यहां पत्थर दिल पुलिस अपराधियों को इंसान मानने में थोड़ा हिचकिचाती
पत्थर दिल पुलिस अपराधियों को इंसान मानने में थोड़ा हिचकिचाती है। इस कंपकंपाती ठंड में आरोपितों को ऐसे पेश किया जाता है जैसे वह राजस्थान के मरूस्थल से आए हुए हों।
देहरादून, संतोष तिवारी। परिस्थिति कब किसे जेल की हवा खाने को मजबूर कर दे। कोई ठिकाना नहीं। मगर इसका यह कतई मतलब नहीं कि उसके भीतर का इंसान मर गया। लेकिन 'पत्थर दिल' पुलिस अपराधियों को इंसान मानने में थोड़ा हिचकिचाती है। यह पुलिस की कोई 'मजबूरी' हो सकती है, मगर क्यों? सवाल कई हो सकते हैं। इस कंपकंपाती ठंड में जब पुलिस कर्मी खुद मफलर, टोपी और गरम वर्दी के सहारे खुद गरमी का अहसास कर रहे हैं तो वहीं विभिन्न मामलों में पकड़े जाने वाले आरोपितों को ऐसे पेश किया जाता है, जैसे वह राजस्थान के मरूस्थल से आए हुए हों और उन्हें ठंड में भी गरमी लगती हो। मगर ऐसा है तो नहीं। जिले के एक थाने में आरोपित के साथ ली गई तस्वीर में पुलिस कर्मियों के खिले चेहरे और आरोपित का ठंड में फर्श से उठे पंजे अपने आपमें बहुत कुछ कह जाते हैं। देखना होगा कि आला अधिकारी इस पर कुछ कह पाते हैं या नहीं।
...तो ठेली वाले नहीं सुनते
पुलिस भले ही लाख दावा करे कि अपराधी उससे थर-थर कांपते हैं। मगर, शहर के हालात बता रहे हैं कि दून के ठेली वाले तक पुलिस की नहीं सुनते। हाल ही में कप्तान साहब ने एक फरमान जारी किया था कि पीक ऑवर में शहर की सड़कों पर ठेलियां नजर नहीं आएंगी। साहब का क्या, वह तो फरमान जारी करके कामकाज में मशगूल हो गए। दूसरी तरफ शहर में ठेली वालों की धमाचौकड़ी बेधड़क जारी है। साफ है कि ठेली वालों ने साहब के फरमान को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया या फिर पुलिस वालों ने...। खैर, बात जो भी हो, राम जाने, मगर जो सड़क पर नजर आ रहा है, वो पुलिस के इकबाल पर बट्टा लगा रहा है।
कड़वी लगने लगी चाय
सर्दियों की शुरुआत होते ही कप्तान साहब ने रात में गश्त करने वाली पुलिस टीमों और पिकेट पार्टियों के लिए चाय की व्यवस्था करने का फैसला किया तो इसकी सराहना खूब हुई। पुलिसकर्मी खुश थे कि चलो देर से ही सही किसी ने उनके बारे में सोचा तो...। इससे भी ज्यादा राहत इस बात की थी कि रात में फोकट की चाय की दुकानें नहीं ढूंढनी पड़ेगी। मगर कप्तान साहब ठहरे 'कप्तान'। घाट-घाट की चाय पी चुके हैं। सो, खुद ही रात में पुलिसकर्मियों को चाय 'सर्व' करने पहुंचने लगे। साथ ही चाय की चुस्की लेने वाले पुलिसकर्मियों की खबर लेनी भी शुरू कर दी। पिकेट और बैरियर पर पहुंचकर पूछने लगे कि कौन चाय पीने आया और कौन नहीं। जिसने चाय पी वह पास और जिसने नहीं पी उसकी मुसीबत बढ़ गई। उन्हें चाय न पीने के बहाने बताने पड़े। किसी ने बीमारी का बहाना बनाया तो कइयों ने कह दिया कि चाय अब कड़वी लगने लगी है।
तबादले पर चर्चा
बीते दिनों पुलिस महकमे में चाय की चुस्कियों के साथ कप्तान साहब के तबादले पर खूब चर्चा हुई। बीती एक जनवरी को नववर्ष के तोहफे में विभाग ने देहरादून के कप्तान अरुण मोहन जोशी को डीआइजी के पद पर प्रोन्नत कर दिया। मगर प्रमोशन से पहले कहीं से हवा उड़ गई कि प्रमोशन के साथ उन्हें कप्तानी के पद से रुखसत होना पड़ सकता है।
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बस, यहीं से शुरू हो गया चर्चाओं का दौर। एसएसपी ऑफिस से लेकर पुलिस मुख्यालय तक इस बात की खूब चर्चा हुई कि अब जोशी जी का जाना तय है। सभी के पास उन्हें हटाए जाने के अपने-अपने तर्क थे। किसी ने तर्क दिया कि बीते साल इसी तरह एक महिला अधिकारी को डीआइजी के पद पर प्रमोशन मिला था। इसके बाद उन्हें तुरंत जिले की कप्तानी से विदा कर दिया गया। हालांकि, जोशी के अपने पद पर बने रहने के साथ इन चर्चाओं पर भी विराम लग गया।
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