यूजीसी गाइडलाइन से ऐसे दूर हुई छात्रों की अनिश्चितता, पढ़िए पूरी खबर
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने नया शिक्षा सत्र एक अक्टूबर से शुरू करने की घोषणा कर छात्र-छात्राओं की दुविधा दूर कर दी है। इससे न केवल छात्रों को परीक्षा देने का पूरा मौका दिया वहीं शिक्षकों को भी पर्याप्त समय मिल गया है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने नया शिक्षा सत्र एक अक्टूबर से शुरू करने की घोषणा कर छात्र-छात्राओं की दुविधा दूर कर दी है। इससे न केवल छात्रों को परीक्षा देने का पूरा मौका दिया वहीं शिक्षकों को भी पर्याप्त समय मिल गया है।
एसोसिएशन आफ सेल्फ फाइनेंस इंस्टीट्यूट उत्तराखंड के अध्यक्ष डॉ सुनील अग्रवाल ने कहा यूजीसी की ओर से विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शैक्षणिक सत्र एक अक्टूबर से शुरू करने की गाइडलाइन से सत्र के संबंध में अनिश्चितता की स्थिति दूर हुई है। करोनाकाल में छात्रों और अभिभावकों में सत्र को लेकर असमंजस की स्थिति थी उन्होंने कहा की बारहवीं कक्षा के परिणाम 31 जुलाई तक घोषित होने के बाद ही प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ हो सकती है। कुछ संस्थानों ने प्रवेश प्रक्रिया शुरू करने की जो घोषणा की थी वह बारहवीं कक्षा के परीक्षा परिणाम घोषित किए बिना उचित नहीं थी।
उन्होंने कहा यूजीसी की ओर से जो अंतिम वर्ष या अंतिम सत्र की परीक्षाओं की अनिवार्यता घोषित की गई है वह आवश्यक है। क्योंकि परीक्षा के बिना शिक्षा का औचित्य नहीं रह जाता। परीक्षाएं परिस्थिति के अनुसार ऑनलाइन या ऑफलाइन मोड में संपन्न हो सकती है। ऑनलाइन परीक्षाओं के लिए विश्वविद्यालयों को तैयार रहना होगा। अभी प्रदेश के विश्वविद्यालय ऑनलाइन शिक्षा तो करवाते हैं, लेकिन जब ऑनलाइन परीक्षा की बात आती है तो संसाधनों का अभाव कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं। जब ऑनलाइन शिक्षा हो सकती है तो ऑनलाइन परीक्षाएं क्यों नहीं करवाई जा सकती है।
श्रीगुरु राम राय विवि के कुलपति डॉ. यूएस रावत ने कहा की 12वीं कक्षा की भी परीक्षा की जानी चाहिए थी जब उनकी कक्षाएं आनलाइन करवाई गई। वर्तमान दौर में जब डिजिटल इंडिया का नारा दिया जाता है। बिना परीक्षा के प्रमोट करना गलत परंपरा को शुरू किया जाना है। इससे भविष्य के लिए गलत संकेत भी जाएगा और छात्रों में पढ़ने की प्रवृत्ति कम होगी। छात्र जीवन से ही कंपटीशन की प्रवृत्ति ना होने से प्रतिभावान छात्रों के भविष्य पर असर होगा। इसलिए परीक्षाओं से बचने की प्रवृत्ति समाप्त होनी चाहिए। चाहे परिस्थितियों के अनुसार आनलाइन परीक्षा क्यों ना करवाई जाए। दून विवि की कुलपति डॉ. सुरेखा डंगवाल ने यूजीसी के फैसले को उचित ठहराया।
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