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सरकार के सामने निवेश के रुझान को धरातल पर उतारने की चुनौती

अभी निवेश के प्रस्तावों पर एमओयू साइन किए जा रहे हैं, उससे प्रदेश के विकास का मार्ग प्रशस्त होता दिख रहा है। इन उम्मीदों को धरातल पर उतारने के लिए सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 07 Oct 2018 08:58 AM (IST)Updated: Sun, 07 Oct 2018 08:59 AM (IST)
सरकार के सामने निवेश के रुझान को धरातल पर उतारने की चुनौती

देहरादून, [विकास गुसाईं]: प्रदेश सरकार ने इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन कर बड़े पैमाने पर निवेश की संभावनाएं जगाई हैं। जिस तरह से अभी निवेश के प्रस्तावों पर एमओयू साइन किए जा रहे हैं, उससे प्रदेश के विकास का मार्ग प्रशस्त होता दिख रहा है। हालांकि, इन उम्मीदों को धरातल पर उतारने के लिए सरकार के सामने कई चुनौतियां भी खड़ी हैं। इनसे पार पाने के लिए सरकार को बेहद गंभीरता से काम करने की जरूरत पड़ेगी।

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प्रदेश में उद्योग स्थापित करने के लिए लंबे समय से प्रयास हो रहे हैं। राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की उदार नीतियों के कारण प्रदेश में उद्योग स्थापित होने शुरू हुए। हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में सिडकुल की स्थापना की गई। प्रदेश में उद्योग तो आए लेकिन इन्हें पर्वतीय क्षेत्रों में चढ़ाने में कोई भी सरकार सफल नहीं हो पाई। हालांकि, वर्ष 2008 में पहाड़ों में उद्योग ले जाने को नीति भी बनी, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ सकी। ऐसे में पहाड़ों में औद्योगिक विकास एक सपना होकर रह गया। अब इन्वेस्टर्स समिट के जरिये सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों में भी बड़े उद्योगों के स्थापित होने की उम्मीदों को पंख लगाए हैं। 

वन भूमि हस्तांतरण 

सरकार की पर्वतीय जिलों में उद्योग लगाने के लिए सबसे बड़ी चुनौती वन भूमि हस्तांतरण की है। वैसे तो सरकार ने सिंगल विंडो सिस्टम के तहत संबंधित अधिकारियों की समयबद्ध जिम्मेदारी तय की हुई है। 15 दिनों के भीतर फाइल का काम तो पूरा हो जाएगा लेकिन सबसे अहम काम वन भूमि हस्तांतरण का है। यह देखने में आया है कि वन भूमि के पेच के चलते कई बड़े उद्योग प्रदेश में स्थापित होने से वंचित रह गए। सरकार की नई उद्योग नीति में वन भूमि हस्तांतरण के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय है लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा। प्रदेश के वन विभाग से लेकर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से इसकी अनुमति लेने की जटिल प्रक्रिया से गुजरना होगा।

लघु इकाइयों को स्थापना

लंबे इंतजार के बाद सरकार ने पहाड़ की विषम परिस्थितियों के साथ ही आपदा समेत अन्य कारणों को देखते हुए एमएसएमई पर फोकस किया, इससे कुछ नई उम्मीदें जग रही हैं, मगर इसके सामने चुनौतियां भी बहुत हैं। सबसे बड़ी चुनौती इन इकाइयों को स्थापित करने की है। इन्हें स्थापित करने के लिए ऋण की जरूरत होती है। यही नहीं, कर्ज के एनपीए (गैर निष्पादित संपत्ति) में बदलने की आशंका रहती है। ऐसे में सरकार को इन्हें आसान शर्तों में ऋण दिलाने की चुनौती रहेगी।

विकास व पर्यावरण के बीच समन्वय

सरकार के सामने एक और अहम चुनौती औद्योगिक विकास और पर्यावरण में सामंजस्य रखने की होगी। दरअसल, इस समय पूरे विश्व में पर्यावरण बचाने को लेकर मुहिम छिड़ी है। उद्योग इससे सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। नए स्थानों पर उद्योगों को स्थापित करने के साथ ही पर्यावरणीय मानकों का भी पालन करना होता है। इसमें ग्रीन बेल्ट बनाना व प्रदूषण रोकथाम के लिए उचित कदम उठाना जरूरी है। कई बार उद्योग इनका अनुपालन करने में हीलाहवाली करते हैं। उद्योग स्थापित हों और मानकों का भी पूरा पालन हो, इस दिशा में भी गंभीर कदम उठाए जाने की जरूरत होगी। 

आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धता

नए उद्योगों को स्थापित करने के लिए सबसे बड़ी जरूरत आधारभूत सुविधाओं की होती है। अमूमन यह देखने में आता है कि बिजली, पानी व सड़क आदि की सुविधाओं को नए उद्योगों को खुद ही जुटाना पड़ता है। निवेशक सरकार से इन सुविधाओं को विकसित करने की उम्मीद करते हैं। पहले भी कई औद्योगिक घराने इस पर आपत्ति जता चुके हैं। सिडकुल क्षेत्रों में इस तरह की समस्याएं आम हैं। सरकार ने जो नीतियां बनाई हैं, उनमें समयबद्ध रूप से बिजली, पानी व सीवर आदि के कनेक्शन देने की बात कही गई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस पर गंभीरता से काम होगा। सरकारी स्तर से औद्योगिक क्षेत्र में ढांचागत सुविधा विकसित हों तो उद्यमियों को एक अच्छा संदेश दिया जा सकता है।

केवल छूट का लाभ लेने तक न रहें सीमित 

प्रदेश सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कई नई नियमावली बनाई हैं। उद्योग की नई नियमावली में निवेशकों को तरह-तरह की छूट देने के प्रावधान किए गए हैं। इसके अंतर्गत जमीन खरीदने से लेकर बाजार उपलब्ध कराने तक की योजनाएं बनाई गई हैं। इसके चलते निवेशक इनमें रुचि भी दिखा रहे हैं। सरकार के सामने चुनौती निवेशकों को दीर्घकाल तक रोकने की होगी। पूर्व में जब प्रदेश को विशेष औद्योगिक पैकेज मिला था, उस समय बड़ी संख्या में औद्योगिक इकाइयां स्थापित हुई थी। पैकेज समाप्त होते ही ये इकाइयां बंद हो गईं। इस बार ऐसा न हो, इसके लिए गंभीरता से प्रयास करना होगा।

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