भगवान शिव का ऐसा त्रिशूल जो ताकत से नहीं, तर्जनी से करता है कंपन
चमोली जिले के गोपेश्वर में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव का त्रिशूल है। मान्यता है कि त्रिशूल पर इतनी शक्ति है कि कितना भी बलशाली इसे हिला नहीं सकता है।
देहरादून, [जेएनएन]: चमोली जिले के गोपेश्वर में भगवान शिव का गोपीनाथ मंदिर है। मंदिर परिसर में भगवान शिव का त्रिशूल है। मान्यता है कि त्रिशूल पर इतनी शक्ति है कि कितना भी बलशाली इसे हिला नहीं सकता है। यदि तर्जनी अंगुली त्रिशूल पर एकाग्र होकर लगाई जाए तो यह कंपन करने लगता है।
गोपीनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा अर्चना मात्र से ही वह प्रसन्न हो जाते हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में मौजूद शिवलिंग पर मात्र पुजारी ही जलाभिषेक करते हैं। श्रद्धालु तांबे के लोटे में जल भरकर पुजारी को देते हैं। मंदिर परिसर में मौजूद अन्य शिवलिंगों पर जलाभिषेक किया जाता है। मंदिर परिसर में मां दुर्गा, गणेश, हनुमान आदि देवी देवताओं के मंदिर हैं। यह मंदिर शैव मत के साधकों का प्रमुख तीर्थ माना जाता है। शीतकाल में यहां पर भगवान रुद्रनाथ के मुखभाग की पूजा अर्चना भी की जाती है।
इतिहास
यह हिंदुओं का प्राचीन मंदिर है। मंदिर की छत पर गुंबद बना हुआ है तथा मंदिर के अंदर जाने के लिए 24 पौराणिक दरवाजे हैं। यह उत्तराखंड के मंदिरों में ऊंचाई में केदारनाथ के बाद दूसरा ऊंचा मंदिर है। मंदिर के शिलालेखों के अनुसार 12वीं से 13वीं सदी के बीच कत्यूरी राजाओं ने इस मंदिर का निर्माण किया था। मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था। मंदिर परिसर में भगवान शिव का त्रिशूल व परशुराम का फरसा भी मौजूद है। त्रिशूल पर इतनी शक्ति है कि कितना भी बलशाली इसे हिला नहीं सकता है। यदि तर्जनी अंगुली त्रिशूल पर एकाग्र होकर लगाई जाए तो यह कंपन करने लगता है।
तैयारियां
सावन माह में बदरीनाथ, केदारनाथ जाने वाले यात्रियों के अलावा कांवडिय़े भी यहां भगवान के दर्शन करने के लिए आते हैं। गोपीनाथ मंदिर के निकट वैतरणी कुंड में स्नान करने के बाद श्रद्धालु भगवान के दर्शन व पूजा अर्चना करते हैं। गोपेश्वर में सात हजार से अधिक यात्रियों के ठहरने के लिए होटल, लाज की सुविधा मौजूद है। हरिद्वार से 232 किमी दूरी सड़क मार्ग से तय कर गोपेश्वर पहुंचा जा सकता है।
गोपीनाथ मंदिर उत्तराखंड के सबसे ऊंचे मंदिरों में है सुमार
पुजारी वंशीधर भट्ट (गोपीनाथ मंदिर चमोली) का कहना है कि गोपीनाथ मंदिर उत्तराखंड के सबसे ऊंचे मंदिरों में सुमार है। केदारनाथ के बाद यही दूसरे नंबर का सबसे ऊंचा मंदिर है। इसी स्थान पर भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था। यहां पर भगवान शिव ने गोपी का रूप धारण कर भगवान श्रीकृष्ण के साथ नृत्य किया था। इसीलिए इसका नाम गोपीनाथ मंदिर पड़ा। भगवान शिव की पूजा अर्चना करने मात्र से भक्तों के सारे दुखों, कष्टों का तारण होता है।
श्रद्धा का महासावन
देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवताओं का वास है। थनगढ़ घाटी स्थित थानेश्वर महादेव मंदिर की सच्चे मन से आराधना करने वालों की भगवान शिव सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। यहां सुबह से ही भक्त पूजा-अर्चना के लिए जुटना शुरू हो जाते हैं। सावन मास में भगवान शिव को जलाभिषेक का विशेष महत्व होता है। श्रद्धालु दूध, शहद, बेलपत्री का चढ़ावा चढ़ाते हैं। भगवान ने हमेशा भक्तों को अनेक रूपों में दर्शन दिए हैं। भगवान शिव व देवों के देव महादेव ने धरती को ही अपना निवास स्थान बनाया। मानव कल्याण के लिए उनकी रची लीलाएं भी अपार है।
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