उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा इंतजामों का परीक्षण नहीं, महाराष्ट्र हादसे से सीख लेने की जरूरत
महाराष्ट्र के भंडारा जिले के सरकारी अस्पताल में आग लगने से हुई 10 शिशुओं की मौत से सीख लेने की जरूरत है। उत्तराखंड के लिए यह सीख इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अस्पतालों में लंबे समय से अग्नि सुरक्षा को लेकर खास सक्रियता नहीं दिखी है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। महाराष्ट्र के भंडारा जिले के सरकारी अस्पताल में आग लगने से हुई 10 शिशुओं की मौत से सीख लेने की जरूरत है। उत्तराखंड के लिए यह सीख इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अस्पतालों में लंबे समय से अग्नि सुरक्षा को लेकर खास सक्रियता नहीं दिखी है। ऐसे में कब किस अस्पताल में ऐसा हादसा हो जाए, यह कहा नहीं जा सकता।
विभिन्न सरकारी अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा संबंधी उपाय अस्पताल प्रशासन के स्तर पर किए जाते हैं। तमाम अस्पताल ऐसे हैं, जहां अग्नि सुरक्षा उपकरण लगाने के बाद उसी स्थिति में पड़े हैं। यह भी नहीं देखा जाता कि आग लगने पर यह काम करेंगे भी या नहीं। हादसा कभी भी हो सकता है, मगर उस पर काबू तभी पाया जा सकता है, जब हमारी तैयारी पूरी हो। कुछ अस्पतालों में जरूर वार्षिक आधार पर अग्निशमन के यंत्रों का परीक्षण किया जाता है, मगर वहां भी यह काम भी कोरोना काल में नहीं किया जा सका है।
अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा की एकतरफा जिम्मेदारी संबंधित अधिकारियों पर नहीं छोड़ी जा सकती। स्वास्थ्य महानिदेशालय व शासन स्तर पर भी अधिकारियों को सीधे दखल देने की जरूरत है, क्योंकि उच्च स्तर पर निगरानी की जाती रहेगी तो व्यवस्थाएं अपने आप दुरुस्त होने लगेंगी।
रैपिड फायर सेफ्टी ऑडिट हो
सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल ने महाराष्ट्र की घटना को लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को ट्वीट किया है। ट्वीट में उन्होंने मांग की है कि सरकारी अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा को लेकर रैपिड ऑडिट कराया जाए, जिससे यह पता चल सके कि किस अस्पताल में आपात स्थिति से निपटने की क्या व्यवस्थाएं हैं। आग की घटनाओं को बेहद गंभीरता से लेने की जरूरत है। क्योंकि पुख्ता तैयारी के बिना इस तरह की घटनाओं में सुरक्षा कर्मी तक बेबस नजर आते हैं।
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