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Lok Sabha Election 2024: उत्तराखंड में सूरज की तपिश के बीच चुनावी माहौल ठंडा, न चुनावी शोर गूंजा और न झंडे-डंडों को लेकर मारामारी

Lok Sabha Election 2024 उत्तराखंड में लोकसभा की सभी पांचों सीटों के लिए 19 अप्रैल को होने वाले मतदान की घड़ी अब निकट है लेकिन अभी तक चुनाव जैसा अहसास नहीं हुआ। माहौल गर्माने को बहुत अधिक प्रयास भी होते नजर नहीं आए। वादों-दावों की पोटली भी खुली लेकिन वातावरण शांत-शांत सा रहा। न चुनावी शोर गूंजा और न झंडे-डंडों को लेकर कहीं मारामारी दिखी।

By kedar dutt Edited By: Nirmala Bohra Published: Wed, 17 Apr 2024 10:50 AM (IST)Updated: Wed, 17 Apr 2024 10:50 AM (IST)
Lok Sabha Election 2024: पिछले चुनावों में जैसा माहौल दिखता था, वह इस बार रहा नदारद

केदार दत्त, जागरण, देहरादून: Lok Sabha Election 2024: मध्य हिमालयी राज्य उत्तराखंड में लोकसभा की सभी पांचों सीटों के लिए 19 अप्रैल को होने वाले मतदान की घड़ी अब निकट है, लेकिन अभी तक चुनाव जैसा अहसास नहीं हुआ। पिछले चुनावों में जिस तरह का माहौल चुनाव प्रचार के दौरान दिखता था और जैसी गर्माहट घुलती थी, वह इस बार नदारद रही।

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ऐसा नहीं कि माहभर के अभियान के दौरान चुनाव प्रचार नहीं हुआ, लेकिन स्वरूप कुछ अलग ही रहा। चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों के साथ ही स्टार प्रचारक सभाएं भी कर गए। वादों-दावों की पोटली भी खुली, लेकिन वातावरण शांत-शांत सा रहा। न चुनावी शोर गूंजा और न झंडे-डंडों को लेकर कहीं मारामारी दिखी।

मतदाताओं ने सबकी बात सुनी, लेकिन जुबां पर खामोशी ओढ़े रखी। मतदाता ने किसी को अपने मन की थाह नहीं लेने दी, जिसने राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के दिलों की धड़कनें बढ़ा दी हैं। साथ ही चुनावी पारा न चढऩे को लेकर तमाम कारण भी फिजां में तैर रहे हैं।

पिछले चुनावों के आलोक में उत्तराखंड के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो यहां परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों कांग्रेस व भाजपा के मध्य ही भिडं़त होती आई है। इस बार की तस्वीर भी ऐसी ही दिख रही है, लेकिन पिछली बार तक जिस तरह से चुनावी पारा चढ़ता रहा है, वह गायब था।

माहौल गर्माने को बहुत अधिक प्रयास भी होते नजर नहीं आए। भाग्यविधाता मतदाताओं की चौखट पर आने प्रत्याशियों व समर्थकों ने वादे-दावे खूब किए। बावजूद इसके न तो पैंफलेट बांटने की कहीं होड़ दिखी और न वाल राइटिंग, बैनर-पोस्टर की।

बुजुर्गों को चौखट पर आने वाले प्रत्याशियों को आशीर्वाद देने का इंतजार रहता था, लेकिन इस मर्तबा माहभर का समय आंखों ही आंखों में बीत गया। सुदूर पहाड़ से लेकर मैदान तक गांवों, शहरों का परिदृश्य इससे जुदा नहीं रहा।

राजनीतिक कारण भी रहे जिम्मेदार

ऐसे में फिजां में यह प्रश्न तैर रहा है कि आखिर, हर बार की तरह इस बार चुनाव क्यों नहीं उठा। क्यों चुनावी पारे ने उछाल नहीं भरी। यानी, स्वाभाविक रूप से हर किसी की जुबां पर यह विषय चर्चा के केंद्र में है। सूरज की तपिश के बीच वातावरण में चुनावी तापमान नहीं दिखा तो इसके पीछे राजनीतिक कारण भी समाहित हैं। असल में भाजपा ने अपने चुनाव अभियान का आगाज काफी पहले से ही प्रारंभ कर एक प्रकार से मनोवैज्ञानिक बढ़त ले ली थी। उसने इस बार चार सौ पार का नारा दिया।

इसका जनता पर क्या असर पड़ा, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा, लेकिन कांग्रेस पर इसका असर अवश्य देखा गया। कांग्रेस में चुनाव लडऩे को लेकर चली ना-नुकुर को इससे जोड़कर देखा जा रहा है और इसने पार्टी कार्यकर्ताओं के उत्साह को कम करने का काम किया। यद्यपि, बाद में प्रत्याशियों के मैदान में उतरने पर कांग्रेस कार्यकर्ता भी जुटे, लेकिन राज्य के वरिष्ठ नेता अपने दड़बों से बाहर नहीं निकले।

स्टार प्रचारकों की रही धूम

चुनाव प्रचार अभियान में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, जनरल वीके सिंह (सेनि) समेत अन्य स्टार प्रचारकों की नियमित अंतराल में सभाएं आयोजित कीं।

कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में शामिल बड़े नेताओं में केवल पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की सभा ही राज्य में हुई। बुधवार को प्रचार के अंतिम दिन राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं कांग्रेस नेता सचिन पायलट की सभा प्रस्तावित है। इसके अलावा भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का भी दौरा है।

चुनावी गर्माहट न होने के अपने-अपने दावे

इस सबके बावजूद चुनावी पारा उस हिसाब से नहीं चढ़ा, जैसा पूर्व के चुनावों में चढ़ता था। इसे लेकर सबके अपने-अपने दावे हैं। कुछ लोग इसे बदलाव के तौर पर देख रहे हैं। उनका कहना है कि चुनाव प्रचार अभियान के तौर तरीकों को लेकर अब सोच बदल रही है। मतदाता परिपक्व हो चुका है। वह चुनावी शोरगुल से प्रभावित नहीं होता, बल्कि दलों, प्रत्याशियों को अपनी कसौटी पर परखता है। दूसरी तरफ कुछ लोग यह चिंता जताते हैं कि इस बार जैसा परिदृश्य दिखा है, उसका मतदान पर असर न पड़े। ऐसी ही चिंता राजनीतिक दलों व बौद्धिक वर्ग के बीच है। यद्यपि, वे यह भी मानते हैं कि उत्तराखंड का मतदाता हमेशा से ही अपनी परिपक्व सोच का परिचय देता आया है। वह चुनाव में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाएगा और मतदान के पिछले प्रतिमान इस बार ध्वस्त करेगा।

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