नई और सस्ती तकनीक इजाद करें इंजीनियर्स : मुख्यमंत्री
इंडियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय सम्मेलन में सीएम त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि यहां के इंजीनियर्स सस्ती नई तकनीक विकसित करने पर काम करें ताकि जनता को इसका लाभ मिल सके।
देहरादून, जेएनएन। इंडियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय सम्मेलन पेयजल आपूर्ति चुनौतियां और अवसर विषय पर आयोजित किया गया। इसके तकनीकी सेशन में नागपुर, कर्नाटक से आए विशेषज्ञों ने सीवेज, स्वच्छता, नेटवर्क पर नई तकनीकी जानकारियां भी दीं।
पंडितबाड़ी स्थित एक क्लब में हुए सम्मेलन का उद्घाटन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, एसोसिएशन अध्यक्ष केके सोनगरिया, अपर सचिव उदयराज सिंह, उत्तम पार्सेकर, नरेंद्र सिंह, भजन सिंह ने दीप प्रज्वलन कर किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि इस सेमिनार में बाहर से आए इंजीनियर एक दूसरे से नई-नई तकनीक साझा करेंगे, जो प्रदेश के विकास में उपयोगी साबित होगी।
सीएम ने कहा कि खुले में शौच मुक्त होने वाले पहले चार राज्यों में उत्तराखंड भी शामिल है। इस वजह से यहां पानी की मांग बढ़ी है। इसी तरह अभी प्रदेश के 23 फीसदी घरों में पानी के कनेक्शन हैं, इसे 100 प्रतिशत तक ले जाना है, इससे भी मांग बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि बारिश का जल संचयन ही सभी समस्याओं का हल है।
प्रदेश सरकार इंजीनियर्स के बल पर 128 मीटर ऊंचे बांध को महज 350 दिन में बनाने का लक्ष्य रखा है। इस तरह सूर्यधर, जमरानी, पंचेश्वर, मलढुंग में भी बांध बना रही है। पानी की आपूर्ति में ज्यादा से ज्यादा ग्रैविटी वाटर पर जोर है। पंचेश्वर बांध बनने के बाद एक दिन में उतनी बिजली बन जाएगी जो अभी तक उत्पादित नहीं हुई है। इस बांध का पांच प्रतिशत पानी चंपावत, ऊधमसिंह नगर में छोड़ा जाएगा जो ग्रैविटी वाटर से आपूर्ति करने में मदद आएगा।
ऐसे ही जमरानी बांध से हल्द्वानी में ग्रैविटी वाटर से आपूर्ति होगी। उन्होंने कहा कि नीदरलैंड में महज 90 लीटर से एक मेगावाट करीब एक करोड़ रुपये की बिजली पैदा करने की तकनीक विकसित की है। ऐसी ही जरूरत भारत में भी है। यहां के इंजीनियर्स सस्ती नई तकनीक विकसित करने पर काम करें ताकि जनता को इसका लाभ मिल सके। इसके बाद सेमिनार के तकनीकी सेशन हुए। तकनीकी सेशन में विभिन्न राज्यों से आए केमिस्ट, बैक्टीरियोलॉजिस्ट, बायोलॉजिस्ट, हाइड्रो जियोलॉजिस्ट, इन्वायरनमेंटलिस्ट, अनुसंधान संस्थानों के प्रोफेसर ने पेयजल आपूर्ति नेटवर्क, सीवरेज सिस्टम, स्वच्छता आदि से जुड़ी नई तकनीकी जानकारियां भी दी। सम्मेलन में 12 राज्यों के इंजीनियर्स ने हिस्सा लिया। इस दौरान वीसी पुरोहित, रजत चौधरी, सुब्रतो पॉल, वीके सिन्हा, योगेंद्र गिरी, मनोज कुमार, डीपी सिंह, सचिन कुमार आदि इंजीनियर्स मौजूद थे।
बिजली आपूर्ति की तर्ज पर डिजाइन हो पानी आपूर्ति का नेटवर्क
सम्मेलन के तकनीकी सेशन में अलग-अलग प्रदेशों से आए इंजीनियर्स ने सीवरेज ट्रीटमेंट, सेनिटेशन, पानी आपूर्ति नेटवर्क, जल संरक्षण, जल सुरक्षा एवं सतत प्रबंधन, डकटाइल आयरन पाइप लाइन आदि के बारे में भी तकनीकी जानकारिया दी।
शोधपत्र- एक
रुड़की आइआइटी के प्रो. एए काजमी ने एसटीपी में न्यूट्रिएंट रिमूवल के बारे में एडवांस एमबीबीआर तकनीकी की जानकारी दी। इसमें पीवीए जेल मीडिया का प्रयोग कर पानी को साफ किया जाता है। इस तकनीकी का कीर्ती नगर में 50 केएलडी का एसटीपी चल रहा है। यहां से साफ हुए पानी को बागवानी, गाड़ी, फर्श वगैरह धोने में उपयोग कर सकते हैं।
शोधपत्र-दो
आइआइटी दिल्ली के प्रवक्ता डॉ. विवेक कुमार ने इलेक्ट्रो कोएगुलेशन के जरिए सीवरेज शोधन की तकनीकी बताई। इस तकनीकी के 13 सीवर शोधन प्लांट उत्तराखंड में काम कर रहे हैं।
शोधपत्र- तीन
बंग्लुरु के दयानंद सागर कॉलेज के प्रो. डॉ. एचके रामाराजू ने अर्द्धशहरीय क्षेत्रों में पानी की शुद्धता ई-टॉयलेटस, डिसेंट्रलाइज वेस्ट वाटर सिस्टम, ट्विन पिट लैटरीन, ईकोस आदि के बारे में जानकारी दी। इससे पानी की शुद्धता बचाई जा सकती है।
शोधपत्र- चार
हैदराबाद के डॉ. एचएम चैरी ने कंस्ट्रक्शन प्रबंधन के बारे में बताया। यह निर्माण में लगे इंजीनियर्स के लिए फायदेमंद होगा।
यह भी पढ़ें: प्रोग्रेसिव पैरिनियल यूरेथ्रोप्लास्टी सर्जरी ने दिया जीवन, जानिए कैसे Dehradun News
शोधपत्र- पांच
नागपुर के विश्वैश्वरैया नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी के प्रो. राजेश गुप्ता ने पानी आपूर्ति में रिलायबल डिजाइन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि चार-पांच मोहल्ले मिलाकर एक जोन बनाए। हर घर में मीटर लगाए और पानी आपूर्ति का भी मीटर लगाए। इस तरह उपयोग किये जाने वाले पानी का डाटा मिलेगा और दूसरा आपूर्ति के अंतर से पानी की बचत कर सकेंगे। वहीं इस नेटवर्क को बिजली की तर्ज पर डिजाइन करे। यदि कहीं फीडर या पाइप खराब हो तो अन्य फीडर से जोड़कर आपूर्ति हो। लाइन में प्रेशर कम रखा जाए ताकि लीकेज नहीं हो।
यह भी पढ़ें: यहां चिकित्सकों ने सबसे छोटे पेसमेकर का किया प्रत्यारोपण, पढ़िए पूरी खबर