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स्कूली बस चालक अभिभावकों को रहे लूट, तामाश देख रहा परिवहन विभाग

स्कूली बस चालकों की मनमानी बढ़ती ही जा रही है। उन्होंने किराये में कर्इ गुना इजाफा कर अभिभावकों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 07 Aug 2018 01:48 PM (IST)Updated: Wed, 08 Aug 2018 08:51 AM (IST)
स्कूली बस चालक अभिभावकों को रहे लूट, तामाश देख रहा परिवहन विभाग
स्कूली बस चालक अभिभावकों को रहे लूट, तामाश देख रहा परिवहन विभाग

देहरादून, [जेएनएन]: स्कूली वाहन संचालक किराया बढ़ोतरी के नाम पर अभिभावकों के साथ खुलेआम लूट पर उतारू हो गए हैं और परिवहन विभाग मूकदर्शक बनकर तमाशा देख रहा है। हाईकोर्ट ने स्कूली वाहनों में बच्चों को भेड़-बकरी की तरह ठूंसकर ले जाने की प्रवृत्ति पर लगाम क्या कसी, इसकी भरपाई अभिभावकों से अनैतिक वसूली के रूप में की जाने लगी है। दून के अधिकतर स्कूल वैन व अन्य स्कूली वाहन संचालकों ने किराये में मामूली इजाफा नहीं किया, बल्कि किराया 53 फीसद तक बढ़ा दिया है।   

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यह बात उतनी गंभीर नहीं कि स्कूली वाहन संचालक अभिभावकों से मनमाना किराया वसूल कर रहे हैं। गंभीर यह कि अभिभावकों के साथ चल रही इस खुली लूट पर परिवहन विभाग आंखें मूंदे बैठा है। यह स्थिति तब है, जब परिवहन मुख्यालय के अधिकारी भी इस लूट-खसोट से भली-भांति वाकिफ हैं। इसके बाद भी स्कूली वाहन संचालकों की मनमानी पर रोक लगाए जाने की कार्रवाई नहीं की जा रही है। ऐसे में अभिभावकों की बेबसी उनके चेहरों पर साफ नजर आ रही है, मगर वह करें भी तो क्या। 

परिवहन विभाग ने दी लूट की छूट 

- स्कूली वाहनों के कमर्शियल होने के बाद भी आज तक किराया तय नहीं 

- संचालित हो रहे 2000 वाहन, पंजीकरण 450 का ही 

हाईकोर्ट का आदेश अब आया है और इसी के बाद परिवहन विभाग भी स्कूली वाहनों में क्षमता के अनुरूप ही बच्चों को बैठाने की दिशा में सख्ती कर रहा है। हालांकि पिछला रिकॉर्ड देखा जाए तो परिवहन विभाग की शह पर ही मनमानी की जा रही थी। सबसे पहली बात यह कि परिवहन विभाग में अब तक भी स्कूली वाहन के रूप में महज 450 वाहन पंजीकृत हैं, जबकि हकीकत में करीब 2000 वाहन स्कूली बच्चों को लाने-ले जाने का काम कर रहे हैं। स्कूली वाहन कमर्शियल वाहन के रूप में पंजीकृत हैं और इसके बाद भी इनका किराया तय नहीं किया गया है। किराया निर्धारण की छूट स्कूली वाहन संचालकों को देना अपने आप में बड़ा सवाल है। जबकि कमर्शियल श्रेणी के अन्य सभी वाहनों का किराया तय किया जाता है। 

इसके अलावा सात सीटर वाहन की बात करें तो इनमें 12 साल के बच्चों को क्षमता से दोगुनी संख्या में बच्चों को ढोया जा रहा था। हाई कोर्ट के आदेश पर वाहन संचालकों की यह मनमानी बंद हुई तो इसकी भरपाई किराया बढ़ोतरी के रूप में कर दी गई। इस तरह अभिभावकों पर तो बोझ एकदम से बढ़ गया, जबकि किराया बढ़ाए जाने के बाद वाहन संचालकों का मुनाफा और बढ़ गया है। क्योंकि पहले जिस सात सीटर वाहन में 14 बच्चे (12 वर्ष तक की उम्र के) बैठाने पर 21 हजार रुपये किराया प्राप्त होता था, वह आज 11 बच्चों तक सीमित हो जाने पर भी 30 हजार 800 रुपये हो गया है। 

इस तरह बढ़ा किराया 

-जिन छोटे वाहनों में 800 रुपये किराया था, वह बढ़कर 17 सौ रुपये हो गया है। 

-जो वाहन संचालक 15 सौ रुपये किराया वसूल करते थे, उन्होंने उसे बढ़ाकर 28 सौ रुपये कर दिया है। 

बाल आयोग से की मनमानी की शिकायत 

स्कूल वैन व ऑटो संचालकों की मनमानी के खिलाफ नेशनल एसोसिएशन फॉर पैरेंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स (एनएपीएसआर) ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग में शिकायत दर्ज कराई। संगठन ने आयोग अध्यक्ष ऊषा नेगी से इस मनमानी पर अंकुश लगाने की मांग उठाई। एनएपीएसआर के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरिफ खान ने आयोग को बताया कि स्कूल वैन और ऑटो संचालकों की मनमानी के चलते हजारों अभिभावकों को अपने बच्चों को स्कूल भेजना असंभव सा हो गया है। 53 फीसद तक किराया बढ़ाए जाने की सुध न तो परिवहन विभाग ले रहा है, न ही शासन व सरकार को इस बात की फिक्र है। 

उन्होंने कहा कि जब अन्य कमर्शियल वाहनों के लिए किराया तय है तो इन वाहनों को किस नियम के तहत छूट के दायरे में रखा गया है। मांग उठाई गई कि स्कूली वाहनों का भी प्रति किलोमीटर के हिसाब से किराया तय किया जाना चाहिए। संगठन ने इस मामले में आयोग से हस्तक्षेप करने की मांग उठाई। शिकायत करने वालों में हेमेंद्र मलिक, विनोद कुमार, सुल्तान अहमद, जमशेद अली, मो. अफसान, तबस्सुम, मधु, शाइस्ता, कमरजहां, आदि शामिल रहे। 

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