उत्तराखंड के गांवों से पलायन थामने को अब राह दिखाने का वक्त
उत्तराखंड में पलायन थामने के लिए खाका भी तैयार कर लिया गया है। आने वाले दिनों में इस मुहिम को राह दिखाने की आवश्यकता है।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे उत्तराखंड में पलायन को लेकर बीते तीन वर्षों में सरकार की सोच और चिंता सामने आ चुकी है। पलायन थामने के लिए खाका भी तैयार कर लिया गया है। आने वाले दिनों में इस मुहिम को राह दिखाने की आवश्यकता है। हालांकि, गांवों से हो रहे पलायन की रोकथाम के लिए सरकार के अभी तक के प्रयास कुछ सुखद अहसास जरूर करा रहे हैं, लेकिन मकसद तभी पूरा हो पाएगा, जब सरकार की मुहिम का धरातल पर असल दिखाई पड़ेगा।
चीन और नेपाल की सीमा से सटे उत्तराखंड के गांवों से निरंतर हो रहे पलायन की स्थिति और इसके कारणों की बात सामने आ चुकी है। मौजूदा सरकार द्वारा गठित पलायन आयोग की रिपोर्ट ही बताती है कि मूलभूत सुविधाओं और रोजगार के अभाव को देखते हुए यहां के गांवों से मजबूरी का पलायन अधिक है। पलायन के कारण राज्यभर में अब तक 1702 गांव निर्जन हो चुके हैं, जबकि ऐसे गांवों की बड़ी तादाद है जिनमें जनसंख्या अंगुलियों में गिरने लायक रह गई है।
हालांकि, पलायन आयोग की ओर से सरकार को सौंपी गई पलायन थामने की कार्ययोजना को लेकर शासन स्तर पर मंथन के बाद पहले चरण में ऐसे 245 गांवों को लिया जा रहा है, जहां आबादी 50 फीसद से कम हुई है। इन गांवों में विभिन्न विभागों को मनरेगा से जोड़ते हुए कार्ययोजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
रोजगार के अवसरों के सृजन के मद्देनजर कौशल विकास के कार्यक्रम तय किए गए हैं। यह कार्ययोजना नए वित्तीय वर्ष से लागू होनी है। साथ ही खेती को लाभकारी बनाने को कदम उठाने के साथ ही न्याय पंचायत स्तर पर ग्रोथ सेंटर स्थापित करने की पहल की जा रही है।
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निश्चित रूप से सरकार के ये कदम सराहनीय माने जा सकते हैं, लेकिन आशंका के बादल भी कम नहीं है। मूलभूत सुविधाओं के विकास को प्रभावी कदम उठाने की दरकार है। वहीं प्रवासियों को वापस उत्तराखंड लौटने को प्रोत्साहित जरूर किया जा रहा है, मगर इन प्रयासों में और तेजी लाने की दरकार है।
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