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अलग अंदाज में मनाई जाती है मंगसीर की दीपावली, जानिए

उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में मंगसीर की दीपावली धूमधाम से मनार्इ जाती है। इसे मनाने के पीछे अलग अलग कहानियां है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 27 Nov 2018 05:58 PM (IST)Updated: Tue, 27 Nov 2018 05:58 PM (IST)
अलग अंदाज में मनाई जाती है मंगसीर की दीपावली, जानिए
अलग अंदाज में मनाई जाती है मंगसीर की दीपावली, जानिए

देहरादून, जेएनएन। टिहरी जिले के बूढ़ाकेदार क्षेत्र और उत्तरकाशी की असी गंगा घाटी के साथ ही गाजणा घाटी में मंगसीर की दीपावली की तैयारियां शुरू हो गर्इ है। यहां इस दीपावली को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। उत्तरकाशी में गढ़वाली सेना की तिब्बत पर विजय के उपलक्ष्य में इस दीपावली को मनाया जाता है।  

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कार्तिक की दीपावली के बाद टिहरी के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगसीर दीपावली बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस बार यहां पर एक हजार भैलों का आयोजन किया जाएगा। पारंपरिक दीपावली के साथ ही ऐतिहासिक मेला भी आयोजित किया जाता है। इस मेले के लिए ग्रामीणों ने गांव की ओर रुख करना शुरू कर दिया है। इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण ग्रामीणों के देवता के साथ खेतों में दौड़ लगाना है। जिसके लिए बड़ी संख्या में बाहर से भी लोग यहां पहुंचते हैं और इस दौड़ में शामिल होते हैं। 

टिहरी जिले के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगशीर की दीपावली को धूमधाम से साथ मनाया जाता है। गांव से बाहर रहने वाले लोग कार्तिक की दीपावली के बजाय मंगशीर की दीपावली के लिए गांव पहुंचते हैं। ग्रामीण दीपावली मनाने के साथ ही क्षेत्र के ईष्ट देवता गुरु कैलापीर के आशीर्वाद लेने भी गांव पहुंचते हैं। इस दीपावली को मनाने की पीछे यहां का ईष्ट देवता गुरु कैलापीर हैं और उसी के नाम से यहां पर मेला भी आयोजित होता है। 

बताया जाता है आज से करीब तीन सौ साल पहले हिमाचल से क्षेत्र का ईष्ट देवता गुरु कैलापीर गढ़वाल भ्रमण पर आए थे और विभिन्न जगहों पर भ्रमण करने के बाद उन्हें बूढ़ाकेदार क्षेत्र का जंदवाड़ा नाम की जगह भा गई और देवता ने यहीं पर निवास करने का निर्णय लिया। यह मंगसीर का महीना था। देवता के यहां पर रहने की बात से ग्रामीण काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने छिलकों को जलाकर देवता का स्वागत किया और तभी से मंगसीर के महीने बूढ़ाकेदार क्षेत्र में यह दीपावली भव्य रूप से मनाई जाती है। दो दिन तक दीपावली मनाने के बाद यहां पर तीन दिन का भव्य मेला भी आयोजित होता है। 

खेतों में दौड़ रहती है आकर्षण का केंद्र 

इस मेले के पहले दिन गुरु कैलापीर देवता के साथ ग्रामीणों की खेतों में दौड़ आकर्षण का केंद्र रहती है। पुंडारा तोक के खेतों में देवता दौड़ लगाता है। देवता का खेत मानते हुए इन खेतों में कोई मकान भी नहीं बनाता है। बताया जाता है कि क्षेत्र की समृद्धि व अच्छी फसल की पैदावार को यह दौड़ आयोजित की जाती है। 

आश्चर्य की बात यह है कि इन दिनों खेतों में गेहूं की फसल अभी काफी छोटी है और पूरे क्षेत्र के लोगों द्वारा खेतों में दौड़ लगाई जाती है, जिस कारण फसल पूरी तरह कुचल जाती है। इसके बावजूद यहां पर गेहूं की अच्छी पैदावार होती है जो देवता की ही कृपा मानी जाती है। खेतों में देवता के साथ ग्रामीण चार चक्कर दौड़ लगाते हैं। इसके लिए अप्रवासी ग्रामीण भी गांव पहुंच गए हैं। 

इस बार पांच और छह को मनाई जागी दीपावली 

इस बार क्षेत्र में पांच और छह दिसंबर को दीपावली मनाई जाएगी। जिसके बाद सात दिसंबर से तीन दिन का मेला आयोजित होगा। मेले में जहां सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे, वहीं विभिन्न विभागों के स्टॉल भी लगाए जाएंगे। इसके लिए प्रचार-प्रसार का कार्य भी काफी पहले से शुरू हो गया है। मेला समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह नेगी, हिम्मत रौतेला, चंद्रेश, बावन सिंह, सुखदेब बहुगुणा आदि का कहना है कि इस बार दीपावली व मेले के भव्य ढंग से मनाया जाएगा। इसके लिए गांव में अभी से रौनक दिखने लगी है। 

मेले के पहले दिन मंदिर से बाहर निकलेंगे देवता 

सात नवंबर बलिराज यानी मेले के पहले दिन गुरु कैलापीर देवता मंदिर से बाहर निकलकर लोगों को आशीर्वाद देंगे। हर साल मेले के पहले दिन स्नान आदि के बाद देवता बाहर निकाले जाते हैं और फिर खेतों में दौड़ लगाने के लिए ले जाए जाते हैं। देवता के बाहर निकलने और मंदिर में प्रवेश का निश्चित समय होता है। दो बजे देवता मंदिर से बाहर निकलते हैं और उसके बाद सूर्य अस्त होने से पहले मंदिर में प्रवेश करते हैं। सूर्य अस्त के बाद देवता मंदिर में प्रवेश नहीं करते। 

तिब्बत विजय उत्सव की तैयारियां तेज 

उत्तरकाशी की गंगा घाटी और गाजणा घाटी में मंगसीर की बग्वाल (दीपावली) मनाने की तैयारियां जोरशोर से चल रही हैं। इस बग्वाल के उत्सव का अपना अलग महत्व है। इतिहास के जानकार बताते हैं कि मंगसीर की बग्वाल गढ़वाली सेना की तिब्बत पर विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। इस बार यह उत्सव 6 और 7 दिसंबर को मनाया जाएगा। उत्तरकाशी में इसके लिए खास तैयारियां भी की गई हैं। इस बार पुरानी वस्तुओं की प्रदर्शनी बग्वाल उत्सव में खास होगी। 

गंगोत्री तीर्थ क्षेत्र ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन शोध ग्रंथ के लेखक उमा रमण सेमवाल बताते हैं कि सन 1627-28 के बीच गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल के दौरान जब तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं के अंदर आकर लूटपाट करते थे, तो राजा ने माधो सिंह भंडारी व लोदी रिखोला के नेतृत्व में चमोली के पैनखंडा और उत्तरकाशी के टकनौर क्षेत्र से सेना भेजी थी। सेना विजय करते हुए दावाघाट (तिब्बत) तक पहुंच गई थी। कार्तिक मास की दीपावली के लिए माधो सिंह भंडारी घर नहीं पहुंच पाए थे। तब उन्होंने घर में संदेश पहुंचाया था कि जब वह जीतकर लौटेंगे, तब ही दीपावली मनाई जाएगी। युद्ध के मध्य में ही एक माह पश्चात माधो सिंह अपने गांव मलेथा पहुंचे। तब उत्सव पूर्वक दीपावली मनाई गई। तब से अब तक मंगसीर के माह इस बग्वाल को मनाने की परंपरा गढ़वाल में प्रचलित है। 

इसी परंपरा का खास नजारा उत्तरकाशी के गंगा घाटी में भी दिखता है। इस बार मंगशीर की बग्वाल सात दिसंबर को मनाई जाएगी। लेकिन इस बग्वाल के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए कुछ स्थानीय लोगों और अनघा माउंटेन एसोसिएशन ने 2007 से उत्तरकाशी शहर में सामूहिक रूप से बग्वाल मनाने की शुरुआत की थी, जो लगातार बरकरार है। इस बग्वाल को दो दिवसीय उत्सव के रूप में मनाया जाएगा। 

अनघा माउंटेन एसोसिएशन के सचिव राघवेंद्र उनियाल ने बताया कि इस बार बग्वाल कार्यक्रम में उत्तरकाशी में पुरानी वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई जाएगी। इसके लिए सीमांत गांव नेलांग और जादूंग गांव के ग्रामीणों की पुरानी वस्तुओं को जुटाया गया है। इसके साथ ही मंगसीर की बग्वाल तथा गढ़वाल के वीर भड़ पर आधारित गढ़वाली बोली में भाषण, निबंध प्रतियोगिता आयोजित की गई है। सात दिसंबर को देवयात्रा निकाली जाएगी तथा भैलो नृत्य के साथ संयुक्त रूप में बग्वाल मनाई जाएगी। 

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