Move to Jagran APP

यहां गंगा तट पर साधना में लीन हैं 'श्रीकृष्ण', गरीब बच्चों को 'पंख' दे उड़ान भरने को बना रहे मजबूत

कृष्ण की भूमिका निभाने वाले अभिनेता सर्वदमन बनर्जी ऋषिकेश में एकाकी जीवन बिता रहे हैं। साथ ही गरीब बच्चों की निशुल्क शिक्षा को एक स्कूल का संचालन भी करते हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Thu, 07 May 2020 08:19 AM (IST)Updated: Thu, 07 May 2020 02:27 PM (IST)
यहां गंगा तट पर साधना में लीन हैं 'श्रीकृष्ण', गरीब बच्चों को 'पंख' दे उड़ान भरने को बना रहे मजबूत
यहां गंगा तट पर साधना में लीन हैं 'श्रीकृष्ण', गरीब बच्चों को 'पंख' दे उड़ान भरने को बना रहे मजबूत

ऋषिकेश, दुर्गा नौटियाल। जब रामलीला के मंचन में कोई परिचित व्यक्ति श्रीराम या लक्ष्मण का चरित्र निभाता, तो कहा-माना और देखा भी जाता कि उसके अपने चरित्र में वह विशिष्टताएं झलकने लगी हैं। टीवी धारावाहिक रामायण में श्रीराम का चरित्र निभाने वाले अभिनेता अरुण गोविल हों या महाभारत में कृष्ण बने नीतिश भारद्वाज, इन्हें आज भी देखें तो वही सादगी और गंभीरता झलकती है। रामानंद सागर कृत टीवी धारावाहिक श्रीकृष्ण, जिसका पुन: प्रसारण हो रहा है, इसमें कृष्ण की भूमिका निभाने वाले अभिनेता सर्वदमन बनर्जी तो इससे भी आगे निकल ऋषिकेश में एकाकी जीवन बिता रहे हैं।

loksabha election banner

1993 से 2000 के दौर में दूरदर्शन पर प्रसारित लोकप्रिय टीवी धारावाहिक 'श्रीकृष्ण' का लॉकडाउन की अवधि में दूरदर्शन पर दोबारा प्रसारण शुरू हो गया है। लेकिन सर्वदमन इन खबरों से परे योग, ध्यान, अध्यात्म, जनसेवा में इस कदर रम चुके हैं कि बाहरी बातों में उनकी कोई रुचि शेष नहीं रही है। कानपुर में बंगाली हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मे 56 वर्षीय सर्वदमन बीते कुछ वर्षों से तीर्थनगरी ऋषिकेश को अपनी तपोभूमि-कर्मभूमि बना चुके हैं। सबसे दूर वह यहां आध्यात्मिक जीवन बिता रहे हैं। साथ ही गरीब परिवार के बच्चों के लिए एक नि:शुल्क स्कूल 'पंख' का संचालन भी करते हैं।

पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से स्नातक सर्वदमन ने अभिनय की दुनिया को अलविदा कहने के बाद दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। साधक की भांति जीवन जी रहे सर्वदमन अब अपनी पिछली जिंदगी को याद भी नहीं करना चाहते। इन दिनों जब दूरदर्शन पर धारावाहिक 'श्रीकृष्ण' शुरू हो चुका है, तो प्रशंसक उन्हें और उनके अभिनय को रह-रहकर याद कर रहे हैं। मगर सर्वदमन मानो इन सबसे बेखबर हैं। यहां तक कि वे 'श्रीकृष्ण' का पुन: प्रसारण भी नहीं देख रहे हैं। सर्वदमन ने इसी वर्ष एक मार्च को ऋषिकेश में ध्यान केंद्र (लाइट हाउस मेडिटेशन सेंटर) खोला है। इसे उन्होंने गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की शिक्षा के लिए काम करने वाले स्कूल 'पंख' को समर्पित किया है।

योग से शुरू होती है दिनचर्या 

सर्वदमन की दिनचर्या योग से शुरू होती है और ध्यान और अध्यात्म के साथ ही सेवाकार्यों में उनका पूरा दिन बीत जाता है। कभी स्कूल में बच्चों के साथ, कभी गंगा तट पर और कभी जंगल में ध्यान-उपासना ही उनके जीवन का हिस्सा है। बीते डेढ़ माह से वह पूरी तरह लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं। उनका स्कूल भी बंद है।

गंगा और पर्यावरण को समर्पित किया जीवन 

ग्लैमर के शिखर पर पहुंचने के बाद शायद ही कोई शख्स स्वयं को इतना बदलता होगा। अपने जीवंत अभिनय से दर्शकों के दिलों में राज करने वाले सर्वदमन उस दौर के सिनेमा में अलग पहचान बना चुके थे। उन्होंने धारावाहिक 'अर्जुन', 'जय गंगा मैया' और 'ओम नम: शिवाय' के अलावा 'आदि शंकराचार्य' 'वल्लभाचार्य गुरु','श्री दत्ता दर्शनम', 'स्वामी विवेकानंद' आदि में भी अभिनय किया। मगर जीवन की राह तो कहीं और ही थी। बकौल सर्वदमन, ग्लैमर और चकाचौंध की दुनिया में वास्तव में कोई ग्लैमर नहीं है। ग्लैमर तो सिर्फ देखने वाले की नजरों में है। इसलिए मैंने अपना जीवन आत्मकल्याण, जनसेवा, गंगा और पर्यावरण को समर्पित कर दिया।

ऐसे मिली 'श्रीकृष्ण' बनने की प्रेरणा

शिव उपासक सर्वदमन ने कहा कि श्रीकृष्ण के चरित्र को निभाना भी ईश्वर की प्रेरणा से हुआ था। 'श्रीकृष्ण' धारावाहिक में काम नहीं करना चाहते थे। 'दैनिक जागरण' से बातचीत में सर्वदमन ने बताया कि उन्होंने इस बारे में सोचने के लिए रामानंद सागर से दस दिन का समय मांगा था। आठवें दिन वह ऑटो में बैठकर कहीं जा रहे थे। रास्ते में समुद्र को निहारते हुए अचानक उन्हें महसूस हुआ की समुद्र की लहरों के ऊपर भगवान कृष्ण नृत्य कर रहे हैं। यह दृश्य देख वह ऑटो में ही गिरकर बेहोश हो गए। होश आने पर उन्होंने ऑटो चालक से तुरंत रामानंद सागर के घर चलने को कहा। फिर जो कुछ हुआ, वह सबके सामने था।

यह भी पढ़ें: कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने को केदारनाथ में की जाएगी पूजा

सर्वदमन डी. बनर्जी तका कहना है कि कोरोना का प्रकोप उन सबके लिए सबक है, जो प्रकृति के विरुद्ध काम करते हैं। पर्यावरण को क्षति पहुंचाने के अलावा व्यक्ति का वैचारिक, चारित्रिक और सामाजिक पतन भी प्रकृति के विरुद्ध है, क्योंकि ऐसा हर कृत्य प्रकृति प्रदत्त मानवीय प्रवृत्ति के आदर्श के विरुद्ध है। यदि मनुष्य को बचना है तो उसे ऐसे सभी कुकृत्यों का त्याग करना होगा।

यह भी पढ़ें:  Kedarnath Yatra 2020 विधि विधान के साथ खोले गए केदारनाथ के कपाट, प्रधानमंत्री मोदी के नाम की गई प्रथम पूजा 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.