Move to Jagran APP

उत्‍तराखंड में टैक्स दिए बिना दौड़ रहीं यूपी की बसें, पढ़िए पूरी खबर

उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिवहन समझौते में यह तय हुआ था कि दोनों राज्य अपनी बसों का हर माह टैक्स परस्पर चुकाएंगे पर यूपी हर माह टैक्स चोरी कर रहा है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 06 Feb 2020 05:47 PM (IST)Updated: Thu, 06 Feb 2020 08:44 PM (IST)
उत्‍तराखंड में टैक्स दिए बिना दौड़ रहीं यूपी की बसें, पढ़िए पूरी खबर
उत्‍तराखंड में टैक्स दिए बिना दौड़ रहीं यूपी की बसें, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। परिवहन समझौता होने के बावजूद उत्तर प्रदेश अपनी दादागिरी से बाज नहीं आ रहा है। सवा साल पूर्व हुए उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिवहन समझौते में यह तय हुआ था कि दोनों राज्य अपनी बसों का हर माह टैक्स परस्पर चुकाएंगे मगर उत्तर प्रदेश हर माह उत्तराखंड में तकरीबन डेढ़ करोड़ की टैक्स चोरी कर रहा है। उत्तराखंड से हर माह तय तिथि तक अपना टैक्स उत्तर प्रदेश में जमा कराया जा रहा। टैक्स चुकाए बिना दौड़ रहीं उत्तर प्रदेश की बसों के प्रकरण में अब सचिव परिवहन शैलेश बगोली ने उत्तर प्रदेश के परिवहन आयुक्त को पत्र भेजा है। सचिव ने लंबित टैक्स चुकाने और करार के मुताबिक परमिटों को लेकर प्रतिहस्ताक्षर को कहा है।

loksabha election banner

करीब 18 साल चली कसरत के बाद 29 अक्टूबर 2018 को उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के बीच परिवहन करार हुआ था। इसमें तय हुआ था कि रोजाना उत्तर प्रदेश रोडवेज की बसें उत्तराखंड राज्य की सीमा में 216 मार्ग पर 2472 ट्रिप के साथ कुल एक लाख 39 हजार किमी चलेंगी। इसी क्रम में उत्तराखंड रोडवेज की बसें उत्तर प्रदेश राज्य की सीमा में रोजाना 335 मार्गों पर 1725 ट्रिप व दो लाख 52 हजार किमी की यात्रा करेंगी। इस करार में यह भी तय हुआ कि यूपी रोडवेज की बसें उत्तराखंड में हर माह अपना टैक्स जमा कराएंगी। 

दरअसल, करार से पूर्व यूपी की बसें उत्तराखंड में टैक्स नहीं दे रही थीं, जबकि उत्तराखंड से हर माह यूपी को टैक्स चुकाया जा रहा था। यूपी को हर माह डेढ़ करोड़ रुपये टैक्स चुकाना होता है, लेकिन वह करार की शर्तों का अनुपालन नहीं कर रहा है। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश ने करार के तहत परमिटों की संख्या पर प्रतिहस्ताक्षर तक नहीं किए हैं। इसके विपरीत उत्तराखंड हर माह करीब एक करोड़ रुपये टैक्स तय समय पर यूपी को चुका रहा। पिछले दिनों परिवहन मुख्यालय में संपन्न राज्य परिवहन प्राधिकरण की बैठक में टैक्स व परमिट का मामला उठा। जिस पर परिवहन सचिव की ओर से उत्तर प्रदेश को टैक्स देने के संबंध में पत्र भेजा गया।

निजी बसों से भी करोड़ों की चपत

उत्तर प्रदेश की रोडवेज ही नहीं बल्कि निजी बसों के जरिए भी उत्तराखंड को हर माह करोड़ों रुपये की चपत लग रही। यहां देहरादून में विकासनगर-सहारनपुर मार्ग व कुमाऊं में बरेली-मुरादाबाद-काशीपुर मार्ग समेत कईं मार्गों पर उत्तर प्रदेश से आ रहीं निजी बसें बेधड़क बिना परमिट संचालित हो रहीं। प्रवर्तन की कार्रवाई न होने से इन बसों के टैक्स का कोई अता-पता नहीं है। सचिव परिवहन ने अब ऐसे मार्गों को भी परिवहन करार के दायरे में लाने के आदेश दिए हैं।

वाहन पंजीकरण में विलंब शुल्क से मिली राहत

वाहन के पंजीकरण की वैधता खत्म होने के बाद लग रहा तगड़ा विलंब शुल्क वापस हो गया है। राज्य सरकार ने गत 21 नवंबर को परिवहन विभाग के विलंब शुल्क में दिसंबर-2016 में लागू की गई भारी वृद्धि वापस करने का आदेश दिया था। इसके बाद विभाग ने तीन मदों में शुल्क वृद्धि वापस करने की कसरत शुरू की लेकिन पहले चरण में व्यवसायिक वाहन संचालकों को फिटनेस विलंब शुल्क से ही राहत मिल सकी। चालक के डीएल की वैधता खत्म होने के साथ ही वाहन की पंजीकरण अवधि समाप्त होने पर लग रहा विलंब शुल्क वापस नहीं हो पाया था। अब सवा दो माह की कसरत के बाद विभाग ने लाइसेंस व पंजीकरण का बढ़ा हुआ विलंब शुल्क भी वापस ले लिया है।

नई व्यवस्था के बाद वाहन का दोबारा पंजीकरण कराने पर दुपहिया पर प्रतिवर्ष के हिसाब से 60 रुपये जबकि बाकी वाहन पर 100 रुपये विलंब शुल्क लगेगा। वर्तमान में यह दर दुपहिया पर 300 रुपये प्रतिमाह एवं बाकी वाहन पर 500 रुपये प्रतिमाह वसूली जा रही थी। बता दें कि, दिसंबर-2016 से पहले वाहनों की फिटनेस, दोबारा पंजीकरण या लाइसेंस की विलंब शुल्क की दरें काफी कम थीं। इसमें हल्के मोटर वाहन पर 200 रुपये व मध्यम मोटर वाहन पर 400 रुपये जबकि भारी वाहन पर 600 रुपये फिटनेस विलंब शुल्क लिया जाता था।

विलंब शुल्क वाहन फिटनेस में एक दिन की देरी से शुरू होता था एवं इसके लिए कोई अवधि सीमा निर्धारित नहीं थी। इसके अलावा वाहन की पंजीकरण अवधि खत्म होने और ड्राइविंग लाइसेंस की वैधता समाप्त होने की सूरत में 100 रुपये से लेकर 60 रुपये तक सालाना विलंब शुल्क था। केंद्र सरकार की ओर से 29 दिसंबर 2016 को अधिसूचना जारी कर जुर्माना राशि में काफी बदलाव कर दिए थे, जबकि पूर्व में यह अधिकार राज्य सरकार के पास था। केंद्र के इस आदेश में विलंब शुल्क की दरें काफी ज्यादा हो गईं थीं।

इसमें फिटनेस समाप्त होने पर वाहन पर प्रतिदिन 50 रुपये जुर्माना जबकि पंजीकरण समाप्त होने पर 300 रुपये से 500 रुपये तक प्रतिमाह जुर्माना लगने लगा। साथ ही ड्राइविंग लाइसेंस वैधता खत्म होने पर एक हजार रुपये प्रति साल के हिसाब से जुर्माना वसूला जाने लगा। चेन्नई व उत्तर प्रदेश के परिवहन व्यवसायियों ने हाईकोर्ट की शरण ली। मद्रास व इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में केंद्र द्वारा विलंब शुल्क लगाने के निर्णय को सही नहीं बताया और इसे खत्म कर दिया।

उत्तराखंड परिवहन विभाग द्वारा भी न्याय विभाग से राय के बाद बीती 21 नवंबर को यह व्यवस्था समाप्त कर पुरानी जुर्माना दरें लागू करने के आदेश दिए, मगर सॉफ्टवेयर अपडेट न होने से आदेश मान्य नहीं हो पाए थे। एनआइसी से सॉफ्टवेयर में अपडेट की प्रक्रिया चल रही थी। इस बीच जनवरी में सॉफ्टवेयर में विलंब शुल्क की दरें कम हो गईं, मगर यह केवल वाहनों की फिटनेस के लिए थीं। लाइसेंस और वाहन पंजीकरण के मामले में शुल्क कम नहीं हो पाया था और जिससे आमजन परेशान था। अब लाइसेंस व पंजीकरण के मामले में भी विलंब शुल्क साफ्टवेयर में अपडेट हो गया है। बुधवार से नई दरों के साथ शुल्क लेना शुरू कर दिया गया। 

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में परिवहन विभाग के ढांचे में होगा बड़ा बदलाव, बढ़ाए जाएंगे पद

अरविंद पांडेय (एआरटीओ) का कहना है कि नए आदेश के बाद विलंब शुल्क की दरें सॉफ्टवेयर में अपडेट करा दी गई हैं। 2016 से पहले जो दरें ली जा रही थी, अब उन्हीं दरों पर विलंब शुल्क लिया जा रहा।

यह भी पढ़ें: गलत रूट पर बस दौड़ाई तो चालकों और परिचालकों की जाएगी नौकरी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.