क्रॉनी कैपिटलिज्म का शिकार हैं रघुराम राजन
अर्थशास्त्री एवं श्रीगुरु राम राय पीजी कॉलेज के प्राचार्य प्रो. वीए बौड़ाई ने आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन के विरोध के पीछे क्रॉनी कैपिटलिज्म को कारण बताया।
देहरादून, [सुमन सेमवाल]: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआइ) के गवर्नर रघुराम राजन की कार्यप्रणाली को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी तो उनके धुर विरोधी नजर आ रहे हैं। मुख्य रूप से उन पर ब्याज दरों को ऊंचा रखने का आरोप है।
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इस बार का जागरण विमर्श भी इसी विषय पर केंद्रित रहा। अर्थशास्त्री एवं श्रीगुरु राम राय पीजी कॉलेज के प्राचार्य प्रो. वीए बौड़ाई ने 'आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन के समर्थन-विरोध की मुहिम सही है?' विषय पर आयोजित विमर्श में विचार रखते हुए रघुराम राजन के विरोध के पीछे क्रॉनी कैपिटलिज्म को कारण बताया।
पटेलनगर स्थित जागरण कार्यालय में आयोजित जागरण विमर्श को संबोधित करते हुए प्रो. वीए बौड़ाई ने कहा कि रघुराम राजन की कार्यप्रणाली का आंकलन इतिहास के महान अर्थशास्त्री कींस के 'तरलता पसंदगी सिद्धांत' के आधार पर करनी चाहिए।
इसके तहत यदि मुद्रा की लिक्विडिटी (तरलता) बढ़ा दी जाए तो ब्याज दरें कम होने लगती हैं। मगर, इसकी एक सीमा है, कई बार तरलता बढ़ाने पर अर्थव्यवस्था लिक्विडिटी ट्रैप का शिकार हो जाती है। जिसके परिणाम बेहद घातक होते हैं।
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राजन ने मुद्रा की तरलता पर अंकुश लगाया है। इसके चलते ब्याज दरें तो कम नहीं हुईं, मगर महंगाई की दर 11 फीसद से घटकर आठ फीसद पर आ गई। वहीं, विकास दर भी पांच से बढ़कर आठ फीसद पर पहुंच गई। इस लिहाज से आरबीआइ गवर्नर के निर्णय को सही ठहराया जा सकता है।
इसके साथ ही प्रो. बौड़ाई ने कहा कि आरबीआइ एक नियामक संस्था है और रघुराम राजन का एक दायरा है। वह चाहकर भी इससे बाहर जाकर काम नहीं कर सकते। अर्थव्यवस्था सूत्र पर चलती है, नियमों से इतर इसमें मनचाहे और त्वरित बदलाव नहीं किए जा सकते।
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भाजपा सांसद बिना स्पष्ट सुझाव के ब्याज दरों में कमी लाने की बात कह रहे हैं। आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहे। यह निर्णय इतना आसान नहीं। अर्थव्यवस्था की गणित इस तरह के त्वरित निर्णयों की इजाजत भी नहीं देती।
प्रो. बौड़ाई ने उन बिंदुओं पर भी प्रकाश डाला जिसके चलते रघुराम को निशाने पर लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक का गवर्नर होने के नाते रघुराम राजन ने वर्षों से चली आ रही क्रॉनी कैपिटलिज्म की व्यवस्था को हतोत्साहित करने का प्रयास किया है।
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वह बैंकों के फंसे हुए कर्ज को कम करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बेबाकी से कहा है कि बैंकिंग व्यवस्था का इस्तेमाल क्रॉनी कैपिटलिज्म को पूंजी देने के लिए किया जा रहा है।
उनके कार्यकाल में आठ फीसद पर पहुंची विकास दर बैड लोन से होने वाले घाटे की भरपाई करने में भी मदद कर रही है। कुल मिलाकर रघुराम राजन क्रॉनी कैपिटलिज्म का शिकार हो रहे हैं। यदि वह ऐसी पहल नहीं करते तो शायद वह आरोप-प्रत्यारोप के विषय से बाहर होते।
रघुराम राजन के समर्थन-विरोध की मुहिम संबंधी सवाल के जवाब में प्रो. बौड़ाई ने स्पष्ट कहा कि वह आरबीआइ गवर्नर की हैसियत से नियमों के अनुरूप ही कार्य कर रहे हैं।
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उन्होंने कहा कि आरबीआइ गवर्नर के निर्णयों को मुद्दों से हटाकर व्यक्ति पर केंद्रित नहीं करना चाहिए। वैसे भी अर्थव्यवस्था के तमाम पहलुओं पर नीतिगत फैसले लेने के लिए आरबीआइ स्वतंत्र है। जबकि, आरबीआइ गवर्नर के फैसलों को व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी व उनके कार्यकाल बढ़ाने व न बढ़ाने से जोड़ा जा रहा है।
यह है क्रॉनी कैपिटलिज्म
क्रॉनी कैपिटलिज्म के तहत सरकार पूंजीपतियों को ग्रांट, विशेष कर रियायत और कानूनी रियायत देती है। इसका अनुचित फायदा अक्सर पूंजीपतियों व कार्पोरेट जगत को मिल जाता है।
इसलिए विरोध झेल रहे राजन
-आर्थिक लिहाज से सुधारों के प्रयास लंबे समय से जारी हैं, मगर बुनियादी स्तर पर प्रयास लंबे समय बाद नजर आए। इसे राजनीतिक दृष्टि से नुकसानदेह ठहराया जा रहा है।
-बढ़ते एनपीए को लेकर सरकारों की चुप्पी पर रघुराम राजन ने मुद्रास्फीति पर अंकुश के लिए बैंकों को साफ-सुथरा बनाने की मुहिम छेडऩा।
-सरकार की राजनीतिक महत्वकांक्षा से इतर अर्थशास्त्र के खांटी नियमों के अनुरूप कार्य करना।
-अर्थव्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक नीति के अनुरूप ढालने के प्रयास करना।
-औद्योगिक सेक्टर में आसान व अर्थशास्त्र की अपारंपरिक मौद्रिक नीति पर बेबाक बयानबाजी।
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