Move to Jagran APP

महंगे नहीं मोटे अनाज से बनती है सेहत, जानिए कैसे

उत्तराखंड की बारानाजा फसल पद्धति में वह सब मिलता है, जिसकी आज दरकार है। इस पद्धति से पैदावार कम हो, लेकिन पौष्टिकता के मामले में इनका कोई सानी नहीं है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 04 Sep 2018 10:43 AM (IST)Updated: Wed, 05 Sep 2018 03:57 PM (IST)
महंगे नहीं मोटे अनाज से बनती है सेहत, जानिए कैसे
महंगे नहीं मोटे अनाज से बनती है सेहत, जानिए कैसे

देहरादून, [केदार दत्त]: बदली परिस्थितियों में जमीन 'जहरीली' हो रही तो फसलें भी। रासायनिक उर्वरकों के बेतहाशा उपयोग ने खेती की जो दुर्दशा की है, उससे सभी विज्ञ हैं। हालांकि, जो पैदावार हो रही, वह मात्रात्मक रूप में अधिक जरूर है, मगर गुणवत्ता में बेदम। सूरतेहाल, ऐसा अन्न खाने से सेहत पर असर तो पड़ेगा ही और यही मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चिंता भी है। इस सबको देखते हुए थाली में बदलाव व विविधता लाना समय की मांग है। इस लिहाज से देखें तो उत्तराखंड की 'बारानाजा' फसलें इसी बदलाव का प्रतिबिंब हैं, जो पौष्टिकता के साथ औषधीय गुणों से भी लबरेज हैं।

loksabha election banner

कृषि पैदावार बढ़ाने को जिस तरह रासायनिक उर्वरकों का उपयोग हो रहा है, उससे भूमि की उर्वरा शक्ति पर असर पड़ा तो फसलों पर भी। परिणाम तमाम रोगों के तौर पर सामने आ रहा है। ऐसे में पौष्टिक और औषधीय गुणों से लबरेज अन्न मिल जाए तो कहने ही क्या। उत्तराखंड की 'बारानाजा' फसल पद्धति में वह सब मिलता है, जिसकी आज दरकार है। भले ही यहां के पहाड़ी क्षेत्र में सदियों से चलन में मौजूद इस पद्धति से पैदावार कम हो, लेकिन पौष्टिकता के मामले में इनका कोई सानी नहीं है।

यह है बारानाजा पद्धति

विषम भूगोल वाले उत्तराखंड की जलवायु और भौगोलिक स्थितियों को  देखते हुए पहाड़ी क्षेत्र के लोगों ने सदियों पहले गेहूं एवं धान की मुख्य फसल के साथ ही विविधताभरी बारानाजा पद्धति को महत्व दिया। मंडुवा व झंगोरा बारानाजा परिवार के मुख्य सदस्य हैं। इसके अलावा ज्वार, चौलाई, भट्ट, तिल, राजमा, उड़़द, गहथ, नौरंगी, कुट्टू, लोबिया, तोर आदि इसकी सहयोगी फसलें हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो बारानाजा मिश्रित खेती का श्रेष्ठ उदाहरण है और यह फसलें पूरी तरह से जैविक भी हैं। इसमें एक साथ बारह फसलें उगाकर पौष्टिक भोजन की जरूरत पूरी करने के साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने की क्षमता भी है।

बारानाजा उगाओ-जीवन बचाओ

बारानाजा पद्धति को आगे बढ़ाने के लिए 'नवदान्या' संस्था ने 'बारानाजा उगाओ-जीवन बचाओ' मुहिम छेड़ी है। संस्था का मानना है कि बारानाजा सदियों से किसानों द्वारा जांचा-परखा है। यह प्राकृतिक संतुलन के साथ ही गरीब के घर में संतुलित आहार का आधार भी है। कम जगह में ज्यादा और विविधतापूर्ण पैदावार लेने में यह पद्धति सक्षम है। बारानाजा की फसलों में सूखा और कीट-व्याधि से लडऩे की भी जबर्दस्त क्षमता है, जो आज के बिगड़े मौसम चक्र को देखते हुए एक मजबूत विकल्प पेश करती है। यही वजह रही कि अकाल-दुकाल में बारानाजा बचा रहा। आज जरूरत इस बात की है कि इस पद्धति को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाए। 

यह भी पढ़ें: उत्‍तराखंड के मैदानी और पहाड़ी जिलों में है कुपोषण का मर्ज

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड के इन चार जिलों में लड़नी होगी कुपोषण से जंग


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.