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Uttarakhand Lockdown आने वाले दिनों में पहाड़ में सार्वजनिक परिवहन एक बड़ी चुनौती

कोरोना संकट के दृष्टिगत बरती जा रही सजगता और सतर्कता अगर स्थायी रूप लेती है तो आने वाले दिनों में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में सार्वजनिक परिवहन एक बड़ी चुनौती साबित होगा।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 30 Apr 2020 08:51 AM (IST)Updated: Thu, 30 Apr 2020 10:17 PM (IST)
Uttarakhand Lockdown आने वाले दिनों में पहाड़ में सार्वजनिक परिवहन एक बड़ी चुनौती
Uttarakhand Lockdown आने वाले दिनों में पहाड़ में सार्वजनिक परिवहन एक बड़ी चुनौती

देहरादून, राज्य ब्यूरो। कोरोना संकट के दृष्टिगत बरती जा रही सजगता और सतर्कता अगर स्थायी रूप लेती है तो आने वाले दिनों में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में सार्वजनिक परिवहन एक बड़ी चुनौती साबित होगा। खासकर, शारीरिक दूरी के हिसाब से बसों का सिटिंग अरेंजमेंट बदलता है तो जिस रूट पर दो बस सेवाएं संचालित होती हैं, वहां इनकी संख्या बढ़ानी पड़ेगी। फिर मौजूदा परिस्थितियां ऐसी हैं कि किराये में बढ़ोतरी भी नहीं की जा सकती। इस सबको देखते हुए निजी और सरकारी क्षेत्र की परिवहन कंपनियों की नजरें अब केंद्र सरकार पर टिक गई हैं। वे चाहती हैं कि सरकार उन्हें आर्थिक मदद मुहैया कराए।

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लॉकडान के चलते उत्तराखंड में सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह से बंद हैं। नौ पर्वतीय जिले कोरोनामुक्त चल रहे हैं, लेकिन अन्य जिलों में जिस तरह से कोरोना के मामले सामने आ रहे, उससे आने वाले दिनों में सार्वजनिक परिवहन की तस्वीर को लेकर ऊहापोह भी बना है। सभी जिलों के कोरोनामुक्त होने के बाद भी सजगता और सतर्कता का क्रम तो फिलहाल बना ही रहेगा। ऐसे में यदि सार्वजनिक परिवहन सेवाएं शुरू होती हैं तो उनमें शारीरिक दूरी बनाए रखने के मद्देनजर वाहनों में सिटिंग अरेंजमेंट बदलना तय है।

इसे देखते हुए पर्वतीय क्षेत्र में यात्री परिवहन सेवाओं का संचालन किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा, जहां सार्वजनिक परिवहन ही यातायात का मुख्य साधन है। राज्य की निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी परिवहन कंपनी गढ़वाल मोटर ऑनर्स यूनियन लि. (जीएमओयूलि) के अध्यक्ष जीत सिंह पटवाल कहते हैं कि परिवहन का स्वरूप कैसा होगा, ये तो केंद्र की गाइडलाइन पर निर्भर है। अलबत्ता, सजगता व सतर्कता स्थायी रूप लेती है तो सिटिंग अरेंजमेंट बदलना ही होगा। ऐसे में सभी क्षेत्र की कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

पटवाल बताते हैं कि जीएमओयू की रोजाना करीब 400 बस सेवाएं पर्वतीय मार्गों पर संचालित होती हैं। यदि सिटिंग अरेंजमेंट बदलता है तो सभी मार्गों पर बसों की संख्या तीन से चार गुना ज्यादा करनी होगी, जो बड़ी चुनौती है। बसों की व्यवस्था हो भी गई तो किराया नहीं बढ़ाया जा सकता, क्योंकि सफर करने वाले भी कोरोना संकट से त्रस्त हैं। ऐसे में जरूरी है कि केंद्र सरकार इस भरपाई के लिए आर्थिक इमदाद देना सुनिश्चित करे।

राज्य सड़क परिवहन निगम के महाप्रबंधक (संचालन) दीपक जैन भी मानते हैं कि बदली परिस्थितियों में सार्वजनिक परिवहन भी चुनौतीपूर्ण है। हालांकि, सरकार जो भी गाइडलाइन तय करेगी, उसी के हिसाब से कदम उठाए जाएंगे। निगम रोजाना 1100 बसें संचालित करता है, जिनमें 500 पर्वतीय क्षेत्र में चलती हैं।

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शहरी क्षेत्रों में चलें बड़ी बसें

सड़क मामलों के जानकार अजय गोयल कहते हैं कि कोरोना संकट को देखते हुए शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक परिवहन के लिए बड़ी बसों का संचालन करना चाहिए, ताकि शारीरिक दूरी के मानकों का पालन हो सके। वह कहते हैं कि यदि 50-52 सीटर बस होगी तो उसमें 20 लोग तो सफर कर ही सकेंगे। साथ ही बसों के फेरे बढ़ाए जा सकते हैं।

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