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यातायात पुलिस की परेशानी, नौ पार्किंग जोन में खड़ी गाड़ी उठा तो लें पर रखे कहां

ट्रैफिक पुलिस इन दिनों अजीब पशोपेश में है। सड़कों पर नो-पार्किंग जोन में खड़ी गाड़ियों को वह क्रेन से उठाकर सीज तो करना चाहती है मगर समस्या यह है कि आखिर उन्हें ले कहां जाएं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Thu, 16 Jan 2020 05:42 PM (IST)Updated: Thu, 16 Jan 2020 05:42 PM (IST)
यातायात पुलिस की परेशानी, नौ पार्किंग जोन में खड़ी गाड़ी उठा तो लें पर रखे कहां
यातायात पुलिस की परेशानी, नौ पार्किंग जोन में खड़ी गाड़ी उठा तो लें पर रखे कहां

देहरादून, संतोष तिवारी। यातायात पुलिस इन दिनों अजीब पशोपेश में है। सड़कों पर नो-पार्किंग जोन में खड़ी गाड़ियों को वह क्रेन से उठाकर सीज तो करना चाहती है, मगर समस्या यह है कि आखिर उन्हें ले कहां जाएं। क्योंकि, ट्रैफिक पुलिस कार्यालय का परिसर पहले से सीज की गई गाड़ियों से भरा हुआ है। यहां रोज ड्यूटी पर आने वाले पुलिसकर्मियों को भी बड़ी मुश्किल से गाड़ी खड़ी करने की जगह मिल पाती है। कई बार तो मजबूरी में पुलिस वालों को भी सड़क पर ही गाड़ी करनी पड़ती है। लिहाजा, यातायात पुलिस ने अपनी क्रेन को तकलीफ देना ही छोड़ दिया है। इससे नियम तोड़ने वालों की मौज हो गई है। वह बेफिक्र होकर जहां मन करता है, वहां गाड़ी खड़ी कर देते हैैं। पुलिस क्या करेगी, ज्यादा से ज्यादा चस्पा चालान। जो अधिकतम पांच सौ रुपये में छूट जाता है। 

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'गरीबों' पर रहम दिल हुई पुलिस 

कुछ महीने पहले सरकार ने शहर में चलने वाले ई-रिक्शा को मुख्य मार्गों से हटाने का फरमान सुना दिया था। इससे आम लोगों को लगा कि सरकार आदेश दे रही है तो जरूर शहर के लिए नई मुसीबत बन चुके ई-रिक्शा से निजात मिलेगी। सड़कों पर जाम नहीं लगेगा और वह फर्राटा भरते हुए चंद मिनटों में अपनी मंजिल तक पहुंच पाएंगे। मगर खाकी के पीछे भी तो 'रहम दिल' इंसान ही हैं।

इसका अंदाजा जनता को तब हुआ, जब सरकारी आदेश को कई हफ्ते गुजर जाने के बाद भी सड़क पर ई-रिक्शा का झुंड छोटा होने के बजाय बढ़ता दिखा। साहब से सवाल हुए तो जवाब उम्मीद से काफी जुदा था। तर्क दिया गया कि ई-रिक्शा 'गरीब-गुरबे' चलाते हैं। अब यह रिक्शा भी नहीं चलाएंगे तो करेंगे क्या। काम में व्यस्त हैं तो रहने दीजिए। क्यों, रिक्शा छीनकर इन्हें उन कामों की ओर जाने दिया, जो इससे भी बड़ी मुसीबत खड़ी कर दें। 

बेगानी शादी में पुलिस 'दीवानी ' 

आजकल जितनी दौड़भाग लोगों को शादी की तैयारी के लिए नहीं करनी पड़ती, उससे ज्यादा चक्कर पुलिस की चौखट के काटने पड़ते हैं 'परमिशन' के लिए। दरअसल, अब ज्यादातर शादियां दिन में होती हैं। अब बारात में सड़क पर नाचना शादी की किसी 'रस्म' से कम थोड़े ही है। दूल्हे के दोस्तों के लिए तो यह रस्म सबसे ज्यादा मायने रखती है, जिसे पूरा किए बगैर वो मान ही नहीं सकते।

भले ही इस रस्मअदायगी में ट्रैफिक की ऐसी-तैसी क्यों न हो जाए। सो, पुलिस ने फरमान जारी कर रखा है कि शादी करनी है तो पहले हमसे परमीशन लेनी होगी। बारात में कितने लोग होंगे, बताना होगा। साथ ही रूट और बारात निकलने का समय भी पुलिस तय करेगी। इतना ही नहीं बैंड-बाजा और डीजे वालों को भी पुलिस अपने दफ्तर में कई फेरे लगवा देती है। वह इसलिए कि किसी भी बारात में ट्रॉली पर डीजे नहीं लगाएंगे, यदि कोई डिमांड करता है तो वह पुलिस को बताएंगे। 

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उल्टा पड़ गया दांव 

पिछले दिनों सत्तारूढ़ दल से जुड़े एक संगठन ने नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में रैली निकाल दी। रैली के आयोजकों को जब लगा कि इसके लिए भी परमीशन जरूरी होती है तो चंद घंटे पहले सिटी मजिस्ट्रेट और पुलिस के दफ्तर में कागज रिसीव करा दिया। अधिकारियों ने साफ तौर पर चेताया कि बिना अनुमति रैली निकाली तो कार्रवाई हो सकती है, लेकिन संगठन सत्तारूढ़ दल से जुड़ा था तो इस चेतावनी को यह सोचकर अनसुना कर दिया कि वह तो सीएए के समर्थन में है और सत्तारूढ़ दल तो साथ है ही।

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मगर बात तब बिगड़ गई जब रैली निकालने के चंद मिनट भीतर ही पुलिस ने उनका रास्ता रोक लिया और अनुमति पत्र मांगने लगी। अब अनुमति तो थी नहीं। पुलिस ने सभी पर कानून तोडऩे के आरोप में जब मुकदमा दर्ज करा दिया तो उनके होश उड़ गए। अब संगठन को सीएए पर लोगों को जागरूक करने के बजाए दर्ज मुकदमे को खत्म कराने के लिए दौड़भाग की 'रैली' करनी पड़ रही है। 

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