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ा दी है। यद्यपि, मतदान का आंकड़ा कमोबेश पिछले चुनाव के बराबर ही है, लेकिन बीते पांच दिनों के अंतराल में बूथ स्तर से मिले फीडबैक ने प्रत्याशियों और दलों के नेताओं में उलटफेर की आशंका भी गहराने लगी है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मतदान के तत्काल बाद उत्साह से लबरेज प्रत्याशी और संगठन पदाधिकारी अपनी जीत सुनिश्चित होने का दावा कर रहे थे, अब उनके सुर में नरमी महसूस की जा रही है। यहां तक कि तमाम आशंकाओं को सामने रखकर वे एक तरह से अपने ही दावों पर प्रश्न उठाते दिख रहे हैं।

loksabha election banner

विधानसभा की सभी 70 सीटों के लिए 14 फरवरी को हुए मतदान में 65.37 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग कर मैदान में डटे 632 प्रत्याशियों के भाग्य की पटकथा ईवीएम में बंद कर दी। मतदान को लेकर उत्साह मामूली अंतर के साथ पिछले चुनाव के बराबर ही रहा, जो चिंतित करने वाला नहीं है। मतदान के आंकड़ों को लेकर राजनीतिक दल उत्साहित दिखे। दोनों ही दल भाजपा व कांग्रेस मतदान के उनके पक्ष में होने और अपनी सरकार बनने के दावे भी करने लगे।

यही नहीं, दो कदम आगे बढ़ते हुए कांग्रेस में तो मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए रस्साकशी तक शुरू हो गई। ये बात अलग है कि कांग्रेस ने इस बार किसी चेहरे पर नहीं, बल्कि सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा। वहीं, भाजपा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर मैदान में उतरी। जनता ने किसकी तकदीर चमकाई और किसे निराश किया, ये अभी स्ट्रांग रूम में ईवीएम में बंद है। 10 मार्च को ईवीएम खुलने पर जनता का निर्णय सबके सामने होगा, लेकिन इस बीच राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों ने अपने स्तर पर जीत का गुणा-भाग शुरू कर दिया। इसके लिए संगठन, विधानसभा क्षेत्र व बूथवार मतदान के आंकड़ों पर माथापच्ची हुई। इसके आधार पर दल अपनी स्थिति का आकलन मतगणना से पहले करते रहे हैं।

दिलचस्प यह कि मतदान से पहले और उसके बाद विभिन्न स्तर से मिले फीडबैक के बाद नेताओं के सुर में इस बार काफी कुछ बदलाव की बात सुनने को मिल रही है। जिन सीटों पर डंके की चोट पर जीत का दावा मतदान के अगले दिन से राजनीतिक दल कर रहे थे, अब उन्हीं को लेकर किंतु-परंतु करते सुनाई पड़ रहे हैं। दरअसल, बूथ स्तर से जो फीडबैक मिला है और उसका जो ट्रेंड है, वह काफी कुछ बदला सा दिखा है। यद्यपि, इस चुनाव में किसी भी दल का कोई ऐसा मुद्दा हावी नहीं दिखा, जिससे मतदाता खुले तौर पर प्रभावित दिखे हों। अलबत्ता, चेहरे और वादे सामने जरूर थे। इन पर मतदाताओं ने कितना विश्वास किया, इसके संकेत बूथ से मिलने वाली रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर झलका है। यही कारण है कि इससे प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों की बेचैनी भी साफ झलकने लगी है।

विशेषकर, भाजपा व कांग्रेस इस उधेड़बुन में ज्यादा व्यस्त नजर आ रहे हैं। उनके नेताओं के बयान इस बात के संकेत दे रहे कि तस्वीर एकदम साफ नहीं है। यद्यपि, दोनों ही दल इस बात का दावा कर रहे कि आने वाली सरकार उनकी ही बनने वाली है। इतना अवश्य है कि फीडबैक के बाद दावों के आंकड़ों में अंतर सुनने को मिल रहा है।

इस तरह बदले सुनाई पड़ रहे सुर

मतदान से पहले और उसके तत्काल बाद कांग्रेस न केवल पूर्ण बहुमत बल्कि बंपर सीटों के साथ जीत हासिल कर भाजपा को सत्ता से बेदखल करने का दावा भी कर रही थी। अब वह सरकार बनने की बात कर रही है, लेकिन संख्या बल 40 से 45 के बीच रहने के संकेत दे रही है। इतना ही नहीं कांग्रेस के कुछ नेता खुले तौर पर यह बयान दे रहे कि प्रधानमंत्री मोदी का क्रेज इस चुनाव में भी बरकरार रहा। भाजपा ने 60 पार का नारा दिया था और वह अपने इस दावे पर अब भी कायम दिख रही, लेकिन दबे सुर में पार्टी नेता यह कहते भी सुनाई पड़ रहे कि भाजपा बहुमत हासिल कर सरकार बना लेगी।

फीडबैक से सोचने पर मजबूर हुए दल

बूथ स्तर से मिले फीडबैक के आंकड़ों ने दोनों ही दल इस बात को गंभीरता से सोचने पर मजबूर हुए हैं कि जनता किन मुद्दों पर वोट डालने के लिए बूथ तक पहुंची होगी। दोनों दल एक-दूसरे के चुनावी वादों का तोल-मोल करने के साथ ही मतव्यवहार को अपने-अपने ढंग से परिभाषित करते दिख रहे हैं। मतदाता ने किसका मान रखा और किसे नकारा, ये तो ईवीएम खुलने के बाद ही सामने आएगा, लेकिन इससे पहले मतदाताओं के व्यवहार को ठीक से समझने के प्रयासों में दल जुटे हैं। नेताओं के हालिया बयान उनकी मनोस्थिति को बयां कर रहे हैं। बेकरारी दोनों तरफ है। जनता का आाशीर्वाद किसे मिला, कौन सरताज बनेगा व किसका ताज हिलेगा, यह मतगणना के बाद ही साफ हो पाएगा।

यह भी पढ़ें- हरदा को भरोसा, नहीं टूटेगा बदलाव का मिथक; बोले- सत्ता में आने पर करेंगे केंद्र से अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.