मशाल जुलूस निकालकर गैरसैंण को राजधानी बनाने की पैरवी की
शनिवार को सैकड़ों लोगों ने मशाल जुलूस निकालकर गैरसैंण को राजधानी बनाने की जोरदार पैरवी की है। लोगों ने नारों और जनगीतों के माध्यम से पहाड़ का दर्द समझने की नसीहत दी।
देहरादून, [जेएनएन]: गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। शनिवार को सैकड़ों लोगों ने मशाल जुलूस निकालकर गैरसैंण को राजधानी बनाने की जोरदार पैरवी की है। जुलूस में शामिल लोगों ने दून में रहने वाले अधिकारियों को नारों और जनगीतों के माध्यम से पहाड़ का दर्द समझने की नसीहत दी।
स्थायी राजधानी गैरसैंण को बनाने की मांग को लेकर शनिवार को करीब 18 से ज्यादा सामाजिक संगठन एकजुट हुए। गांधी पार्क में एकत्र हुए संगठनों ने हाथों में मशाल लेते हुए शहीद स्मारक तक जुलूस की शक्ल में दून में राजधानी का विरोध जताया। इस दौरान नारे और जनगीत गाते हुए प्रदर्शनकारियों ने कहा कि शहीदों के सपनों की राजधानी सिर्फ गैरसैंण में ही बन सकती है।
गैरसैंण को लेकर शुरू हुई इस मुहिम में पूर्व विधायक, जनकवि, आंदोलनकारी एवं संगठनों के लोगों ने दून में मौज कर रहे अफसरों और नेताओं को पहाड़ की पीड़ा समझने की नसीहत दी। सैंकड़ों की संख्या में हाथों में जल रही मशालें और गैरसैंण को राजधानी बनाने के जनगीत से राजधानी में वर्षों पुरानी राज्य आंदोलन की यादें ताजा हो गई।
इस मौके पर मशाल जुलूस में शामिल हुए लोगों ने कहा कि बजट सत्र में यदि राजधानी को लेकर सरकार ने निर्णय नहीं लिया तो राज्य गठन के दौरान हुए आंदोलन जैसी शुरुआत की जाएगी। मशाल जुलूस में जन कवि अतुल शर्मा, छात्र नेता सचिन थपलियाल, रघुवीर बिष्ट, देवसिंह रावत, रविंद्र जुगरान, पीसी थपलियाल, हेमा देवराड़ी, प्रदीप कुकरेती, लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल, मोहन रावत, अनिल पंत, बीएस रावत, जगमोहन मेहंदीरत्ता, जयदीप सकलानी, पुष्कर नेगी, पुरूषोत्तम भट्ट, लूसुन टोडरिया, अनिल रावत, विकास नेगी, विजय बौड़ाई, कैलाश जोशी, कमल रजवार, ललित जोशी, महेंद्र रावल, सूरवीर राणा, आदि शामिल थे।
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