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पीएम मोदी की सहमति, निर्माता स्तर पर हो जीएसटी लागू

फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया व्यापार मंडल ने मांग की है कि जीएसटी निर्माता स्तर पर लागू किया जाए, जिससे छोटे व मध्यम स्तर के कारोबारियों को राहत मिल सके।

By Edited By: Published: Mon, 21 May 2018 03:00 AM (IST)Updated: Thu, 24 May 2018 05:12 PM (IST)
पीएम मोदी की सहमति, निर्माता स्तर पर हो जीएसटी लागू

देहरादून, [जेएनएन]: फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया व्यापार मंडल ने एकल बिंदु जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) की मांग उठाते हुए केवल निर्माता को जीएसटी के दायरे में लाने पर बल दिया। व्यापार मंडल प्रतिनिधियों ने कहा कि फुटकर व थोक विक्रेताओं को जीएसटी के झंझट से मुक्त रखा जाना चाहिए। ताकि छोटे व मध्यम स्तर के कारोबारियों को राहत मिल सके और इससे कर चोरी की प्रवृत्ति पर भी लगाम लग पाएगी। 

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राजपुर रोड स्थित एक क्लब में रविवार को आयोजित परिचर्चा को संबोधित करते हुए व्यापार मंडल के राष्ट्रीय महामंत्री वीके बंसल एकल बिंदु जीएसटी को लेकर देशव्यापी अभियान चलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस विचार पर सहमति जताते हुए वित्त मंत्री को इस दिशा में कसरत करने को कहा है। ताकि निर्माता स्तर पर ही जीएसटी लागू करने को लेकर ठोस नीति बनाई जा सके। 

मंडल के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि ज्यादातर कारोबारी या तो कंपोजीशन स्कीम में हैं या त्रैमासिक जीएसटी विवरणी के अंतर्गत हैं। जीएसटी पंजीकरण में कारोबारियों की संख्या पहले के मुकाबले 50 फीसद बढ़ोतरी होने के बाद भी 80 से 85 फीसद तक ही कर की वसूली हो पा रही है। दूसरी तरफ एक करोड़ कारदाताओं में करीब 18 लाख करदाता कंपोजीशिन स्कीम के तहत आते हैं, जिनका सालाना कारोबार 1.5 करोड़ रुपये से कम है। ऐसे कारोबारी अपने कारोबार पर एक फीसद कर रही सरकार को दे रहे हैं। जबकि जो कारोबारी जीएसटी की पूरी औपचारिकता निभा रहे हैं, उनकी संख्या न सिर्फ अधिक है, बल्कि उनमें तकनीकी ज्ञान भी बेहद कम है। 

कुल मिलाकर 20-25 फीसद जीएसटी की वसूली 85-90 फीसद करदाताओं से की जा रही है। ऐसे में अनावश्यक बोझ बढ़ रहा है और कामकाज में अड़चन पैदा हो रही है। ऐसे में निर्माता स्तर पर ही अधिकतम खुदरा मूल्य का आकलन कर जीएसटी की दर का निर्धारण करना न्यायोचित होगा। उत्तराखंड युवा व्यापारी एसोसिएशन के महामंत्री अनिल कुमार मोला ने भी छोटे कारोबारियों की समस्याओं को उठाया। 

उन्होंने कहा कि ऐसे कारोबारी तकनीकी मुश्किल से बचने के लिए कर चोरी की राह पकड़ लेते हैं, जो कि देश की आर्थिकी के लिए उचित नहीं है। वहीं, सर्राफा मंडल, देहरादून के अध्यक्ष अनिल मैसोन ने कहा कि गैर सेवा क्षेत्र के कारदाताओं में निर्माता वर्ग की संख्या महज 10 से 15 फीसद है और शेष संख्या दुकानदारों की है। किसी भी वस्तु में निर्माता और उपभोक्ता के माध्य सिर्फ 20-25 फीसद औसत मूल्य संवर्धन होता है। इस मूल्य संवर्धन पर ही दुकानदारों को जीएसटी भरना पड़ता है। 

इस तरह भी निर्माता स्तर पर ही अधिकतम खुदरा मूल्य की गणना कर टैक्स लगा देना चाहिए। इसके लिए निर्माता व संबंधित उपभोक्ता राज्य के माध्यम व्यवस्था बनाकर एकल बिंदु जीएसटी का हल निकाला जा सकता है। 

नहीं हो पा रहा 34 हजार करोड़ का मिलान 

युवा दून डिस्ट्रिीब्यूशन एसोसिएशन के महामंत्री अनिल कुमार ने कहा कि वर्तमान व्यवस्था कर चोरी के लिए मजबूर कर रही है। उन्होंने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि जीएसटीआर-1 और जीएसटीआर 3-बी में 34 हजार करोड़ रुपये का मिलान नहीं हो पा रहा है। उन्होंने कहा कि एकल बिंदु जीएसटी पर ऐसी स्थिति से बचा जा सकता है। 

15 फीसद कम हुई वसूली

परिचर्चा में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के हवाले से कहा गया कि जीएसटी का औसत मासिक संग्रहण एक लाख नौ हजार 616 रुपये होना चाहिए, जो कि अधिकतम 90 हजार करोड़ रुपये तक ही है। इस तरह मासिक कर करीब 15 फीसद कम वसूल किया जा रहा है। 

एमआरपी पर जीएसटी होगा क्रांतिकारी कदम 

आइसीएआइ देहरादून शाखा के अध्यक्ष संजय कुंडलिया ने एकल बिंदु जीएसटी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसके तहत अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पर जीएसटी की वसूली होनी है। ऐसे में एमआरपी ऐसा बेस रेट बन जाएगा, जिससे किसी भी स्तर पर फुटकर विक्रेता छेड़छाड़ नहीं कर पाएंगे। यह जीएसटी प्रणाली में अब तक का सबसे बड़ा क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है। 

वहीं, हापुड़ से आए फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया व्यापार मंडल के राष्ट्रीय सचिव संजय अग्रवाल ने निर्माता स्तर पर जीएसटी लागू करने के फायदे गिनाए। उन्होंने कहा कि यदि निर्माता स्तर पर एमआरपी की गणना की जाए तो सरकार का लक्ष्य पहले ही पायदान पर पूरा हो जाएगा। 

15 फीसद करदाताओं पर ही रखनी होगी नजर 

कारोबारियों ने परिचर्चा में कहा कि एकल बिंदु जीएसटी का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि सरकार को सिर्फ 10 से 15 फीसद करदाताओं पर ही नजर रखनी होगी। साथ ही सरकारी मशीनरी का समय व संसाधन दोनों पर ही दबाव घट जाएगा। इस तरह बढ़ाचढ़ाकर एमआरपी अंकित करने और मोटा डिस्काउंट देकर अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा पर भी लगाम लग पाएगी।

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