विस चुनाव के नतीजों से उत्तराखंड भाजपा सतर्क, अब तक चार बार बदली है सत्ता
दो राज्यों के विधानसभा चुनाव खासकर हरियाणा के नतीजों ने उत्तराखंड में सत्तारूढ़ भाजपा को चौकन्ना कर दिया है। कारण है कि उत्तराखंड की जनता का मिजाज हमेशा बदलाव वाला रहा है।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। दो राज्यों के विधानसभा चुनाव, खासकर हरियाणा के नतीजों ने उत्तराखंड में सत्तारूढ़ भाजपा को चौकन्ना कर दिया है। हालांकि ढाई साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा तीन-चौथाई से ज्यादा बहुमत लेकर सत्ता तक पहुंची, मगर यह भी सच है कि उत्तराखंड की जनता का मिजाज हमेशा बदलाव वाला रहा है।
उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद से अब तक हुए चार विस चुनाव में जनमत ने हर बार सत्ता परिवर्तन किया है। इसी बात ने भाजपा नेतृत्व को चिंतन के लिए बाध्य कर दिया है। यह बात दीगर है कि सार्वजनिक तौर पर पार्टी नेताओं का दावा यही है कि उत्तराखंड की जनता पूरी तरह भाजपा के साथ है।
छह महीने पहले लोकसभा चुनाव के जोरदार प्रदर्शन के उलट विधानसभा चुनाव में हरियाणा में भाजपा बहुमत के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई। भाजपा को भरोसा था कि पार्टी लोस चुनाव के प्रदर्शन को दोहराएगी। लिहाजा, विस चुनाव में, अबकी बार 75 पार, का स्लोगन भाजपा ने खूब चलाया। इसके बावजूद बात बनी नहीं।
उत्तराखंड में भाजपा खासी मजबूत स्थिति में है। इसके बावजूद लगभग ढाई साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी किसी तरह की कोताही बरतने के मूड में नहीं है। जिस तरह तमाम राष्ट्रीय मुद्दों के बावजूद भाजपा हरियाणा में उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई, उसने पार्टी को सोचने के लिए मजबूर किया है।
दरअसल, भाजपा की यह चिंता गैरवाजिब भी नहीं कही जा सकती। उत्तराखंड का राजनैतिक चरित्र बदलाव का रहा है। हालांकि, इस बार के लोकसभा चुनाव इसका अपवाद रहे। वहीं, विधानसभा चुनाव में हर बार मतदाता ने परिवर्तन पर मुहर लगाई है।
नौ नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में वजूद में आया तो उस वक्त उत्तर प्रदेश में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा व विधान परिषद के 30 सदस्यों को लेकर राज्य की पहली अंतरिम विधानसभा का गठन किया गया और सरकार भाजपा की बनी।
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने का श्रेय भाजपा को जाता है, लेकिन महज डेढ़ साल बाद वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में मतदाता ने भाजपा को सत्ता से बेदखल करते हुए कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका दे दिया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार पूरे पांच साल चली। इसके बाद वर्ष 2007 के दूसरे विस चुनाव में जनादेश भाजपा को मिला।
यही परिपाटी वर्ष 2012 के तीसरे चुनाव में भी नजर आई, जब भाजपा को दरकिनार कर एक बार फिर कांग्रेस को जनता ने सत्ता तक पहुंचा दिया। वर्ष 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव में फिर तस्वीर उलट गई। इस बार मतदाता ने कांग्रेस को नकार कर भाजपा को भारी भरकम जनादेश दे दिया।
यही वजह है कि 70 सदस्यीय विधानसभा में 57 सीटें जीतने के बावजूद भाजपा को विस चुनाव नतीजों ने अगले विधानसभा चुनाव को लेकर चौकन्ना कर दिया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जब पद संभाला तो भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में रेखांकित कर कार्य शुरू किया।
अपने लगभग ढाई साल के कार्यकाल के दौरान सरकार ने इस दिशा में कई ठोस पहल भी की हैं। यही नहीं, केंद्र में भी भाजपानीत सरकार होने से डबल इंजन का असर उत्तराखंड में विकास कार्यों के संदर्भ में खूब दिखा है। इस सबके बावजूद मतदाता का मूड कब क्या रुख ले ले, कहा नहीं जा सकता।
यह भी पढ़ें: जिला पंचायतों की कुर्सी को भाजपा ने शुरू की जोड़तोड़, पढ़िए पूरी खबर
नतीजों को उत्तराखंड से जोड़कर देखना गलत
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के मुताबिक हरियाणा की जनता का कोई दोष नहीं है। संभवतया प्रबंधन में कहीं कोई कमी रह गई। बावजूद इसके हरियाणा में कमल खिला है। इन नतीजों को उत्तराखंड से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। यहां की जनता भाजपा के साथ मुस्तैदी से खड़ी है। वैसे भी भाजपा सांगठनिक स्तर पर लगातार सक्रिय है और 2014 से जनता लगातार भाजपा के साथ जुड़ी है।
यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में जिला पंचायत अध्यक्ष पदों के आरक्षण पर नौ आपत्तियां