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'कोरोना के खौफ' ने ली बेजुबानों की जान, जानिए क्‍या है पूरा मामला

कोरोना संक्रमण से इंसानों की मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं लेकिन कोरोना का खौफ भी कम घातक नहीं। उत्तराखंड में यह खौफ मवेशियों की मौत का कारण बन रहा है। वन गुर्जरों को आरक्षित वन क्षेत्र में प्रवेश न मिलने के कारण 10 मवेशियों की मौत हो गई।

By Sumit KumarEdited By: Published: Sun, 23 May 2021 01:50 PM (IST)Updated: Sun, 23 May 2021 01:50 PM (IST)
'कोरोना के खौफ' ने ली बेजुबानों की जान, जानिए क्‍या है पूरा मामला
कोरोना संक्रमण के खतरे के चलते वन विभाग ने उन्हें रास्ते में ही रोक दिया।

विजय जोशी, देहरादून: कोरोना संक्रमण से इंसानों की मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन कोरोना का खौफ भी कम घातक नहीं। उत्तराखंड में यह खौफ मवेशियों की मौत का कारण भी बन रहा है। वन गुर्जरों को आरक्षित वन क्षेत्र में प्रवेश न मिलने के कारण करीब 10 मवेशियों की मौत हो गई। कोरोना संक्रमण के खतरे के चलते वन विभाग ने उन्हें रास्ते में ही रोक दिया। जहां करीब 10 दिन मवेशियों को पर्याप्त चारा व पानी नहीं मिल सका। हालांकि, वन विभाग ने गुर्जरों को अब वनारक्षित क्षेत्र में प्रवेश दे दिया है।

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दरअसल, लंबे अरसे से वन गुर्जरों के परिवार गर्मियों में मैदानों से पहाड़ों का रुख करते हैं। जहां वन आरक्षित क्षेत्रों में कुछ माह वे अपने मवेशी चराते हैं। इसके लिए उत्तराखंड सरकार और वन विभाग की ओर से उन्हें लिखित अनुमति जारी की जाती है, लेकिन इस बार कोरोना संकट का हवाला देकर वन गुर्जरों को रास्ते में रोक दिया गया। वन गुर्जरों की शिकायत पर समाज सेवी अवधेश शर्मा ने वन विभाग के अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाए। कहा कि गोविंद वन्यजीव विहार, पुरोला, उत्तरकाशी के तहत सांकरी व रुपिन रेंज में मवेशी चराने के लिए सालों से वन गुर्जर जाते हैं। इस बार भी पहले प्रमुख मुख्य वन संरक्षक राजीव भरतरी की ओर से मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को निर्देश दिए गए। जिसके बाद मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग ने गोविंद वन्य जीव विहार के अधिकारियों को अनुमति प्रदान करने के निर्देश दे दिए थे। वन्य जीव विहार के अधिकारियों ने कोरोना का हवाला देते हुए वन गुर्जरों को नैटवाड़ के पास रोक दिया और कागजी कार्रवाई, सत्यापन और सर्वे में करीब 10 दिन गुजार दिए। अंतिम पड़ाव से कुछ पहले ही रोके जाने से वन गुर्जरों के संसाधन समाप्त होने लगे। बताया कि वन गुर्जरों के पास मवेशियों को एक स्थान पर रखने और चारा पत्ती खिलाने की व्यवस्था नहीं है। वन गूर्जर फिरोजुद्दीन, अल्फा, नीकू, दग्गों, माही ने कहा कि उनके 10 मवेशियों की मौत हो चुकी है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अब उन्हें इस शर्त पर आगे भेजा गया है कि वे अगले वर्ष से यहां नहीं आएंगे।

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चीड़ का जंगल होने के कारण मवेशी भूखे

वन गुर्जरों को नैटवाड़ और सांकरी के बीच रोका गया था। जहां चारों ओर चीड़ के जंगल हैं। ऐसे में मवेशियों के लिए यहां चारा पत्ती का संकट है। जिसके चलते मवेशियों को दस दिन तक पर्याप्त चारा नहीं मिल सका। बताया कि तीन परिवारों को यहां रोका गया था, जिनमें कुल 32 सदस्य हैं। उनके पास कुल 200 मवेशी थे, जिनमें से 10 की मौत हो चुकी है। जबकि, कुछ गर्भवती गाय व भैंस ने समय से पूर्व ही बच्चों को जन्म दे दिया है, जो कि स्वस्थ भी नहीं हैं।

मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग का कहना है कि वन गुर्जरों को हर साल वन आरक्षित क्षेत्र में कुछ माह के लिए प्रवेश दिया जाता है। इस बार भी उन्हें प्रवेश देने के आदेश कर दिए गए थे। कोरोना संक्रमण की रोकथाम को लेकर इस बार कई प्रकार की औपचारिकताएं भी की जा रही हैं। ऐसे में वन गुर्जरों की जानकारी दर्ज करने, सर्वे और सत्यापन आदि में समय लगना संभव है। वन गुर्जरों की समस्या की जानकारी मिलने पर आरक्षित क्षेत्र के अधिकारियों को फोन पर निर्देशित कर प्रवेश दे दिया गया है।

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