पुलिसकर्मी अभी भी मास्क और सेनिटाइजर के भरोसे डटे हुए हैं मोर्चे पर
तमाम विभागों में जहां वर्क टू होम का आदेश होने लगा है वहीं पुलिसकर्मी अभी भी मास्क और सेनिटाइजर के भरोसे मोर्चे पर डटे हुए हैं।
देहरादून, संतोष तिवारी। अब तक अपराधियों ने ही नाक में दम कर रखा था। अब पुलिस के सामने कोरोना संदिग्धों से भी निपटने की चुनौती है। पिछले दिनों कोरोना संदिग्धों के भागने की खबर के बाद कुछ लोग सवाल पूछने लगे कि पुलिस क्या कर रही थी? अब उन्हें कौन बताए कि कोरोना संदिग्धों को दौड़ाकर तो पकड़ा नहीं जा सकता। इन्हें पकड़ने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम के साथ वो तमाम उपाय भी करने होंगे, जिससे किसी पुलिसकर्मी को संक्रमण न हो। सवाल यह भी होना चाहिए कि पुलिसकर्मियों की सुरक्षा के लिए क्या कोई गाइडलाइन तय की गई है। यह पुलिस का जज्बा ही है कि तमाम विभागों में जहां वर्क टू होम का आदेश होने लगा है, वहीं पुलिसकर्मी अभी भी मास्क और सेनिटाइजर के भरोसे मोर्चे पर डटे हुए हैं। शासन को पुलिसकर्मियों के स्वास्थ्य को लेकर भी रणनीति बनानी पड़ेगी, जिससे वह खुद को सुरक्षित महसूस करें।
हर तरफ कोरोना तेरी ही चर्चा
इन दिनों अगर कोई लाइमलाइट में है तो वो है कोरोना। खौफ के कारण ही सही, लेकिन यही एक नाम है जो एशिया से यूरोप तक लोगों की जुबां पर चढ़ा हुआ है। सचिवालय से लेकर हर सरकारी दफ्तर में भी कामकाज के बजाय सिर्फ और सिर्फ कोरोना पर बहस चल रही है। हर कोई कोरोना पर अपने तर्क और वाट्सएप यूनिवर्सिटी का ज्ञान बघार रहा है। लेकिन, एहतियात बरतने में ये उतने ही पीछे हैं। ...तो क्या कोरोना से निपटने के लिए सिर्फ चर्चाओं का दौर ही काफी है? हालांकि, कुछ दफ्तरों में आम लोगों के आने-जाने पर रोक लगा दी गई है। हो सकता है कि कोरोना संक्रमण के खतरे को कम किया जा सके। मगर उन लोगों का क्या, जो एक पखवाड़े से सरकारी दफ्तरों में कामकाज सुचारू होने की आस में है। क्योंकि, पहले हड़ताल के चलते कामकाज ठप था और अब कोरोना के डर से।
धरना को शहर में चाहिए ठिकाना
अब तक परेड ग्राउंड में धरना देकर सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचने वाले अधिकारी-कर्मचारियों से लेकर तमाम संगठनों से जुड़े लोग इन दिनों अजीब पसोपेश में हैं। वजह यह कि प्रशासन ने धरनास्थल को सहस्रधारा रोड पर शिफ्ट कर दिया है। अब वह धरना दे रहे हैं तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा। क्योंकि, वहां न तो आम जनता की नजर उन पर पड़ रही है और न ही सरकार को इससे किसी तरह की परेशानी हो रही है। ऐसे में संगठनों ने अब सरकार से गुहार लगाई है कि धरनास्थल शहर में ही आवंटित किया जाए। इसके लिए जिला प्रशासन को तीन स्थान भी सुझा दिए गए हैं। लेकिन, प्रशासन शहर में धरनास्थल दोबारा आवंटित करने के बारे में शायद ही विचार करे। क्योंकि शहर में धरना होने से आंदोलित लोग कभी सचिवालय तो कभी मुख्यमंत्री आवास या किसी मंत्री के घेराव को निकल पड़ते हैं।
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जेलों में आंतरिक सुरक्षा पर सवाल
जिला कारागार में बीते रविवार को दो कैदियों के बीच हुए खूनी संघर्ष में एक कैदी की जान चली गई। सवाल यह उठता है कि जेल के अंदर ऐसी स्थिति उत्पन्न क्यों हुई? कारागार के अंदर जेल प्रशासन बाकायदा मुखबिर तंत्र बनाकर रखता है ताकि उसे किसी तरह की अवांछनीय गतिविधि के बारे में तुरंत पता चल जाए। लेकिन, सुद्धोवाला जेल में हुई इस घटना का पता जेल प्रशासन को तब चला, एक कैदी गंभीर रूप से घायल हो गया। यह घटना साफ तौर पर इशारा करती है कि जेलों में अभी बहुत कुछ ठीक किया जाना बाकी है। हालांकि, देखना होगा कि जेल प्रशासन और शासन इस घटना से क्या सबक लेता है। इस घटना की मजिस्ट्रेटी जांच भी कराई जाएगी। पूर्व में भी कैदियों की अचानक मौत की मजिस्ट्रेटी जांच हो चुकी है। ऐसे में सवाल यह भी होना चाहिए कि उससे जेल प्रशासन ने क्या सबक लिया।
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