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33 माह बाद भी पूरी नहीं हुई छात्रवृति घोटाले की जांच

समाज कल्याण विभाग की ओर से वितरित की गई छात्रवृति में हुए घोटाले की जांच दो वर्ष नौ माह बाद भी पूरी नहीं हो पाई है।

By Edited By: Published: Thu, 10 Jan 2019 03:01 AM (IST)Updated: Thu, 10 Jan 2019 03:22 PM (IST)
33 माह बाद भी पूरी नहीं हुई छात्रवृति घोटाले की जांच
33 माह बाद भी पूरी नहीं हुई छात्रवृति घोटाले की जांच

देहरादून, राज्य ब्यूरो। समाज कल्याण विभाग की ओर से वितरित की गई छात्रवृति में हुए घोटाले की जांच दो वर्ष नौ माह बाद भी पूरी नहीं हो पाई है। इस अंतराल में अपर सचिव स्तर के दो अधिकारियों ने जांच कर घोटाले की पुष्टि की। यहां तक कि बीते वर्ष अप्रैल में गठित विशेष जांच दल भी अभी तक की अपनी रिपोर्ट में घोटाले की पुष्टि कर रहा है। बावजूद इसके न तो अभी तक किसी भी अधिकारी-कर्मचारी अथवा छात्रवृति बांटने वाले किसी कॉलेज के प्रबंधन को आरोपित बनाया गया है। 

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तकरीबन दो वर्ष और नौ माह से चल रही जांच का अभी तक पूरा न होना कहीं न कहीं इसके पीछे बड़े खेल की ओर इशारा कर रहा है। शासन में वर्ष 2016 में एक शिकायत आई थी। इसमें यह कहा गया कि वर्ष 2011-12 से वर्ष 2015 के बीच बड़ा छात्रवृति घोटाला हुआ है। उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों में निजी आइटीआइ में पढ़ने वाले छात्रों के नाम पर समाज कल्याण विभाग से छात्रवृति ली गई है। इसके तहत इन छात्रों के एडमिशन व पढ़ाई का पैसा विभाग ने दिया है।

वास्तविकता यह है कि इन निजी संस्थाओं में प्रदेश के किसी भी छात्र ने पढ़ाई नहीं की है। समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से इन संस्थानों के जरिए ऐसे छात्रों को छात्रवृति देना दर्शाया गया है, जो अस्तित्व में ही नहीं हैं। पूरे मामले में दो सौ करोड़ से अधिक घोटाले का अंदेशा जताया गया। यह शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय में भी की गई। जहां से इसका संज्ञान लेते हुए विभाग को इसकी जांच करने को कहा था।

इस शिकायत पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसकी विजिलेंस जांच कराई तो इसमें विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत पुष्ट हुई। यह रिपोर्ट शासन में दब गई। वर्ष 2016 में ही शासन ने अपर सचिव वी षणमुगम को इस पूरे मामले की जांच सौंपी। उन्होंने मामले की जांच में संबंधित विश्वविद्यालय, निजी आइटीआइ व समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों की संलिप्तता पाई। 

सूत्रों की मानें तो उन्होंने शुरूआत में मिले साक्ष्यों के आधार पर इस प्रकरण में दस करोड़ रुपये के घोटाले की बात कही और इसके बढ़ने की आशंका भी जताई। मार्च 2017 में भाजपा सरकार के आने के बाद इस मामले में जांच अधिकारी बदले गए और तत्कालीन अपर सचिव मनोज चंद्रन को इस घोटाले की जांच सौंपी गई। उन्होंने जांच को आगे बढ़ाते हुए इसमें कुछ और तथ्य जुटाए और बड़े घोटाले की ओर इशारा करते हुए अपनी जांच रिपोर्ट शासन को सौंपी।

इस रिपोर्ट के बाद सरकार ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए अप्रैल 2018 में इस मामले में सभी शिकायत व प्रकरणों की जांच एसआइटी से कराने का निर्णय लिया। एसआइटी की कमान पुलिस अधीक्षक मंजूनाथ टीसी को सौंपी गई। उन्होंने भी हाल ही में कोर्ट को सौंपी अपनी रिपोर्ट में घोटाले की पुष्टि की है। हालांकि, अभी तक इसकी पूरी रिपोर्ट तैयार नहीं हो पाई है। 

सहयोग न करने वाले होंगे चिह्नित

कोर्ट में एसआइटी की ओर से दायर हलफनामे में समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों द्वारा सहयोग न करने की बात को सरकार ने गंभीरता से लिया है। समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य ने अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह को जांच में सहयोग न करने वाले अधिकारियों को चिह्नित कर उनके खिलाफ कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं।

जांच का दायरा बढ़ा समयबद्ध की गई थी जांच

शासन ने मंगलवार को इस जांच का दायरा बढ़ाते हुए आइजी स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में एसआइटी का गठन किया था। इसके अलावा इस जांच को समयबद्ध भी किया गया था। इसमें डीआइजी स्तर के अधिकारी के साथ ही विभिन्न जिलों के एसपी स्तर के अधिकारियों को शामिल किया था। हालांकि, अब यह अस्तित्व में नहीं है।

बोले मंत्री

यशपाल आर्य (समाज कल्याण मंत्री) का कहना है कि सरकार इस प्रकरण में जांच को लेकर गंभीर है। मंशा यह कि इस पूरे घोटाले की तह तक पहुंचा जा सके। जांच में सहयोग न करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश भी अपर मुख्य सचिव समाज कल्याण को दिए गए हैं।

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