Move to Jagran APP

उत्तराखंड के 441 देव वनों की यूसैक करेगा सैटेलाइट मैपिंग, पिथौरागढ़ जिले में मिले सर्वाधिक 140 देव वन

उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने उत्‍तराखंड के 441 देव वनों की सेटेलाइट मैपिंग शुरू की है। अभी तक पिथौरागढ़ जिले में सर्वाधिक 140 देव वन पाए गए हैं। जहां भी देव वनों की जानकारी मिल रही है वहां जियो टैगिंग कराई जा रही है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 21 Oct 2021 08:54 AM (IST)Updated: Thu, 21 Oct 2021 08:54 AM (IST)
उत्तराखंड के 441 देव वनों की यूसैक करेगा सैटेलाइट मैपिंग, पिथौरागढ़ जिले में मिले सर्वाधिक 140 देव वन
चमोली जिले के जोशीमठ में 500 से अधिक साल पुराना शहतूत का देव वृक्ष।

सुमन सेमवाल, देहरादून। वनों की महत्ता को लेकर ब्रिटिशकाल से देश की आजादी के कुछ साल बाद तक अलग-अलग कानून और नियम लागू किए जाते रहे। ब्रिटिशकाल में संरक्षण से अधिक वन दोहन का विषय रहे और अंतिम रूप से वन संरक्षण अधिनियम 1980 व राष्ट्रीय वन नीति 1988 में संरक्षण जैसी बातों का समावेश किया गया। हालांकि, उत्तराखंड की बात करें तो वनों का संरक्षण प्राचीनकाल से ही हमारी परंपरा का हिस्सा रहा है। यही वजह है कि राज्य में आज भी 441 के करीब देव वन बताए जाते हैं। यह वह वन क्षेत्र हैं, जिन्हें हमारे पूर्वजों ने देवी-देवताओं की महत्ता से जोड़कर हमेशा के लिए बचाए रखने का जतन किया।

loksabha election banner

अब अच्छी बात यह है कि हमारे देव वनों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल सकेगी और इन्हें दस्तावेज के रूप में भी जगह मिलेगी। इसके लिए उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने देव वनों की सेटेलाइट मैपिंग शुरू की है। यूसैक निदेशक डा. एमपीएस बिष्ट के निर्देशन में यह कार्य फील्ड में डा. गजेंद्र रावत कर रहे हैं। निदेशक डा. बिष्ट के मुताबिक अभी तक सर्वाधिक 140 देव वन पिथौरागढ़ जिले में पाए गए हैं। जहां भी देव वनों की जानकारी मिल रही है, वहां जियो टैगिंग कराई जा रही है। धरातलीय सर्वे से यह भी स्पष्ट हो पाएगा कि वर्तमान में वनों की स्थिति क्या है और वन मौजूद हैं भी या नहीं। इसके साथ ही सेटेलाइट मैप भी तैयार किया जा रहा है। जिससे विश्व में कहीं से भी एक क्लिक पर देव वनों की जानकारी प्राप्त की जा सके।

देव वृक्षों का भी सर्वे

यूसैक निदेशक डा. एमपीएस बिष्ट के मुताबिक कुछ स्थलों पर देव वन नहीं हैं, मगर विशिष्ट धार्मिक स्थलों पर देव वृक्ष मौजूद हैं। इनकी उम्र 400 से 500 साल या इससे भी अधिक है। ऐसे विशेष वृक्षों का भी सर्वे किया जा रहा है।

यहां हैं उत्तराखंड के कुछ प्रमुख देव वन व देव वृक्ष

  • ताड़केश्वर महादेव : पौड़ी जिले में ताड़केश्वर मंदिर क्षेत्र में देवदार के वन हैं। यहां वनों को धार्मिक महत्ता से जोड़ते हुए पेड़ काटने व नीचे गिरी लकड़ियों को जलाने पर भी पाबंदी है।
  • हाट कालिका मंदिर : पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट स्थित हाट कालिका मंदिर क्षेत्र में देवदार के पेड़ों की भरमार है।
  • दीवा डांडा :  पौड़ी जिले के दीवा डांडा नाम से विख्यात वन क्षेत्र में बांज के पेड़ हैं। बांज के पेड़ों को बचाने के लिए इसे पौराणिक मान्यताओं से जोड़ा गया है।
  • नैनी डांडा के वन : पौड़ी जिले में नैनी डांडा के वनों की भी धार्मिक महत्ता है। यहां साल के वनों के बीच में एक बांज का पेड़ भी है। यह पेड़ यहां कैसे उगा, इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं है। हालांकि, इस पेड़ के संरक्षण के लिए बंजा देवी नाम से हर साल मेला भी आयोजित किया जाता है।
  • जोशीमठ का वट वृक्ष :  जोशीमठ में शहतूत का वृक्ष है, जिसको लेकर मान्यता है कि इसके नीचे आदि गुरु शंकराचार्य ने तपस्या की थी। इस पेड़ की उम्र 500 से अधिक साल पुरानी बताई जाती है। यह पेड़ भीतर से खोखला होने के बाद भी बाहर से हराभरा नजर आता है।
  • लाटू देवता मंदिर में देवदार वृत्त :  चमोली जिले के वाण गांव में नंदा देवी राजजात यात्रा रूट पर लाटू देवता का मंदिर है। मंदिर परिसर में 400 साल से भी पुराना देवदार का वृक्ष है।

यह भी पढ़ें:-त्तराखंड में अब दीपावली के बाद होगी बाघ गणना, गुलदार, भालू व हिम तेंदुओं का भी किया जाएगा आकलन


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.