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हालात ने बनाया सिपाही, हौसलों ने अफसर; जानिए इन युवाओं की कहानी

एसीसी से पास आउट कैडेट्स सेना में अफसर बनेंगे। आइए आपको बताते हैं इन युवाओं के हौसले की कहानी।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 01 Dec 2018 10:31 AM (IST)Updated: Sat, 01 Dec 2018 09:00 PM (IST)
हालात ने बनाया सिपाही, हौसलों ने अफसर; जानिए इन युवाओं की कहानी
हालात ने बनाया सिपाही, हौसलों ने अफसर; जानिए इन युवाओं की कहानी

देहरादून, जेएनएन।: जब कदम बढ़ाओ, तभी मंजिल हासिल। एसीसी से पास आउट कैडेट्स भी इस बात इत्तेफाक रखते हैं। मंजिल तक पहुंचने में कुछ वक्त जरूर लगा, मगर लक्ष्य से कभी डिगे नहीं। तब समय अनुकूल नहीं था और घर का भार एकाएक कंधों आ पड़ा। मगर, न उम्मीद छोड़ी और न सपना टूटने दिया। मन में रह-रहकर उठती उम्मीद की हिलोरों की बदौलत ही सफलता की दहलीज तक पहुंच गए।

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सूबेदार का बेटा बनेगा अफसर 

स्वर्ण पदक हासिल करने वाले भरतपुर राजस्थान के जितेंद्र चाहर एक बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुख रखते हैं। पिता सुरेंद्र सिंह फौज से सूबेदार रिटायर हुए हैं। जबकि मां सीमा गृहणी हैं। सीमित संसाधनों में भी उन्होंने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी। जितेंद्र ने वर्ष 2009 में एयरफोर्स ज्वाइन की। मन में अफसर बनने की चाह थी जिसे अपनी लग्न के बूते पूरा कर लिया है। जितेंद्र शादीशुदा हैं। उनकी पत्नी मीना एमकॉम कर रही है। वहीं भाई पुष्पेंद्र राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल हैं।

किसान के बेटे ने पाया मुकाम 

रजत पदक प्राप्त कैथल हरियाणा के संजय सिंह के पिता रामफल किसान हैं। संजय ने सपनों को उड़ान देने के लिए जिंदगी की तमाम चुनौतियों को मात दी। वर्ष 2008 में नौसेना में भर्ती जरूर हुए, लेकिन ख्वाहिश अफसर बनने की थी। मन में संकल्प लिया और कदम मंजिल की ओर बढ़ा दिए। उनकी सात साल पहले शादी हो चुकी है और तीन बच्चे भी हैं। पत्नी किरण ने भी हर कदम पर उनका साथ दिया। छोटा भाई भरत अभी पीजी कर रहा है।पिता का कारोबार छोड़ चुना फौज में कॅरियर

कमान्डेंट सिल्वर मेडल हासिल करने वाले दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल निवासी संजोख क्षेत्री के पिता कुमार क्षेत्री मसालों का कारोबार करते हैं। उनके लिए आसान था कि इसी काम में रम जाते। लेकिन मन कहीं और ही रमा था। सीडीएस की तैयारी करते-करते वह फौज में भर्ती हो गए। वर्ष 2010 में जवान बने और अब अफसर बनने से चंद कदम दूर हैं।

सैन्य परंपरा के ध्वज वाहक ये वीर सपूत

इसी जज्बे से सरहदें सलामत हैं। कितनी भी कठिनाइयां क्यों न सामने आए, वह अपने जज्बे और हौसले को हारने नहीं देते। यही एक सिपाही की पहचान भी है, जिसे देवभूमि के वीर सपूत चरितार्थ कर रहे हैं। जिस सैन्य परंपरा पर उत्तराखंड गर्व करता आया है, वह इन्हीं की तो बदौलत है। वीर गबर सिंह, दरबान सिंह और चंद्र सिंह गढ़वाली की शौर्य गाथाओं को सुनकर बड़े हुए पहाड़ के युवा फौजी पेशे की चाहत में रचे बसे हैं। एसीसी विंग के दीक्षांत समारोह में यह बात फिर एक बार नुमाया हुई। जहां 14 फीसद युवा अकेले उत्तराखंड से हैं। कुल 37 युवाओं में पांच प्रदेश के रहने वाले हैं। इनमें हल्द्वानी निवासी राजेश पचौली, प्रेमनगर के जयपिंग नेगी, रुद्रप्रयाग के सूर्यदीप सिंह रावत, पिथौरागढ़ के प्रकाश सिंह व हल्द्वानी के रोहित जोशी ने अफसर बनने की ओर कदम बढ़ाया है।

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