छोटे-छोटे शहरों से जज्बे और जज्बात की कहानियां, जानिए
आइएमए से पासआउट होकर सेना का अंग बने युवा अफसरों पर नजर दौड़ाएं तो यहां जय जवान-जय किसान का नारा सार्थक होता नजर आता है और वह चेहरे भी इसका हिस्सा हैं।
देहरादून, जेएनएन। भारत विविधता में एकता का देश है। बात जब देश की आन, बान और शान की हो तो यहां के जर्रे-जर्रे में देशप्रेम की गूंज साफ सुनाई पड़ती है। क्या हिंदू, क्या मुस्लिम या क्या सिख और ईसाई, हर वर्ग के लोग देश को सच्चे सपूत दे रहे हैं।
शनिवार को आइएमए से पासआउट होकर सेना का अंग बने युवा अफसरों पर नजर दौड़ाएं तो यहां जय जवान-जय किसान का नारा सार्थक होता नजर आता है और वह चेहरे भी इसका हिस्सा हैं, जिन्होंने मल्टीनेशनल कंपनियों का मोह त्यागकर देश की रक्षा की राह को सर्वोपरि माना। वहीं, ऐसे परिवारों की भी कमी नहीं है, जिनकी तीसरी पीढ़ी भी सेना को समर्पित हो गई।
सेना के लिए छोड़ी अच्छी खासी नौकरी
मूल रूप से अल्मोड़ा के द्वाराहाट और हाल निवासी दिल्ली मयंक जोशी ने देहरादून स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज से सिविल इंजीनियरिंग की। उनकी एक प्रतिष्ठित प्राइवेट में नौकरी लग गई थी और तनख्वाह भी अच्छी खासी थी। पर मन में सैन्य अफसर बनने की ललक थी। पिता हंसादत्त जोशी डीएसओआइ धौलाकुआं दिल्ली में मैनेजर हैं। इसलिए शुरुआत से ही सैन्य माहौल में रहे। ऐसे में उन्होंने सैन्य वर्दी को प्राइवेट नौकरी पर तरजीह दी।
पिता ने किया बेटे को सैल्यूट
करनाल निवासी दलबीर सिंह संधु एयरफोर्स में जूनियर वारंट अफसर हैं। वह खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। बेटा सुमित कुमार संधु फौज में अफसर बन गया है। परिवार में वह पहला सैन्य अधिकारी है। दलबीर ने बेटे को सैल्यूट कर अपनी खुशी जाहिर की।
बहन के बाद भाई भी बना अफसर
सांगली महाराष्ट्र निवासी सामंत परिवार के लिए यह यादगार क्षण थे। इस परिवार की न सिर्फ बेटी, बल्कि बेटा भी अब सैन्य अफसर है। रिटायर्ड सूबेदार महादेव सामंत के बेटे अनिल एम सामंत ने शनिवार को आइएमए में अंतिम पग भरा। इंजीनियङ्क्षरग करने के बावजूद फौजी वर्दी की ललक उन्हें यहां खींच लाई। उनकी बहन कैप्टन अनुराधा एम सामंत भी सेना में डॉक्टर है।
एक ही रेजीमेंट का हिस्सा ये परिवार
प्रयागराज निवासी कर्नल अमित हजेला कभी बेटे को बाहों में भरते तो कभी भतीजे को। उनके लिए यह अद्भुत क्षण था। बेटा अभिराज उन्हीं के नक्शे कदम पर चलकर अफसर बन गया है। वहीं भतीजा पार्थ अब कैप्टन हो गया है। खास बात यह कि यह तीनों राजपूत रेजीमेंट में हैं।
एक बेटा अभी, एक जून में होगा पासआउट
ईस्ट चंपारण बिहार निवासी शिक्षक राकेश रंजन की खुशी का ठिकाना नहीं था। उनका बड़ा बेटा अविनाश रंजन सेना में अफसर बन गया है। छह माह बाद ही उनकी यह खुशी दोगुनी होने जा रही है। छोटा बेटा अभिषेक रंजन भी आइएमए में प्रशिक्षण ले रहा है और अफसर बनने की राह पर है।
सैन्य परम्परा की मिसाल ये परिवार
आइएमए में कुछ परिवार ऐसे भी दिखे जो सैन्य परम्परा की जीती जागती मिसाल हैं। मसलन पंचकुला का चौधरी परिवार। सेना में कमीशन हुए ध्रुव चौधरी के पिता अनिल चौधरी सेना में मेजर हैं। बड़ी बहन प्रियमवदा पिछले साल फौज में कमीशन हुई हैं। वहीं जीजा प्रतीक भाकुनी भी लेफ्टिनेंट हैं। नाना पृथ्वी सिंह फौज के रिटायर्ड कर्नल। ऐसा ही दिल्ली का राउत परिवार भी है। शनिवार को आइएमए से अंतिम पग भरने वाले नवयांशु राउत के पिता निश्चय ब्रिगेडियर हैं। उनके नाना के परिवार से भी कई फौजी अफसर हैं। यहां तक की बेटियां भी सेना में कॅरियर बना रही हैं।
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