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उत्‍तराखंड में एक गांव ऐसा, जहां जंगल की रक्षा के लिए समर्पित है एक परिवार

उत्‍तराखंड के टिहरी जिले में पौखाल गांव के पास वन विभाग की भूमि पर वर्ष 2000 में मगन सिंह गुसाईं ने जंगल लगाने के लिए जो मुहिम शुरू की थी उसे अब उनका परिवार आगे बढ़ा रहा है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 10:33 AM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 01:56 PM (IST)
उत्‍तराखंड में एक गांव ऐसा, जहां जंगल की रक्षा के लिए समर्पित है एक परिवार
टिहरी में पौखाल गांव के पास वन भूमि पर पौध लगाने की शुरूआत करते मगन सिंह व उनका परिवार।

नई टिहरी, मधुसूदन बहुगुणा। टिहरी जिले में पौखाल गांव के पास वन विभाग की भूमि पर वर्ष 2000 में मगन सिंह गुसाईं ने जंगल लगाने को जो मुहिम शुरू की थी, उसे अब उनका परिवार आगे बढ़ा रहा है। सुरड़ीधार तोक में 35 नाली (75600 वर्ग फीट) भूमि पर मगन सिंह के रोपे गए पौधे आज इस क्षेत्र को जंगल का रूप दे चुके हैं। वर्ष 2017 में मगन सिंह के निधन के बाद उनके परिवार ने जंगल के संरक्षण की जिम्मेदारी ली। परिवार का हर सदस्य न केवल जंगल की देखभाल करता है, बल्कि अपने जन्मदिन पर यहां अनिवार्य रूप से पौधे भी लगाता है।

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मगन सिंह वर्ष 1997 में राजकीय इंटर कॉलेज पौखाल से दफ्तरी के पद से सेवानिवृत्त हुए। लेकिन, उन्हें घर बैठना गवारा न हुआ। पेड़-पौधों के प्रति बचपन से ही लगाव था, इसलिए सेवानिवृत्ति के बाद सबसे पहले पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा से मुलाकात की। उन्होंने मगन सिंह को प्रकृति को संवारने के लिए प्रेरित किया। बस! फिर तो मगन सिंह ने शेष जीवन पर्यावरण संरक्षण को ही समर्पित कर दिया। वर्ष 2000 में उन्होंने वन विभाग की भूमि पर सुरड़ीधार तोक में पौधे रोपने की शुरूआत की। स्वयं के संसाधनों पर उन्होंने यहां सिंचाई के लिए एक भूमिगत टैंक का निर्माण भी किया। इसी पानी से वो पौधों की सिंचाई करते थे।

वन विभाग के सहयोग से उन्होंने जंगल को कभी आग से नुकसान नहीं पहुंचने दिया। चार वर्ष पूर्व जब मगन सिंह का निधन हुआ तो उनके परिवार ने इस जंगल के संरक्षण का बीड़ा उठाया। परिवार के सदस्य बच्चों की तरह पेड़-पौधों की देखभाल करते हैं। कोई भी पर्व-त्योहार हो, वे यहां पौधे रोपना नहीं भूलते। इसके लिए कई बार पौध उन्हें वन विभाग ही उपलब्ध कराता है।

मिश्रित जंगल हो रहा तैयार

सुरड़ीधार तोक में 20 साल पहले जो बांज, देवदार, पंइया, काफल, बेलपत्र आदि के पौधे रोपे गए थे, धीरे-धीरे वो मिश्रित जंगल का रूप ले रहे हैं। अब तो मगन सिंह के परिवार के अलावा वन विभाग के कार्मिक भी इनकी रेख-देख करते हैं। पेड़ों को आग से बचाने के लिए हर साल पिरुल (चीड़ की पत्ती) को हटाने के लिए अभियान चलाया जाता है। ग्रामीणों के मवेशी या जंगली जानवर पेड़-पौधों को नुकसान न पहुंचाएं, इसके लिए जंगल के चारों ओर वन विभाग के सहयोग से कंटीले तारों की बाड़ भी लगाई गई है।

घर के आस-पास भी लगाए पौधे

मगन सिंह के पुत्र शीशपाल सिंह गुसाईं ने घर के आस-पास भी बांज के पौधे लगाए हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने वर्ष 2007 में की थी। बकौल शीशपाल, 'पिताजी कहा करते थे कि पेड़ धरती के वस्त्र हैं। यह हमारी हर जरूरत पूरी करते हैं, इसलिए इनका संरक्षण जरूरी है। हमारा परिवार अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार पिताजी के सपने को पूरा करने में जुटा है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जमीनी स्तर पर कार्य होना चाहिए। तभी पर्यावरण संरक्षण के प्रयास फलीभूत हो पाएंगे।

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कोको रोसे (प्रभागीय वनाधिकारी, टिहरी वन प्रभाग) का कहना है कि मगन सिंह गुसाईं के परिवार ने समाज के सामने प्रकृति की सेवा का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। वन विभाग इस प्रेरणादायी कार्य में गुसाईं जी के परिवार का पूरा सहयोग कर रहा है और आगे भी करता रहेगा।

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