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हादसे रोकने के लिए 38 लाख खर्च करने को नहीं हैं तैयार Dehradun News

खूनी फ्लाईओवर तीन साल में 15 जिंदगियां लील चुका है। पर बावजूद इसके जिम्मेदार 38 लाख रुपये भी खर्च करने को राजी नहीं दिख रहे।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 24 Dec 2019 03:31 PM (IST)Updated: Tue, 24 Dec 2019 03:31 PM (IST)
हादसे रोकने के लिए 38 लाख खर्च करने को नहीं हैं तैयार Dehradun News
हादसे रोकने के लिए 38 लाख खर्च करने को नहीं हैं तैयार Dehradun News

देहरादून, जेएनएन। बल्लीवाला का खूनी फ्लाईओवर तीन साल में 15 जिंदगियां लील चुका है। इस संकरे पुल के बगल में एक और डबल लेन फ्लाईओवर बनाने के लिए 110 करोड़ रुपये का इंतजाम करने में अड़चन की बात एक हद तक मानी जा सकती है। पर यहां तो जिम्मेदार 38 लाख रुपये भी खर्च करने को राजी नहीं दिख रहे। फ्लाईओवर पर एएनपीआर और एसवीडीएस कैमरे लगाने में सिर्फ इतना ही खर्च आना है। इससे वाहनों की मनमानी पर अंकुश लगता और काफी हद तक हादसे भी रुकते, लेकिन 10 माह से यह प्रस्ताव फाइलों में ही धूल फांक रहा है। 

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अगस्त 2016 में बनकर तैयार हुआ बल्लीवाला फ्लाईओवर अब तक 15 लोगों की मौत का कारण बन चुका है। मई 2018 में हाईकोर्ट के आदेश पर लोनिवि ने यहां एक और डबल लेन फ्लाईओवर निर्माण की संभावना टटोलते हुए शासन को रिपोर्ट दी थी, जिसे नकार दिया गया। इसके बाद जिला और पुलिस प्रशासन ने हादसे रोकने के विकल्पों पर गौर करना शुरू किया। बीती मई में सड़क सुरक्षा समिति की बैठक में तय हुआ कि फ्लाईओवर पर तेज गति और यातायात नियमों की अनदेखी कर चलने वाले वाहनों की निगरानी करके इसे काफी हद तक सुरक्षित बनाया जा सकता है। 

समिति ने पुलिस से इस पर आने वाले खर्च का आकलन करने को कहा। कुछ दिन बाद एसपी ट्रैफिक प्रकाश चंद ने जिलाधिकारी को रिपोर्ट भेजकर बताया कि फ्लाईओवर पर एएनपीआर और एसवीडीएस लगाने में करीब 38 लाख रुपये खर्च होंगे। इसके बाद यह प्रस्ताव फाइलों में ही गुम हो गया। देखना होगा कि फ्लाईओवर को सुरक्षित बनाने के लिए शासन-प्रशासन अभी कितने और हादसों का इंतजार कर रहा है। 

एएनपीआर कैमरा: ऑटोमेटेड नंबर प्लेट रिकग्निशन कैमरे तेज रफ्तार से दौड़ने वाले वाहनों की नंबर प्लेट पढ़ने में सक्षम होते हैं। इनका प्रयोग सड़कों पर निर्धारित गतिसीमा का उल्लंघन करने वाले वाहनों पर शिकंजा कसने को किया जाता है। मौजूदा समय में इस तरह के चार कैमरे चकराता रोड पर एफआरआइ के सामने, राजपुर रोड पर एनआइवीपीईडी के पास, नंदा की चौकी और दिल्ली हाईवे पर ग्राफिक एरा विवि के पास लगे हुए हैं।

 

एसवीडीएस: स्पीड वाइलेशन डिटेक्शन सिस्टम। यह सिस्टम भी खतरनाक गति से चलने वाले वाहनों की पहचान करने में सक्षम होता है। यह सीट बेल्ट न लगे होने, मोबाइल फोन पर बात करने, ट्रिपल राइडिंग और हेलमेट न होने की दशा में भी गाड़ियों की पहचान कर सकता है। इसमें चोरी की गाड़ियों और अपराधियों को भी पहचानने की क्षमता होती है, लेकिन इसके लिए सिस्टम में चोरी की गाड़ी और अपराधी का ब्योरा अपलोड करना होता है। 

तेज रफ्तार हादसे की वजह 

बल्लीवाला फ्लाईओवर पर हादसों की सबसे बड़ी वजह है तेज रफ्तार। दरअसल, फ्लाईओवर पर कमला पैलेस की तरफ तीव्र मोड़ है। तेज रफ्तार में चल रहे बाइक और कार सवारों को मोड़ का पता चलने तक हादसा हो चुका होता है। 

रात में फ्लाईओवर बंद हो 

बल्लीवाला फ्लाईओवर पर हो रहे हादसों को लेकर शासन-प्रशासन भले गंभीर न दिख रहा हो। लेकिन, आम लोगों की ओर से हादसे रोकने को कई तरह के सुझाव दिए जा रहे हैं। यह सुझाव एसपी कार्यालय तक भी पहुंचे हैं। इसमें रात के समय फ्लाईओवर को बंद करने, दोनों छोर पर पिकेट लगाने, वन वे करने के सुझाव शामिल हैं, लेकिन आमजन की ओर से आ रहे कई सुझावों पर व्यवहारिक दृष्टि से अमल करना आसान नहीं है। 

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फ्लाईओवर पर इस तरह किए गए नियम दरकिनार 

-मार्च 2013 में अन्य फ्लाईओवर के साथ बल्लीवाला फ्लाईओवर का भी शिलान्यास किया गया। 

-केंद्र से मई 2014 में निर्माण की एनओसी ली गई, जबकि निर्माण से पहले राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956 के तहत एनओसी लेनी जरूरी थी। 

-फिर एनओसी के विपरीत फोर लेन की जगह दो लेन में निर्माण किया गया। 

-जब भी मानकों के विपरीत काम करने की बात आई तो नोडल एजेंसी लोनिवि और निर्माण कंपनी ईपीआइएल के अधिकारी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालते रहे। 

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एसपी ट्रैफिक प्रकाश चंद्र ने बताया कि बल्लीवाला फ्लाईओवर पर एएनपीआर और एसवीडीएस लगाने पर मई में ही सड़क सुरक्षा समिति की बैठक में चर्चा हो चुकी है। इस पर आने वाले खर्च का आकलन कर भेजा जा चुका है। हादसे रोकने को इसके साथ अन्य विकल्पों पर भी मंथन किया जा रहा है। 

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