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हाई कोर्ट की सख्ती के बाद अब देहरादून में भूकंपरोधी भवन अनिवार्य

देहरादून में भवन निर्माण के सभी नक्शों में स्ट्रक्चरल इंजीनियर का प्रमाण पत्र अनिवार्य कर दिया गया है। यानी अब दून में भूकंपरोधी भवन ही बनाए जा सकेंगे।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 13 Dec 2018 01:35 PM (IST)Updated: Thu, 13 Dec 2018 04:21 PM (IST)
हाई कोर्ट की सख्ती के बाद अब देहरादून में भूकंपरोधी भवन अनिवार्य
हाई कोर्ट की सख्ती के बाद अब देहरादून में भूकंपरोधी भवन अनिवार्य

देहरादून, सुमन सेमवाल। हाई कोर्ट की सख्ती और भूकंप के अतिसंवेदनशील जोन-चार में होने के चलते दून में भवन निर्माण के सभी नक्शों में स्ट्रक्चरल इंजीनियर का प्रमाण पत्र अनिवार्य कर दिया गया है। यानी अब दून में भूकंपरोधी भवन ही बनाए जा सकेंगे। दूसरी तरफ स्ट्रक्चरल इंजीनियरों के लाइसेंस का मामला पिछले साढ़े तीन माह से शासन में लटका है। ऐसे में यदि किसी भवन के साथ अनहोनी होती है तो उसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ सकता है।

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दून में अब तक नौ मीटर से अधिक ऊंचाई के भवनों में ही नक्शा पास कराने में आर्किटेक्ट के अलावा स्ट्रक्चरल इंजीनियर के प्रमाण पत्र की अनिवार्यता की गई थी। जबकि अब मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) ने सभी तरह के भवनों के निर्माण को नक्शा पास कराने में स्ट्रक्चरल इंजीनियर के प्रमाण पत्र को अनिवार्य कर दिया है। भूकंपरोधी भवनों को बढ़ावा देने के लिहाज से यह उचित कदम है, लेकिन जिन स्ट्रक्चरल इंजीनियरों को यह काम करना है, उनके लाइसेंस शासन में अटके पड़े हैं। ज्यादातर प्रकरण लाइसेंस के नवीनीकरण से संबंधित हैं।

आवास विभाग में वैसे ही महज 20 के करीब ही स्ट्रक्चरल इंजीनियर सूचीबद्ध हैं। जबकि अब एमडीडीए की नई शर्त के बाद बड़ी संख्या में स्ट्रक्चरल इंजीनियरों की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में शासन का रवैया इस दिशा में बड़ा गतिरोध बन सकता है। गंभीर यह कि जिन स्ट्रक्चरल इंजीनियरों के लाइसेंस की अवधि साढ़े तीन माह पहले समाप्त हो चुकी है, वह लाइसेंस न होने के बाद भी प्रमाण पत्र जारी कर रहे हैं। यदि इस अवधि में किसी भवन के साथ कोई अनहोनी हो जाती है तो स्ट्रक्चरल इंजीनियर के साथ ही भवन स्वामी को भी अनावश्यक कानूनी पचड़े में फंसना पड़ सकता है। ग्रुप हाउसिंग के मामले में यह स्थिति और विकट हो सकती है।

शासन की सुस्ती पर आर्किटेक्ट एंड इंजीनियर एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष डीएस राणा का कहना है कि भवन निर्माण जैसे अहम मसले पर शासन का यह रवैया लोकहित में नहीं है। इस समय शासन को नए स्ट्रक्चरल इंजीनियरों को सूचीबद्ध करने में दिलचस्पी दिखानी चाहिए थी, जबकि जो इंजीनियर पहले से काम कर रहे हैं, उनके तक लाइसेंसों का नवीनीकरण नहीं किया जा रहा। वहीं, मुख्य नगर एवं ग्राम नियोजक एसके पंत का कहना है कि उनके माध्यम से सभी आवेदन तत्काल शासन को भेज दिए गए थे। विलंब होने पर एक दफा शासन को रिमाइंडर भी भेजा गया था।       

भूकंपरोधी नियम पर हो रही थी खानापूर्ति

नक्शा पास कराने वाले फार्म में यह बिंदु भी रहता था कि भवन का निर्माण भूकंपरोधी तकनीक से किया जाएगा। लोग औपचारिकता के लिए इस पर सहमति तो व्यक्त करते थे, मगर बड़ी संख्या में निर्माण में इस तकनीक का अभाव रहता था। हालांकि अब नक्शा पास कराते समय स्ट्रक्चरल इंजीनियर के प्रमाण पत्र की अनिवार्यता के बाद भूकंपरोधी भवन निर्माण को बल मिल सकेगा।

डिजाइन में खामी पर नपेंगे स्ट्रक्चरल इंजीनियर

स्ट्रक्चरल इंजीनियर से प्रमाण किए जाने के बाद भी यदि भवन की डिजाइन में खामी पाई जाती है, तो इसकी जिम्मेदारी संबंधित इंजीनियर की ही होगी। 

डॉ. आशीष श्रीवास्तव (उपाध्यक्ष, एमडीडीए) का कहना है कि अब जो भवन एक मंजिला भी है, उसे भी स्ट्रक्चरल इंजीनियर की स्वीकृति दिखानी होगी। दून जैसे संवेदनशील क्षेत्र में इस कदम के बाद भवनों की बेहतर क्षमता को सुनिश्चित किया जा सकेगा।

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