उत्तराखंड पुलिस में आज भी जिंदा है ब्रिटिश काल का सिस्टम, हुए हैं सिर्फ चंद बदलाव; जानिए
उत्तराखंड के करीब साठ फीसदी इलाकों में अपराध नियंत्रण को आज भी अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था चंद बदलावोंं के साथ मूल स्वरूप में लागू है। हालांकि नैनीताल हाईकोर्ट ने करीब दो साल पहले अंग्रेजों के बनाए राजस्व पुलिस वाली व्यवस्था को खत्म करने का आदेश दिया था।
देहरादून, संतोष तिवारी। देश को आजाद हुए सात दशक से अधिक का समय गुजर चुका है। वक्त के साथ अंग्रेजों के बनाए तमाम कानून या तो खत्म कर दिए गए या फिर उनमें व्यवहारिक बदलाव कर लागू रखा गया, लेकिन उत्तराखंड के करीब साठ फीसदी इलाकों में अपराध नियंत्रण को आज भी अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था चंद बदलावोंं के साथ मूल स्वरूप में लागू है। हालांकि, नैनीताल हाईकोर्ट ने करीब दो साल पहले अंग्रेजों के बनाए राजस्व पुलिस वाली व्यवस्था को खत्म करते हुए सामान्य पुलिस प्रणाली लागू करने का आदेश दिया था। इस पर सरकार ने कुछ तेजी दिखाई है, लेकिन अभी यह मूर्त रूप नही ले सका है।
कोरोना काल में फिर महसूस हुई बदलाव की जरूरत
देश को तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रहे कोरोना वायरस की रोकथाम और इससे बचाव के लिए पहले लॉकडाउन लगा और अब अनलॉक की प्रकिया चल रही है। मगर इस दौरान प्रदेश के 60 फीसद क्षेत्र, जहां राजस्व पुलिस व्यवस्था लागू वहां, क्वारंटाइन, होम आइसोलेशन के साथ कोरोना प्रभावित इलाकों में शारीरिक दूरी, मास्क के नियमों का पालन कराने में राजस्व पुलिस को तमाम मुसीबतों का सामना करना पड़ा और अभी करना पड़ रहा है। इसकी वजह यह कि इन क्षेत्रों में कानून व्यवस्था का जिम्मा संभाल रही राजस्व पुलिस के पास न तो सामान्य पुलिस की तरह वायरलेस सेट हैं और न ही दौड़भाग करने के लिए गाड़ियां। ऐसे में अगर कहीं से लॉकडाउन उल्लंघन की सूचना आती है तो राजस्व पुलिस के पास उससे मुंह फेरने के सिवाय कोई और रास्ता नहीं होता।
राजस्व पुलिस वाला उत्तराखंड इकलौता राज्य
उत्तराखंड देश का इकलौता राज्य है, जहां अंग्रेजों के समय की राजस्व पुलिस की व्यवस्था अभी भी बरकरार है। इसमें पटवारी-तहसीलदार ही कानून व्यवस्था संभालते हैं। भौगोलिक स्थिति के लिहाज से अभी प्रदेश के 40 फीसद क्षेत्र में ही सिविल पुलिस तैनात है। शेष 60 फीसदी क्षेत्रों में राजस्व पुलिस आपराधिक मामले संभाल रही है। मैदानी जिलों में लॉकडाउन का पालन कराने को पुलिस ने जहां ताकत झोंक रखी है। वहीं, राजस्व पुलिस के पास सामान्य पुलिस जैसे संसाधन नहीं हैं। उस पर प्रशासनिक कार्य की जिम्मेदारी भी होने के कारण पटवारी और तहसीलदारों को कानून व्यवस्था संभालने में दिक्कत आना स्वाभाविक है। उनके लिए यह दोहरी जिम्मेदारी गले की फांस बनी हुई है। इससे प्रशासनिक कार्य भी प्रभावित होते हैं। ऐसे में पर्वतीय राजस्व उपनिरीक्षक, राजस्व उपनिरीक्षक व राजस्व सेवक संघ ने सरकार से मांग की है कि इस संकटकाल में कानून व्यवस्था दुरुस्त रखने को राजस्व क्षेत्र में भी पुलिस से जुड़े कार्य पुलिस विभाग के सुपुर्द कर दिए जाएं।
राजस्व पुलिस के क्षेत्र में 12 हजार से अधिक गांव
उत्तराखंड के 12 हजार से अधिक गांव राजस्व पुलिस के क्षेत्र में आते हैं। पर्वतीय राजस्व उपनिरीक्षक, राजस्व उपनिरीक्षक व राजस्व सेवक संघ के अध्यक्ष विजय पाल मेहता कहते हैं कि फिलहाल जितना संभव हो रहा है, लोगों को लॉकडाउन का पालन करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। हमारे पास न तो वायरलेस सेट हैं और न ही रेगुलर पुलिस की तरह स्टाफ। हमारी सूचनाओं का जरिया आम नागरिक ही हैं। ऐसे में अब सूचनाएं आना भी लगभग बंद हो गई हैं। इसीलिए हमने सरकार से मांग की है कि सामान्य पुलिस का दायरा राजस्व क्षेत्र तक बढ़ा दिया जाए।
1816 में लागू हुई थी व्यवस्था
इतिहास पर नजर डालें तो ब्रिटिश शासनकाल के दौरान वर्ष 1816 में कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर ने पटवारियों के 16 पद सृजित किए थे। वर्ष 1874 में पटवारी पद का नोटीफिकेशन हुआ। रजवाड़ा होने से टिहरी, देहरादून, उत्तरकाशी में पटवारी नहीं रखे गए। वर्ष 1916 में पटवारियों की नियमावली में अंतिम संशोधन हुआ। 1956 में टिहरी, उत्तरकाशी, देहरादून जिले के गांवों में भी पटवारियों को जिम्मेदारी दी गई। वर्ष 2004 में नियमावली में संशोधन की मांग उठी तो 2008 में कमेटी का गठन किया गया और 2011 में राजस्व पुलिस एक्ट अस्तित्व में आया। लेकिन, आज तक यह एक्ट कैबिनेट के सामने पेश नहीं हुआ।
कमिश्नरी प्रणाली की सुगबुगाहट
उत्तराखंड के चार बड़े जिलों देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंहनगर व नैनीताल में कमिश्नरी पुलिस प्रणाली लागू करने की चर्चा तब से जोर पकड़ने लगी है, जब से उत्तर प्रदेश ने अपने यहां कई बड़े जिलों में इस व्यवस्था को लागू किया है। सूत्रों की मानें तो उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय इसे लेकर गंभीर हो गया है और प्रस्ताव तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लेकिन देखना यह होगा कि जिस राज्य में अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था अब तक खत्म नही हो पाई, वहां नए प्रयोग होने में कितना वक्त लगेगा।
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छह महीने में खत्म होनी थी व्यवस्था
वर्ष 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान सरकार को आदेश दिया था कि छह माह के भीतर समूचे राज्य में रेगुलर पुलिस की व्यवस्था की जाए। संघ के अध्यक्ष विजय पाल मेहता बताते हैं कि इस आदेश के खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। जिस पर अभी सुनवाई चल रही है।
डीजी अपराध और कानून अशोक कुमार का कहना है कि पुलिस अपने क्षेत्र में अपराध एवं कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के साथ, जब कभी आवश्यकता पड़ती है तो राजस्व पुलिस की भी मदद की जाती है। उनके साथ सूचनाओं का भी हर समय आदान प्रदान होता रहता है।