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चुनावी मौसम आए और गए, नहीं सुधर पाई दून की बिगड़ती आबोहवा

राजधानी बनने से लेकर अब तक यहां चुनाव के कई मौसम आए और गए मगर कभी भी दून की आबोहवा के बिगड़ते मिजाज को मुद्दा नहीं बनाया गया।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 01:50 PM (IST)Updated: Thu, 21 Mar 2019 11:00 AM (IST)
चुनावी मौसम आए और गए, नहीं सुधर पाई दून की बिगड़ती आबोहवा
चुनावी मौसम आए और गए, नहीं सुधर पाई दून की बिगड़ती आबोहवा

देहरादून, सुमन सेमवाल। चुनाव कोई भी हों, उसकी बिसात राजधानी देहरादून में ही बिछाई जाती है और मोहरों को मैदान में उतारने से लेकर शह-मात तक का पूरा खेल को भी यहीं पर अंजाम दिया जाता है। राजधानी बनने से लेकर अब तक यहां चुनाव के कई मौसम आए और गए, मगर कभी भी दून की आबोहवा के बिगड़ते मिजाज को मुद्दा नहीं बनाया गया। यही वजह है कि बीते 18 सालों में वायु प्रदूषण में दून देश के सबसे छह प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल हो चुका है। 

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दूसरी तरफ एक दौर में जिन रिस्पना और बिंदाल नदी से दून की पहचान थी, उनमें प्रदूषण का ग्राफ 76 गुना हो चुका है। एक पल के लिए यह भी भुला दें कि दून प्रदेश की राजधानी है और सिर्फ इसकी अहमियत लोकसभा चुनाव के आधार पर देखी जाए तो दून दो लोकसभा क्षेत्रों के लिहाज से भी खासा मायने रखता है। टिहरी लोकसभा क्षेत्र के 67 फीसद से अधिक मतदाता दून में निवास करते हैं और हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र के भी 27 फीसद से अधिक मतदाता दून के ही हैं। 

सबसे पहले नजर डालते हैं दून के वायु प्रदूषण पर। करीब डेढ़ साल पहले संसद में रखी गई केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक दून में पीएम (पार्टिकुलेट मैटर)-10 की मात्रा मानक से चार गुना 241 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (वार्षिक औसत) पाई गई है। 

यह 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। दून की फिजा में घुलते जहर को हर दूनवासी महसूस कर सकता है और अब तो आकंड़े भी चीख-चीख कर कह रहे हैं कि सांसों में घुलते जहर को नहीं थामा गया तो नतीजे बेहद भयानक होंगे। 

पर्यावरण संरक्षण व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर प्रदूषण पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी है, उसकी भूमिका तो आंकड़े एकत्रित करने से आगे ही नहीं बढ़ रही। दून के जिस संभागीय परिवहन कार्यालय में हर साल करीब 54 हजार नए वाहन पंजीकृत हो रहे हैं, वह भी यह जानने की कोशिश नहीं कर रहा कि शहर में कितने वाहन मानक से अधिक धुआं छोड़ रहे हैं। 

जिस दून शहर में वायु प्रदूषण का ग्राफ दिनों-दिन बढ़ रहा है, वहां से सरकार व शासन की व्यवस्था भी संचालित होती है। यह बात और है कि आज तक किसी भी सरकार की प्राथमिकता में दून का वायु प्रदूषण रहा ही नहीं। विपक्ष का शोर भी कभी बढ़ते वायु प्रदूषण पर सरकार की खामोशी को नहीं तोड़ पाया। कुछ सामाजिक संगठन जरूर दून की आबोहवा को लेकर सुसुप्त सरकार को जगाने का प्रयास करते हैं, लेकिन इनकी आवाज सुनता ही कौन है।

दूसरी तरफ जिस रिस्पना नदी के पुनर्जीवीकरण को लेकर राज्य की वर्तमान सरकार प्राथमिकता से काम करने के दावे करती रही, उसके और दून की ही दूसरी नदी बिंदाल के पानी में टोटल कॉलीफार्म (विभिन्न हानिकारक तत्वों का मिश्रण) की मात्रा 76 गुना अधिक है। 

पीने योग्य पानी में यह पात्रा एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर)/ प्रति 100 एमएल में 50 से अधिक नहीं होनी चाहिए। यह मात्रा भी 3800 पाई गई। यहां तक कि जिस फीकल कॉलीफार्म की मात्रा शून्य होनी चाहिए, उसकी दर 1460 एमपीएन/100 एमएल पाई गई। 

नदी के पानी में जहां घुलित ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा मानक से बेहद कम पाई गई, वहीं बॉयकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) की मात्रा बेहद अधिक है। तमाम अन्य हानिकारक तत्वों की मात्रा भी सीमा से कोसों अधिक रिकॉर्ड की गई है। 

दून की आबोहवा की स्थिति

वायु प्रदूषण में टॉप टेन राज्य (पीएम-10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर)

राज्य/शहर----------------प्रदूषण का स्तर

दिल्ली------------------------278

वाराणसी---------------------256

बरेली-------------------------253

देहरादून----------------------241

गाजियाबाद------------------235

फिरोजाबाद------------------223

सहारनपुर--------------------218

कानपुर-----------------------217

खुर्जा--------------------------216

लखनऊ---------------------2014

यह हैं वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण

वाहनों का धुआं: राजधानी बनने के बाद दून में वाहनों की संख्या बेहद तेजी से बढ़ी। यहां हर साल 54 हजार के करीब नए वाहन पंजीकृत हो रहे हैं, जबकि कुल वाहनों की संख्या करीब नौ लाख के करीब आंकी गई है। वाहन मानक से अधिक धुआं न उगलें, इसके लिए कार्रवाई की जिम्मेदारी परिवहन विभाग को दी गई है। यह बात और है कि कभी विभाग ने इस ओर गंभीरता से ध्यान ही नहीं दिया।

दून घाटी की कटोरानुमा बनावट: दून एक कटोरानुमा घाटी के आकार की है। ऐसे में यहां जो भी वायु प्रदूषण होता है, वह आसानी से बाहर नहीं निकल पाता है और लंबे समय तक दून के वायुमंडल में ही बना रहता है।

अनियोजित विकास: राजधानी बनने के बाद से ही दून में निर्माण की बाढ़ आ गई और अनियोजित निर्माण को भी बढ़ावा मिला। इसके चलते निर्माण कार्य से निकलने वाले धूलकण पीएम-10 का स्तर और बढ़ा देते हैं। वायु प्रदूषण बढ़ाने में अनियोजित निर्माण भी एक बड़ी वजह है।

घटती हरियाली, बढ़ता प्रदूषण: दून में हरियाली का ग्राफ 65 फीसद से अधिक घट गया है। दून शहर कभी आम-लीची के बागों और बासमती की खेती के लिए जाना जाता था, जबकि आज इनकी जगह कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं। पेड़-पौधे वातावरण से कार्बनडाई ऑक्साइड को सोख लेते हैं, लेकिन तेजी से घटती हरियाली में यह क्षमता घटी और प्रदूषण तेजी से बढ़ता चला गया।

रिस्पना-बिंदाल के पानी की स्थिति (टोटल कॉलीफार्म व फीकल कॉलीफार्म की मात्रा एमपीएन/100 एमएल में व अन्य की मात्रा एमजी/लीटर में)

तत्व------------------------मानक------------पाई गई मात्रा

तेल-ग्रीस---------------------0.1---------------11 से 18

टीडीएस---------------------500----------740 से 1200

बीओडी------------------------02----------126 से 144

डीओ----------------06 से अधिक,-------अधिकतम 1.4

लैड--------------------0.1-------------------------0.54

नाइट्रेट------------------20-----------------388 से 453

टोटल कॉलीफार्म----------50------------1760 से 3800

फीकल कॉलीफार्म-------शून्य--------------516 से 1460

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