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छह साल गुजर गए, नहीं बनी गोबर से बिजली; जानिए क्या था प्लान

डेयरी के गोबर की गंदगी से जनता को निजात दिलाने को नगर निगम ने ख्वाब तो दिखाया लेकिन छह साल बाद भी यह ख्वाब परवान नहीं चढ़ सका।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 17 Jul 2020 01:33 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jul 2020 10:56 PM (IST)
छह साल गुजर गए, नहीं बनी गोबर से बिजली; जानिए क्या था प्लान
छह साल गुजर गए, नहीं बनी गोबर से बिजली; जानिए क्या था प्लान

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। शहर की नदियों, नालों और नालियों में बह रहे डेयरी के गोबर की गंदगी से जनता को निजात दिलाने को नगर निगम ने ख्वाब तो दिखाया, लेकिन छह साल बाद भी यह ख्वाब परवान नहीं चढ़ सका। लाखों रुपये खर्च कर डीपीआर भी बनाई और निगम से लेकर शासन तक लंबीचौड़ी बैठकों के दौर भी चले, लेकिन फाइल टस से मस न हुई। शासन ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और सितंबर-2014 में शुरू हुई यह कसरत केवल डीपीआर और बैठकों में ही खत्म हो गई। एक साल पूर्व नगर निगम बोर्ड ने जून में हुई बैठक में प्लांट के निर्माण को मंजूरी दी थी। ओएनजीसी ने 10 करोड़ रुपये देने का भरोसा भी दिया, मगर नतीजा सिफर ही रहा।

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सितंबर 2014 में नगर निगम ने शहर में डेयरियों से गोबर उठाकर इसे ब्राह्मणवाला में एक प्लॉट में एकत्र कर वहां मेथेन-गैस ऊर्जा प्लांट लगाने के लिए कसरत शुरू की थी। बिजली बनाकर उसे बेचने की योजना बनाई गई। योजना को अपने दोनों हाथों में 'लड्डू' मानकर चल रहे निगम का मानना था कि एक तो वह गोबर उठाने का शुल्क डेयरियों से वसूलेगा, दूसरा बिजली बेचकर भी अलग कमाई होगी। योजना के प्रस्ताव को तत्कालीन मुख्यमंत्री से सैद्धांतिक मंजूरी भी मिल गई थी। 

तत्कालीन महापौर विनोद चमोली ने 16 सितंबर 2014 को निगम का प्रस्ताव मंजूर कर डीपीआर बनाने के आदेश दिए। डीपीआर में प्रस्ताव दिया गया कि 25 फीसद बजट शासन देगा, जबकि शेष नगर निगम खुद प्रबंध करेगा। ओएनजीसी से भी वार्ता कर बजट की डिमांड रखी गई। दूसरी तरफ डेयरी संचालकों को मैनेज करना शुरू किया गया। डेयरी संचालकों को एकत्र कर योजना के फायदे बताए गए। उन्हें समझाया गया कि योजना के बाद वे हर माह हो रहे चालान से बच सकेंगे, शहर को भी गंदगी से निजात मिलेगी और सड़कों पर गोबर नहीं मिलेगा, न नालियों में बहाया जाएगा, मगर यह कसरत छह साल बाद भी पूरी नहीं हो सकी।  

इस तरह बनाया गया था प्लान

डेयरी से गोबर अनिवार्य तौर पर निगम को देना होगा। नालियों में बहाने के बजाए गोबर को कैरेट में भरकर रखा जाएगा और निगम की गाड़ियां हर डेयरी से कैरेट उठा बंजारावाला प्लांट ले जाएंगी। संचालकों से यह भी कहा गया कि गोबर उठाने के लिए हर माह प्रति पशु निगम को तीन सौ रुपये देने होंगे। हालांकि, ज्यादातर संचालकों ने इस राशि को ज्यादा बताया था।

इसलिए नहीं मानते डेयरी संचालक

निगम को गोबर के साथ उसे उठाने का शुल्क देने पर डेयरी संचालक हामी भरेंगे, यह बात महज मजाक लगती है। दरअसल डेयरी वाले गोबर को खाद के लिए बेचते हैं। ये दीगर बात है कि, बचा-कुछा गोबर नाली में बहाया जाता है। ऐसे में वे निगम को मुफ्त में गोबर देने के साथ ही उसका तीन सौ रुपये प्रति पशु शुल्क क्यों देंगे, ये जवाब निगम नहीं दे सका।

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महापौर सुनील उनियाल गामा ने बताया कि ब्राह्मणवाला में नगर निगम की लगभग चार बीघा भूमि पर डेयरी के कचरे और गोबर को जमा कर उससे ऊर्जा गैस प्लांट लगाने के लिए नगर निगम बोर्ड ने पिछले साल भी स्वीकृति दी थी। पहले जो प्रस्ताव शासन में गया था, उसे संशोधित किया गया था। पूर्व में शासन को 25 फीसद बजट देना था पर नए प्रस्ताव में निगम ने खुद पूरा जिम्मा लेने की बात रखी। ओएनजीसी से दस करोड़ रुपये की मंजूरी मिल गई है। जल्द योजना धरातल पर होगी।

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