विरासत महोत्सव में बिखरी पंजाबी लोक संस्कृति की छटा Dehradun News
विरासत महोत्सव की शाम पंजाब की लोक संस्कृति और गीत- संगीत के नाम रही। पंजाबी लोक कलाकारों के भंगड़ा की प्रस्तुति पर दर्शक थिरकने को मजबूर हो गए।
देहरादून, जेएनएन। विरासत महोत्सव की शाम पंजाब की लोक संस्कृति और गीत- संगीत के नाम रही। जहां पंजाबी लोक कलाकारों के भंगड़ा की प्रस्तुति पर दर्शक थिरकने को मजबूर हो गए, वहीं गीत-संगीत और शायरी ने श्रोताओं का मन जीत लिया।
कौलागढ़ स्थित बीआर आंबेडकर स्टेडियम में आयोजित विरासत के ग्यारहवें दिन पंजाब के 16 सदस्यीय लोक कलाकारों ने विरासत में लोक संस्कृति का ऐसा रंग घोल की पूरा परिसर पंजाब की संस्कृति के रंगा नजर आया। वहीं पंजाबी भंगड़े ने तो दर्शकों का थिरकने को मजबूर कर दिया। उसके बाद पंजाब की संस्कृति की छटा बिखरते हुए उन्हें कई लोक नृत्य व लोकगीत प्रस्तुत किए।
वहीं गायक कमल कटाकी, आशा शर्मा कटाकी ने मिलकर भूपेन हजारिका के जीवन पर प्रकाश डाला। समारोह में उन्होंने दिल हूम हूम करे गीत सुनाकर श्रोताओं की तालियां बटोरी, वहीं गंगा तुम बहती क्यों हो ... गीत की प्रस्तुतियों ने तो दर्शकों का मन जीत लिया।
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उन्होंने लोक संगीत की इस कला से श्रोताओं को परिचित कराया वहीं गायन के माध्यम से अपनी आवाज के जादू से श्रोताओं को बांधे रखा। दूसरी ओर विरासत में पहली बार मध्य प्रदेश से आए शायर असलम रशीद ने शायरी के माध्यम से कई पहलू को छुआ साथ ही अपनी सशक्त लेखनी से श्रोताओं को परिचित कराया। श्रोताओं ने शायरी का खूब आनंद उठाया।
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