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'देवभूमि' में छलका पलायन का दर्द

सर्बियन फिल्म 'देवभूमि: द लैंड ऑफ गॉड्स' के प्रदर्शन के साथ ही तीन दिवसीय मसूरी माउंटेन फेस्टिवल 2018 का आगाज हो गया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 16 Mar 2018 09:48 PM (IST)Updated: Sun, 18 Mar 2018 04:12 PM (IST)
'देवभूमि' में छलका पलायन का दर्द
'देवभूमि' में छलका पलायन का दर्द

मसूरी, [जेएनएन]: सर्बियन फिल्म 'देवभूमि: द लैंड ऑफ गॉड्स' के प्रदर्शन के साथ ही तीन दिवसीय मसूरी माउंटेन फेस्टिवल 2018 का आगाज हो गया। फिल्म में पलायन के साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति, रीति-रिवाजों, आपदा और कठिन जीवनशैली को दर्शाया गया है। सर्बियन फिल्म निर्देशक गोरान पास्कलजेविक की फिल्म में अभिनेता विक्टर बनर्जी ने बेहतरीन अभिनय किया है।

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फिल्म प्रदर्शन के बाद 'द कैरिंग पाथ टू द कंजरविंग आर्ट' नामक प्रदर्शनी भी शुरू की गई। इटली सरकार की ओर से नाइटहुड से सम्मानित क्यूरेटर अनुपम शाह ने स्कूल परिसर में ही सिंधुघाटी सभ्यता और बाद के इतिहास पर आधारित प्रदर्शनी का शुभारंभ किया।

गुरुवार को हनिफल सेंटर की ओर से मसूरी स्थित वुडस्टॉक स्कूल के पार्कर हॉल में कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया। फिल्म प्रदर्शन के बाद निर्देशक गोरान और अभिनेता विक्टर बनर्जी दर्शकों से रूबरू हुए और उनके सवालों के जवाब दिए। गोरान ने कहा कि फिल्म निर्माण में हमें उत्तराखंड सरकार से किसी प्रकार की सहायता तो नहीं मिली। लेकिन, यहां फिल्म बनाते हुए न सिर्फ बहुत कुछ सीखने को मिला, बल्कि बहुत मजा भी आया।

कहा कि उत्तराखंड की संस्कृति बहुत समृद्ध है। गोरान ने बताया कि, विक्टर से मेरी मुलाकात गोवा में हुई थी। बातचीत के दौरान ही मुझे देवभूमि फिल्म बनाने का विचार आया। यह विचार जब विक्टर से साझा किया तो उन्होंने तुरंत हामी भर दी। वहीं भारत में सर्बिया के राजदूत ब्लादिमिर मारिक ने उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता की तारीफ की। साथ ही गोरान पास्कलजेविक की फिल्म की भी सराहना की। 

उत्तराखंडी रीति-रिवाजों का चित्रण 

फिल्म की कहानी रोजगार की तलाश में गांव से पलायन कर चुके युवा के बारे में है। जो 40 साल बाद उत्तराखंड के दूरस्थ हिमालयी क्षेत्र स्थित अपने गांव लौटता है, जिसके बाद घटनाक्रम नाटकीय मोड़ लेते हैं। लगभग 92 मिनट की फिल्म में गोरान पास्कलजेविक ने उत्तराखंड में 2013 की प्राकृतिक आपदा, गांवों की कठिन जीवनशैली, रीति-रिवाजों, शिक्षा के प्रति लोगों की सोच का बेहतरीन फिल्मांकन किया है। अभिनेता विक्टर बनर्जी ने अपनी अदाकारी से फिल्म को और प्रभावी बना दिया है। 

यह रहे मौजूद: ल खक स्टीफन अल्टर, यूनिवर्सिटी ऑफ आस्ट्रेलिया में उत्तराखंडी ढोल सागर का प्रशिक्षण दे रहे डॉ. एंड्रयू अल्टर, लेखक बिल एटकिन, शिक्षाविद आभा शैली, लोकेश ओहरी, कुनाल, फेस्टिवल डायरेक्टर के. कृष्णाकुट्टी सहित वुडस्टॉक स्कूल के छात्र-छात्राएं मौजूद थे। 

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