दून में बसता था प्रसिद्ध कवि एवं गीतकार नीरज का दिल
प्रसिद्ध कवि एवं गीतकार गोपाल दास 'नीरज' का दून से गहरा रिश्ता रहा है। एमकेपी पीजी कॉलेज और डीएवी कॉलेज के छात्रसंघ समारोह में भी उनका आना-जाना रहता था।
देहरादून, [जेएनएन]: प्रसिद्ध कवि एवं गीतकार गोपाल दास 'नीरज' का दून से गहरा रिश्ता रहा है। दून में अक्सर वह साहित्य और कवि सम्मेलनों की रौनक बढ़ाने आते थे। एमकेपी पीजी कॉलेज और डीएवी कॉलेज के छात्रसंघ समारोह में भी उनका आना-जाना रहता था। डीएवी कॉलेज में प्राध्यापक एवं कवि स्व. डॉ. गिरिजा शंकर त्रिवेदी से उनकी काफी घनिष्ठता थी। वह जब भी दून आते, त्रिवेदीजी के घर पर ही रुकते थे। आखिरी बार वे दून नवंबर 2015 में सर्वे ऑफ इंडिया के ऑडिटोरियम में आयोजित एक कवि सम्मेलन में आए थे।
ओएनजीसी में कार्यरत रहे गिरिजा शंकर त्रिवेदी के पुत्र रजनीश त्रिवेदी के नीरज के साथ कई यादगार पल जुड़े हुए हैं। रजनीश बताते हैं, नीरज अक्सर कहते थे, 'न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ, बस सिर्फ इतनी बात है, किसी की आंख खुल गई, किसी को नींद आ गई।' कहते हैं, एक बार नीरज फिल्म 'मेरा नाम जोकर' के लिए लिखे गए अपने गीत 'ऐ भाई जरा देख के चलो' का संस्मरण सुना रहे थे। राजकपूर के कहने पर उन्होंने जोकर के जीवन से प्रेरित यह गाना एक रात में तैयार किया था। वह कहते थे कि जिस फिल्म में उन्होंने गीत लिखे, वह सभी गीत सुपर हिट हुए, लेकिन फिल्में फ्लॉप रहीं। इसलिए उन्होंने फिल्मों के लिए लिखना ही छोड़ दिया। समाज, साहित्य एवं देश के मौजूदा हालात पर वह हमेशा चिंतित रहते थे। एक बार मुझसे बोले, 'देखो देश का हाल हुआ क्या, फंसकर सवालों में, संसद में जूता चलता है, गोली चले बाजारों में।'
खिचड़ी थी पसंदीदा डिश
डॉ. गिरिजा शंकर की 72 वर्षीया पत्नी राज त्रिवेदी ने बताया कि वह बेहद साधारण रहन-सहन वाले थे। खाने में भी सादगी ही पसंद करते थे। समारोह में जब भी आते तो तला-भुना खाना उन्हें पसंद न आता। घर पर आकर कहते 'बहू! मेरे लिए खिचड़ी बनाओ।'
बोतल को कहते थे सुराही
एक और किस्सा रजनीश त्रिवेदी सुनाते हैं, कि उनकी नई-नई शादी हुई थी, जब नीरज उनके धामावाला स्थित पुराने घर में आए थे। उनकी पत्नी रश्मि से नीरज ने सुराही में पानी भरने को कहा। वह समझीं नहीं। थोड़ी देर बाद उन्हें समझ आया कि वह बोतल को सुराही कह रहे हैं।
शैलेंद्र सम्मान से भी नवाजा गया
कवि एवं गीतकार गोपाल दास 'नीरज' का उत्तराखंड नियमित आना जाना रहा। नीरज न केवल विभिन्न कार्यक्रमों में शिरकत करते रहे, बल्कि उन्हें यहां सम्मान से भी नवाजा गया। वर्ष 2002 में उन्हें 'शैलेंद्र सम्मान' दिया गया। शैलेंद्र मेमोरियल ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष एवं केवि-1 हाथीबड़कला के प्रधानाचार्य इंद्रजीत सिंह कहते हैं कि पद्मभूषण गोपाल दास नीरज मंचों के बादशाह थे। उन्हें दो बार आमंत्रित करने का अवसर मिला। पहला वर्ष 2002 में जब रुड़की में आयोजित समारोह में उन्हें तृतीय शैलेंद्र सम्मान से नवाजा गया। दूसरी बार जब 2009 में गीतकार प्रसून जोशी को शैलेंद्र सम्मान से नवाजा गया। नीरज तब मुख्य अतिथि थे। साहित्य जगत में नीरज का कद कितना बड़ा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रसून जोशी ने तब भावविह्लि होकर कहा कि आज मेरा गीतकार के रूप में जीवन सफल हो गया है। क्योंकि कालजयी गीतों के रचयिता गीतकार शैलेंद्र की याद में और गीतों के राजकुमार नीरज के हाथों मुझे शैलेंद्र सम्मान मिल रहा है।
डीएवी में कई बार किया काव्य पाठ
डीएवी महाविद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों में भी नीरज आते रहे। पहली बार उन्होंने 1943 में यहां अपनी कविता का पाठ किया। वर्ष 1995 में कॉलेज के स्वर्ण जयंती समारोह में आयोजित कवि सम्मेलन का भी वह हिस्सा रहे। तब उन्होंने सुनाया था, 'छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ लुटाने वालों, कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।' कॉलेज के पूर्व प्राचार्य एवं हिंदी साहित्य समिति के पूर्व सचिव डॉ. देवेंद्र भसीन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि हिंदी साहित्य समिति के निमंत्रण पर कई बार वह देहरादून कवि सम्मेलनों में आए। एक कार्यक्रम केवल उनके सम्मान में आयोजित किया गया था।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र का कहना है कि नीरज दून में लगातार साहित्यिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने आते रहते थे। वह मेरे खास मित्र थे, वह अक्सर कहा करते थे कि दून का प्राकृतिक सौंदर्य साहित्य की दृष्टि से भी मुफीद है। यहां उनका काफी मन लगता था।
पद्मश्री डॉ. लीलाधर जगूड़ी का कहना है कि गीतकार नीरज का जाना साहित्य एवं संस्कृति जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। भले ही आज नीरज हमारे बीच में न हों, लेकिन एक कमलकार की भांति वह अपनी रचनाओं के माध्यम से हमेशा हमारे बीच रहेंगे।
जनकवि डॉ. अतुल शर्मा का कहना है कि करीब पांच साल पहले नगर निगम सभागार में एक साहित्य कार्यक्रम के दौरान नीरज से मिलने का सौभाग्य मिला। इस दौरान मैने मंच का संचालन करते हुए वरिष्ठ कवि कहकर उनको आमंत्रित किया तो उन्होंने हंसते हुए एक बात कही थी। कवि कभी बूढ़ा नहीं होता। कवि की कविता हमेशा जवान रहती है।
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