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Land Law: उत्तराखंड में हिमाचल पैटर्न पर लागू हो सकता है भू-कानून, अध्ययन शुरू

भू-कानून में संशोधन हिमाचल पैटर्न पर किए जा सकते हैं। इस संबंध में गठित समिति हिमाचल पैटर्न पर भू-कानून में बदलाव करने पर विचार करेगी। यह मांग जोर पकड़ने के बाद समिति इस पहलू पर भी गंभीरता से विचार कर रही है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Fri, 24 Sep 2021 07:42 PM (IST)Updated: Fri, 24 Sep 2021 07:42 PM (IST)
Land Law: उत्तराखंड में हिमाचल पैटर्न पर लागू हो सकता है भू-कानून, अध्ययन शुरू
Land Law: उत्तराखंड में हिमाचल पैटर्न पर लागू हो सकता है भू-कानून, अध्ययन शुरू।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। Land law In Uttarakhand उत्तराखंड में भू-कानून में संशोधन हिमाचल पैटर्न पर किए जा सकते हैं। इस संबंध में गठित समिति हिमाचल पैटर्न पर भू-कानून में बदलाव करने पर विचार करेगी। यह मांग जोर पकड़ने के बाद समिति इस पहलू पर भी गंभीरता से विचार कर रही है। हिमाचल के भू-कानून का अध्ययन शुरू कर दिया गया है।

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प्रदेश में भू-कानून के मसले पर सियासत गर्मा चुकी है। प्रमुख प्रतिपक्षी पार्टी कांग्रेस यह घोषणा कर चुकी है कि सरकार बनने पर तुरंत इस कानून को रद किया जाएगा। मौजूदा भू-कानूनों का विरोध करने वाले हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड में भी भूमि व्यवस्था बनाने की मांग कर रहे हैं। उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950)(संशोधन) अधिनियम में धारा-143(क) और धारा 154 (2) को जोड़े जाने का विरोध मुखर हो चुका है।

भू-कानून की मुखालफत करने वालों का कहना है कि सरकार ने पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में कृषि भूमि खरीद की सीमा समाप्त कर दी गई है। लीज और पट्टे पर 30 साल तक भूमि लेने का रास्ता खोला गया है। इससे राज्य को भविष्य में मुश्किलें झेलनी पड़ेंगी। भू-कानून में संशोधन पर विचार को गठित सुभाष कुमार समिति ने जन भावनाओं को भांपकर हिमाचल में लागू भू-कानून का अध्ययन शुरू कर दिया है।

समिति के अध्यक्ष सुभाष कुमार ने कहा कि हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड में भू-कानून का स्वरूप तय किया जा सकता है। समिति इस मामले में सभी स्टेक होल्डर की राय भी लेगी। जरूरत पड़ी तो हिमाचल पैटर्न पर भी भू-कानून को उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में ज्यादा व्यवहारिक बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि समिति की पहली बैठक हो चुकी है। बैठक में यह सहमति बनी कि इस संवेदनशील मामले में व्यापक मंथन किया जाए। आम जन के साथ बुद्धिजीवियों से भी सुझाव आमंत्रित किए जाएंगे। इसके लिए जल्द जन सुनवाई प्रारंभ की जाएगी।

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