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36 साल में तीन मास्टर प्लान लेकिन जोनल एक भी नहीं

देहरादून का मास्टर प्लान कभी नियमों के अनुसार वैध स्थिति में रहा ही नहीं। इसकी वजह यह कि किसी भी मास्टर प्लान के साथ-साथ जोनल प्लान भी लागू होना चाहिए।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 16 Jun 2018 07:01 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 05:33 PM (IST)
36 साल में तीन मास्टर प्लान लेकिन जोनल एक भी नहीं
36 साल में तीन मास्टर प्लान लेकिन जोनल एक भी नहीं

देहरादून, [जेएनएन]: मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) का मास्टर प्लान भले ही हाईकोर्ट ने अब निरस्त किया हो, मगर नियमों के अनुसार यह प्लान कभी वैध स्थिति में रहा ही नहीं। इसकी वजह यह कि किसी भी मास्टर प्लान के साथ-साथ जोनल प्लान भी लागू होना चाहिए। वर्ष 1969 में इसी आधार पर किशन दास बनाम नगर निगम दिल्ली के मास्टर प्लान को निरस्त किया गया था। उस आदेश में कहा गया था कि मास्टर प्लान के लैंड यूज को जोनल प्लान के बिना लागू ही नहीं किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम-1973 में भी इस बात का जिक्र किया गया है। हालांकि, उत्तर प्रदेश के समय जब एमडीडीए का पहला मास्टर प्लान वर्ष 1982-2001 को स्वीकृति दी गई थी, तब भी इस दिशा में प्रयास नहीं किए गए। 

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इस खामी को वर्ष 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के समय दूर किया जा सकता था। जबकि एमडीडीए ने कई साल तक मास्टर प्लान ही नहीं बनाया। वर्ष 2005 में 2025 तक के लिए मास्टर प्लान को स्वीकृति दी गई, मगर उसे जल्द ही निरस्त कर दिया गया। इसके बाद फिर 2008 में मास्टर प्लान तैयार करने की कवायद शुरू की गई और नवंबर 2013 में इसे स्वीकृति दी गई। हालांकि, इसके बाद भी जोनल प्लान को लागू करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। पहले ड्राफ्ट और फिर संशोधित जोनल प्लान बनाया गया, जिसे अब तक लागू नहीं किया जा सका है। बड़ी सच्चाई यह भी कि विलंभ से लागू किए गए मास्टर प्लान में धरातलीय स्थिति काफी बदल गई है। 

केंद्र सरकार से भी नहीं मिल पाई स्वीकृति 

दून वैली नोटिफिकेशन 1988 के चलते यहां किसी भी वृहद कार्य के लिए पहले पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से स्वीकृति लेनी पड़ती है। राज्य सरकार ने पहले 2005 व फिर 2011 से लेकर 2017 के बीच केंद्र सरकार में भेजने के बाद भी स्वीकृति नहीं मिल पाई। इसके बाद भी अधिकारियों ने केंद्र सरकार से स्वीकृति न दिए जाने पर स्पष्ट वार्ता नहीं की। माना जा रहा है कि प्लान की तमाम खामियों के चलते इसे स्वीकृति नहीं मिल पाई। इस कारण जोनल प्लान लागू न करने और स्वीकृति न मिलने के चलते हाईकोर्ट को मास्टर प्लान को निरस्त करने के आदेश जारी करने पड़ गए। 

धरातल से जुदा है जोनल प्लान 

वर्ष 2013 में मास्टर प्लान को अंतिम रूप दिए जाने के बाद माना जा रहा था कि जोनल प्लान में धरातलीय खामियों को दूर कर दिया जाएगा। हालांकि, जब यह प्लान भी तैयार किया गया तो पता चला कि इसमें भी तमाम विसंगतियां हैं। बड़े-बड़े सरकारी भवनों व क्षेत्रों को तक प्लान में गायब कर दिया गया था। इसके अलावा प्लान में जहां कृषि भूमि दिखाई गई थी, वहां धरातल पर आबादी क्षेत्र पाया गया।

वन भूमि और अन्य भूपयोग भी अलग-अलग पाए गए। जोनल प्लान की खामियों पर अकेले उत्तरांचल इंजीनियर्स एंड ड्राफ्ट्समैन वेलफेयर एसोसिएशन ने 246 आपत्तियां डाली थीं। जबकि इनमें से महज 35 आपत्तियों को ही सुनकर जोनल प्लान को आगे बढ़ा दिया गया। तब यह कहा गया था कि एसोसिएशन के अध्यक्ष डीएस राणा को सभी नौ जोन का अलग-अलग नक्शा दिया जाएगा, ताकि वह ढंग से खामियों को इंगित कर सकें। हालांकि तब से आज तक प्लान में सुधार की वह घड़ी नहीं आई। 

एसोसिएशन ने यह आपत्तियां की दाखिल 

जोन-1: सुभाष रोड स्थित राज्य का पुलिस मुख्यालय, खुड़बुड़ा स्थित गुरुनानक गल्र्स स्कूल और तिब्बती मार्केट नक्शे से गायब हैं। बिंदाल स्थित पावर स्टेशन, धामावाला स्थित मस्जिद, एमकेपी कॉलेज क्षेत्र, रेंजर्स कॉलेज की दोनों तरफ की सड़कें, ईसी रोड स्थित बिजली दफ्तर, जीपीओ के पास चर्च, सचिवालय के पिछले गेट के सामने का राजकीय स्कूल, तिलक रोड स्थित वन विभाग कार्यालय व आवास, कांवली रोड पर एमडीडीए कॉलोनी सहित अनेक सरकारी व निजी क्षेत्रों को कमर्शियल श्रेणी में रखा गया है। घोसी गली का स्थान भी जोनल प्लान में परिवर्तित किया गया है। 

जोन-2: रेसकोर्स में सरकारी कॉलोनी और विधायक निवास नक्शे से गायब हैं। यहां के गुरुद्वारा, पटेलनगर स्थित बीएसएनएल कार्यालय, एसजीआरआर मेडिकल इंस्टीट्यूट, बिंदाल नदी से लगता हुआ बाईपास क्षेत्र, कारगी चौक का आवासीय क्षेत्र समेत तमाम इलाकों वास्तविक स्थिति में नहीं नजर आते। यहां के राजकीय मेडिकल कॉलेज को आवासीय और हर्रावाला के आवासीय क्षेत्र, विधानसभा से लगता हुआ आवासीय क्षेत्र सार्वजनिक व अद्र्धसार्वजनिक के रूप में प्रदर्शित किए गए हैं। 

जोन-3: कुआंवाला, नकरौंदा, नथुवावाला के एक बड़े भूभाग को कृषि क्षेत्र दर्शाया गया है। जबकि इस इलाके का अधिकांश भाग आवासीय घोषित किया जा चुका है। वहीं, रायपुर रिंग रोड स्थित राजस्व परिषद और इससे लगते हुए अन्य राजकीय विभागों को कमर्शियल भूमि दर्शाया गया है। राज्य सूचना आयोग के पिछली तरफ से लगते हुए आवासीय क्षेत्र को वन क्षेत्र दिखाया है। डालनवाला के ब्राइटलैंड स्कूल को आवासीय व राजकीय गांधी शताब्दी हॉस्पिटल को तो प्लान से गायब ही कर दिया गया। बलबीर रोड स्थित रिवेरडेल जूनियर स्कूल को भी प्लान में नहीं दर्शाया गया है। मोहिनी रोड स्थित दून इंटरनेशनल स्कूल, चैशायर होम, लक्ष्मी रोड पर आयकर विभाग की कॉलोनी और पेयजल निगम मुख्यालय नक्शे से गायब हैं। 

जोन-4: रायपुर के अधिकांश आवासीय क्षेत्र को कैंट की भूमि दर्शाई गई है। रायपुर रोड स्थित पुलिस स्टेशन से लगते हुए वन क्षेत्र के स्थान पर नक्शे में पार्क दिखाया गया है और उससे लगते हुए आवासीय भूमि को वन भूभाग दर्शाया गया है। जगतखाना से लगते हुए आवासीय क्षेत्र को कृषि भूमि दिखाया गया है। 

जोन-5: जाखन जोहड़ी गांव से लगते हुए विशाल वन भूभाग को जोनल प्लान में आवासीय और कृषि भूमि बताना समझ से परे है। वहीं, मसूरी डायवर्जन क्षेत्र में  सिनोला के वन भूभाग को आवासीय दिखाया गया है। उत्तरी गांव (कसिगा) स्थित भगवती इंटर कॉलेज और इससे लगे वन क्षेत्र को कृषि भूमि दिखाया गया है। भगवंतपुर से जाने वाले बाइपास मार्ग का कृषि क्षेत्र गायब है। पुरकुल गांव के प्राइवेट जमीन पर नक्शे में जंगल उग आया है। नक्शे में दानियों का डांडा इलाके के विशाल वन क्षेत्र को कृषि क्षेत्र दिखाया गया है। 

जोन-6: गोविंदगढ़ स्थित ईदगाह नक्शे से गायब है। यमुना कॉलोनी के सरकारी विभाग भी नक्शे में नहीं हैं। राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री स्कूल (आरआइएमसी) को भी नक्शे से गायब कर दिया गया। ओएनजीसी के हेलीपैड को टूरिस्ट प्लेस दिखाया गया है, जबकि पंडितवाड़ी स्थित राजकीय स्कूल और अधिकांश आवासीय क्षेत्र को कमर्शियल दर्शाया गया है। 

जोन-7: शिमला बाइपास रोड पर बड़े पैमाने पर आवासीय व कृषि भूमि को वन भूभाग बताया गया। बड़ोवाला से लगते हुए आवासीय क्षेत्र को कृषि भूमि, मेहूंवाला, हरभजवाला, मेहूंवालामाफी के अधिकांश आवासीय क्षेत्र को कृषि भूमि दिखाया गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान से लगते हुए एक बड़े भूखंड को जिसमें आवासीय निर्माण हैं, उन्हें पार्क और बाग दिखाया गया है। संस्थान से लगते हुए आरकेडियाग्रांट के आवासीय क्षेत्र को जंगल दर्शाया गया। 

जोन-8: चाय बागान से लगते हुए तमाम क्षेत्रों में भारी खामियां हैं। प्रेमनगर स्थित कारमन स्कूल के सामने से शुरू होकर आसन नदी तक फैले चाय बागान को नक्शे से गायब कर आवासीय क्षेत्र को चाय बागान बताया गया है। ईस्टहोपटाउन के आवासीय भाग को कृषि, आसन नदी से लगते हुए गांव के एक बड़े आवासीय भूभाग को कृषि भूमि दर्शा रखा है। 

जोन-9: कोल्हूपानी स्थित उर्वरक फैक्ट्री को कृषि भूमि और कृषि भूमि को सार्वजनिक बताया गया। पौंधा स्थित दून इंटरनेशनल स्कूल नक्शे से ही गायब है। फूलसनी के आवासीय क्षेत्र, कोटड़ा संतौर की कृषि भूमि को जंगल, मसंदावाला स्थित टीएचडीसी कॉलोनी, जैंतनवाला, गजियावाला के आवासीय क्षेत्र को कृषि बताते हुए संतला देवी मंदिर को नक्शे से गायब कर दिया गया। 

एमडीडीए के उपाध्यक्ष डॉ. आशीष कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि हाईकोर्ट का आदेश अभी प्राप्त नहीं हुआ है। फिर भी जिस तरह मास्टर प्लान को निरस्त किए जाने की जानकारी मिल रही है, उस पर इतना ही कहना है कि वर्ष 2011 से 2017 के बीच मास्टर प्लान व जोनल प्लान को चार बार केंद्र सरकार को स्वीकृति के लिए भेजा गया। शासन के साथ विचार-विमर्श किया जाएगा कि कोर्ट के आदेश पर अगला कदम क्या उठाया जाना चाहिए। 

मुख्य नगर नियोजक रह चुके हैं याचिकाकर्ता घिल्डियाल 

हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले एससी घिल्डियाल पूर्व मुख्य नगर नियोजक रह चुके हैं। पहले वह उत्तर प्रदेश में वर्ष 1987-88 व इसके बाद उत्तराखंड में वर्ष 2000 से 2004 के बीच मुख्य नगर नियोजक की भूमिका निभा चुके हैं। उनका कहना है कि अपने कार्यकाल के दौरान भी उन्होंने कई बार जोनल प्लान लागू करने व केंद्र की अनुमति के लिए कहा था, लेकिन अधिकारियों ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। इस स्थिति को देखते हुए करीब दो साल पहले उन्हें मास्टर प्लान के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी। 

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