वन विभाग को अब समझ आ गया कि जंगलों में सिर्फ गर्मियों ही नहीं, सर्दियों में भी लग सकती आग
जब जागो तभी सवेरा। उत्तराखंड में वन महकमे पर यह कहावत सटीक बैठती है। हालांकि उसे जागने में वर्षों बीत गए लेकिन अब उसे समझ आ गया है कि जंगलों में सिर्फ गर्मियों ही नहीं बल्कि सर्दियों में भी आग लग सकती है।
केदार दत्त, देहरादून। 'जब जागो, तभी सवेरा'। उत्तराखंड में वन महकमे पर यह कहावत सटीक बैठती है। हालांकि, उसे जागने में वर्षों बीत गए, लेकिन अब उसे समझ आ गया है कि जंगलों में सिर्फ गर्मियों ही नहीं, बल्कि सर्दियों में भी आग लग सकती है। असल में, इस साल सर्दी की दस्तक से ही जंगल सुलग रहे हैं, जिसमें अब तक करीब 280 हेक्टेयर वन क्षेत्र झुलस चुका है। बड़ी संख्या में पेड़ों को क्षति पहुंची है तो करीब पांच हेक्टेयर प्लांटेशन भी खाक हुआ है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, पूर्व में भी सर्दियों में जंगल जले हैं। ये बात अलग है कि वन महकमे का फोकस सिर्फ फायर सीजन में ही वनों को आग से बचाने पर होता है। अब सालभर ही वनों को आग से बचाने के लिए अलर्ट मोड पर रहने का निर्णय लिया गया है। लिहाजा, महकमा कितना सक्रिय रहता है, यह देखने वाली बात होगी।
बढ़ेगा बाघों का कुनबा
आखिरकार, चार साल से चल रही मैराथन कसरत मंजिल पर पहुंचने वाली है। बाघों के लिहाज से वीरान से पड़े राजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र में भी अब इनकी दहाड़ सुनाई देगी। कार्बेट टाइगर रिजर्व से यहां पांच बाघों को चरणबद्ध ढंग से शिफ्ट करने की कवायद अंतिम दौर में है। कोशिश सफल रही तो अगले दो-चार दिन में पहला बाघ मोतीचूर-धौलखंड में शिफ्ट कर दिया जाएगा। बाघों की शिफ्टिंग होने से इस क्षेत्र में लंबे समय से रह रही दो बाघिनों को न सिर्फ साथी मिलेंगे, बल्कि यहां बाघों का कुनबा भी बढ़ेगा। बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए यह अपनी तरह का पहला प्रयास है और इसे लेकर महकमा उत्साहित भी है। हालांकि, तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। बाघों के शिफ्ट होने के बाद इनकी सुरक्षा समेत अन्य पहलुओं पर भी विशेष ध्यान केंद्रित करना होगा। उम्मीद है कि महकमा इस मोर्चे पर भी सफल होगा।
फिर केंद्र पर निगाहें
जंगल से गुजरने वाली एक सड़क इन दिनों फिर सुर्खियों में है। इसे लेकर सरकार फिर से केंद्र की ओर टकटकी लगाए बैठी है। सही समझे, बात हो रही है लालढांग-चिलरखाल वन मार्ग की, जो राजाजी टाइगर रिजर्व के बफर जोन से सटा है। इस सड़क का निर्माण सरकार की प्राथमिकता में है और पूर्व में इसके लिए जोरदार कसरत शुरू हुई थी। जंगल के बीच से सड़क के निर्माण का यह मसला तब खूब उछला था। फिर सर्वोच्च अदालत ने इसके निर्माण पर रोक लगा दी थी। साथ ही राज्य को इसके लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के मानकों का पालन करते हुए नए सिरे से अनुमति लेने की छूट दी थी। कवायद हुई, लेकिन अब पुलों की ऊंचाई को लेकर मसला अटका है। हालांकि, सरकार ने पुलों की ऊंचाई पांच मीटर तक रखने का आग्रह केंद्र से किया है। ऐसे में नजरें केंद्र सरकार पर टिक गई हैं।
हाथियों के नए गलियारे
उत्तराखंड में यमुना से लेकर शारदा नदी तक राजाजी-कार्बेट टाइगर रिजर्व समेत 14 वन प्रभागों से सटे क्षेत्रों में हाथियों की धमाचौकड़ी आमजन के लिए मुसीबत का सबब बनी है। इसे लेकर पड़ताल हुई तो बात सामने आई कि जंगलों में इनकी आवाजाही के चिह्नित 11 परंपरागत गलियारे (कॉरीडोर) बाधित हैं। इन्हें निर्बाध करने के साथ ही उन रास्तों को भी गलियारों के तौर पर चिह्नित करने का निश्चय किया गया था, जहां से हाथी अक्सर गुजर रहे हैं। दो साल का वक्फा बीतने को है, लेकिन न तो परंपरागत गलियारे निर्बाध हो पाए और न नए गलियारों का चिह्निकरण ही हो पाया है। परिणामस्वरूप हाथियों के आतंक की समस्या निरंतर गहराती जा रही है। यदि विभाग नए गलियारे चिह्नित कर वहां सुरक्षात्मक उपाय करना शुरू कर दे तो समस्या से काफी हद तक निजात मिल सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि विभाग इस दिशा में जल्द पहल करेगा।
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