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सावधान दून! लॉकडाउन में छूट है, कोई ऑफर नहीं; कोरोना संक्रमण का बढ़ा खतरा

लॉकडाउन के तीसरे चरण में सरकार ने शराब की दुकानों को खोलने की छूट दी जरूर लेकिन शायद इसके लिए ठीक से होमवर्क करना भूल गई।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 05 May 2020 02:14 PM (IST)Updated: Tue, 05 May 2020 02:14 PM (IST)
सावधान दून! लॉकडाउन में छूट है, कोई ऑफर नहीं; कोरोना संक्रमण का बढ़ा खतरा

देहरादून, जेएनएन। लॉकडाउन के तीसरे चरण में सरकार ने शराब की दुकानों को खोलने की छूट दी जरूर, लेकिन शायद इसके लिए ठीक से होमवर्क करना भूल गई। हालांकि, राजधानी में अधिकांश दुकानों पर शारीरिक दूरी का पालन होता दिखा, लेकिन जिस तरह हजारों लोग शराब खरीदने के लिए सड़कों पर उतर आए, उससे कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ने की आशंका भी गहराती नजर आई।

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सोमवार को दून की सड़कों पर हजारों लोगों की ऐसी भीड़ उमड़ पड़ी, जिनका मकसद सिर्फ शराब खरीदना था। सरकार, शासन, प्रशासन व पुलिस इस बात पर खुश है कि दून में शराब के ठेकों के सामने पूरे दिन लगी कतार अनुशासित रही और लोगों को शारीरिक दूरी का पालन कराया गया। कोरोना संक्रमण के लिहाज से बात यहीं खत्म नहीं हो जाती, क्योंकि लॉकडाउन के नियमों का पालन सिर्फ ठेकों के आगे नहीं दिखना चाहिए, बल्कि जो लोग घर से सड़क पर आ रहे हैं और फिर घर वापस जा रहे हैं, इस पूरी आवाजाही में यह पालन जरूरी है। 

सोमवार को जिस तरह से बाजार का बड़ा हिस्सा खुला और दूसरी तरफ शराब की दुकानें भी खोल दी गईं, उससे अब तक ही बंदिश व एहतियात एक पल में ही ढहती दिखी। मान लेते हैं, शराब खरीदते वक्त पुलिस ने पूरी मुस्तैदी के साथ लोगों को निश्चित दूरी पर खड़ा कराया, मगर इसके बाद कौन कितने लोगों के साथ घुलमिल गया, एक कार व दुपहिया में कितने लोग आए-गए इसका कोई हिसाब नहीं है।

लॉकडाउन का भी यही मतलब है कि कम से कम लोगों को घर से बाहर आना पड़े। जब लोग बाहर निकलें भी तो वह जरूरी वस्तुओं की खरीदारी के लिए हो। कोरोना का संक्रमण भी उतना ही कम फैलेगा, जितना लोग घर मे ही रहें। यह संभव भी हो रहा था, मगर कोरोना की एहतियात पर राजश्व हित भारी पड़ गया।

प्रतिक्रिया

  • लीलाधर जगूड़ी (साहित्यकार) का कहना है कि यह संकट की घड़ी है। अब तक हमने कोरोना की समस्या को अन्य देशों से बेहतर संभाला है, लेकिन अभी संकट बरकरार है। ऐसे में हमें लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। बाजार खुलने का ये मतलब नहीं कि हम सारे एहतियाती कदम भूल जाएं। अब भी हमें सावधानी बरतने की जरूरत है।
  • पद्मश्री प्रीतम भरतवाण (जागर सम्राट) का कहना है कि जिस तरह से लॉकडाउन के बाद भी कोरोना का संक्रमण पांव पसार रहा था, ऐसे में सरकार को चाहिए था कि शराब जैसी दुकानें न खुले। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और पहले ही दिन बाजार से लेकर शराब की दुकानों के बाहर भीड़ लगी रही। ऐसे में हम कहां शारीरिक दूरी का पालन कर रहे हैं। इससे कोरोना का संक्रमण तो और ज्यादा बढ़ेगा। इस पर सरकार को गंभीर होना चाहिए। देवभूमि में शराब वैसे भी नहीं होनी चाहिए और इस समय तो बिल्कुल भी नहीं।
  • डॉ. पीएस नेगी (वरिष्ठ वैज्ञानिक, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान) का कहना है कि कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए भीड़ को कम करना जरूरी है। जिस भी कारण भीड़ बढ़ती है तो उससे खतरा और बढ़ जाता है। सरकार को उन प्रयासों को हतोत्साहित करना चाहिए, जिनसे भीड़ बढऩे की आशंका हो।
  • डॉ. डीपी जुयाल ( पूर्व निदेशक, आइआरडीई, डीआरडीओ) का कहना है कि समाज की सुरक्षा का जहां भी सवाल हो, वहां राजस्व कोई मायने नहीं रखता। जिस तरह से शराब खरीदने वालों की भीड़ उमड़ रही है, उसे देखते हुए कोरोना वायरस का खतरा और बढ़ता दिख रहा है।
  • गंभीर सिंह नेगी ले. जनरल  (सेवानिवृत्त) का कहना है कि लॉकडाउन-3 के पहले दिन न अनुशासन दिखा और न व्यवहारिकता। लगा कि हम जहां से चले थे यू-टर्न मारकर वहीं वापस चल निकले हैं। अभी भी वक्त है कि नियोजित ढंग से आगे बढ़ा जाए।
  • केजी बहल ब्रिगेडियर, (सेवानिवृत्त) का कहना है कि छूट देनी ही है तो सेक्टरवार या मोहल्लेवार व्यवस्था की जानी चाहिए। जिससे बाजार में अधिक भीड़ न हो। शराब की दुकानों पर भी जिस तरह की हायतौबा मची, इस फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
  • डॉ. कुसुम नैथानी (सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य) का कहना है कि जहां इतने दिन सभी व्यापार बंद रहे दो हफ्ते और शराब की दुकानें बंद रखी जा सकती थी। कोरोना वायरस से फैली महामारी ने इंसान को घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसे में सरकार को समझना होगा कि रेवेन्यू से बढ़कर इंसान की जान है।
  • डॉ ओपी कुलश्रेष्ठ (सेवानिवृत्त प्राचार्य डीबीएस कॉलेज)  का कहना है कि केंद्र सरकार ने खुद ही लॉकडाउन -तीन को 17 मई तक बढ़ाया था और बीच में ही सोमवार से शराब की दुकानों को खोलने की अनुमति दे दी गई। जो अनुचित है। दून समेत पूरे देश में शराब के ठेकों के बाहर जिस प्रकार शरीरिक दूरी के नियमों की अनदेखी की गई वह डराने वाली तस्वीरें हैं। आखिर जान की कीमत पर शराब बेचने का इरादा हमें कोरोना भयावता की लेकर जाने का काम कर रहा है। जिस पर दोबारा विचार करने की जरूरत है।
  • जेडी बिष्ट ( सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक विधि) का कहना है कि कोरोना महामारी अभी टली नहीं है। सरकार को इस बात का ख्याल रख कर निर्णय लेना चाहिए था। या तो दुकानें बंद ही न की जातीं या फिर ऐसी व्यवस्था बनाई जाती की लॉकडाउन के नियमों की धज्जियां न उड़ने पाएं।
  • जीपी श्रीवास्तव (पूर्व चीफ कमर्शियल सुपरवाइजर, रेलवे) का कहना है कि यह सरकार की बड़ी चूक है। इस तरह की भीड़ से कोरोना का संक्रमण फैलेगा। अगर राजस्व के लिए यह किया गया है तो इसका उचित तरीका निकालना चाहिए था। जब देशभर में कूड़ा उठाने की गाड़ी डोर टू डोर घूम सकती है तो यह भी संभव था। इस तरह भीड़ को एकत्र कर सरकार ने कहीं न कहीं अभी तक के लॉकडाउन पर पानी फेर दिया।
  • बीएमएस भंडारी (रिटायर्ड सूबेदार) का कहना है कि शराब की दुकानें खोलने में इतनी जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए थी। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए शारीरिक दूरी जरूरी है, जबकि शराब के लिए लाइनों पर लगे सैकड़ों लोग एक दूसरे के नजदीक थे, ऐसे में कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए था।
  • कमला पंत, अध्यक्ष (उत्तराखंड महिला मंच) का कहना है कि परिवहन, पर्यटन उद्योग समेत कई अन्य संस्थान जो बड़े पैमाने पर सरकारी खजाने को भरते हैं पूर्ण तरीके से नहीं खुले हैं। लेकिन सरकार ने शराब के ठेके खोलकर दोबारा यह साबित कर दिया कि उन्हें लोगों की जान से ज्यादा अपने चुनावी फंड और करीबियों को खुश रखने की चिंता है।
  • प्रदीप कुकरेती (राज्य आंदोलनकारी) का कहना है कि अभी और सावधानी बरतने का समय है। ऐसे में हमें यह जरूर सोचना चाहिए कि क्या अब तक का लॉकडाउन कोरोना को हराने के लिए काफी था। अब भी संक्रमण बढ़ रहा है। खतरा बरकरार है। ऐसे में अनावश्यक छूट देने समझ से परे है। शराब की दुकानों की भीड़ बात रही है कि हम गंभीर नहीं हो पाए हैं।
  • साधना शर्मा (अध्यक्ष, उमा संगठन) का कहना है कि जहां लोग राशन और रोजमर्रा की अन्य चीजों के मोहताज हैं, वहां शराब की दुकानें खोलना कोई समझदारी का काम नहीं। इससे शहर में लॉकडाउन और शारीरिक दूरी की धज्जियां उड़ती साफ दिखी हैं। सरकार को अपना फैसला वापस लेते हुए शराब की दुकानें बंद कर देनी चाहिए।
  • अनिल शर्मा (सचिव बार एसोसिएशन) का कहना है कि शराब की दुकानों को अभी कुछ दिन और बंद रखा जा सकता था। राजस्व आवश्यक है, लेकिन कोरोना संक्रमण को कम करना मूल उद्देश्य होना चाहिए था। यह थोड़ा जल्दबाजी में लिया फैसला कहा जा सकता है। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।
  • सौरभ कुमार (अधिवक्ता) का कहना है कि कोरोना के आये दिन मामले आ रहे हैं। ऐसे में शराब की दुकानों को अचानक खोल देने से जो हालात बने हैं उससे तो खतरा और बढ़ जाएगा। इसे लेकर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए।
  • राधेश्याम जोशी (सीनियर सिटीजन) का कहना है कि सरकार ने रियायत देने में जल्दबाजी की है। बाजारों में जो अलाम देखने को मिला, खासकर शराब की दुकानों का उससे संदेह उत्पन्न होता है कि क्या हम कोरोना से जंग जीत पाएंगे। अचानक इतनी भीड़ उमड़ने का मतलब है कि सभी की जान खतरे में डालना। सरकार को इस पर तत्काल पुन: विचार करना चाहिए।
  • प्रो. अतुल गुप्ता (विभागाध्यक्ष, रसायन विज्ञान, एसजीआरआर पीजी कॉलेज) का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान आज देशभर में शराब की दुकानों के बाहर की भीड़ को देखकर 44 दिनों से लॉकडाउन का पालन करने वाले करोड़ों भारतीय मेरी तरह चिंतित होंगे। देश के लगभग सभी शहरों से डरने वाली तस्वीरें सामने आ रही है। अभी समय है हमें गंभीरता से सोचना होगा।

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  • प्रथम पंत (निवासी डोभालवाला) का कहना है कि जिस तरह की व्यवस्था बनाई गई है यह किसी भी रूप में व्यवहारिक नहीं कही जा सकती। साथ ही इसमें प्लानिंग की कमी दिखती है। बाजार सेक्टरवार खोला जाए और इसका सख्ती से पालन भी कराया जाए। शराब की दुकानें खोलने के फैसने पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
  • अरविंद गुप्ता (द दून स्पोट्र्स क्लब) का कहना है कि कोरोना वायरस के चलते पूरा देश लॉकडाउन था। लेकिन आज जिस तरह से बाजार में शराब की दुकानों के बाहर स्थिति देखने को मिली। यह देश के लिए अच्छा संकेत नहीं हैं। जब लोग इतने दिन बिना शराब के रह लिए तो अगले दस 15 दिन भी रह सकते थे। सरकार के इस निर्णय से बाजार में सबसे खराब स्थिति देखने को मिली।

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